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आत्मा अमर है।

गीता अध्याय दो श्लोक 12 में योगेश्वर श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा:।
न चैव न भविष्याम: सर्वे वयमत: परम्।।
अर्थ - ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं न रहा होऊॅं या तुम न रहे हो अथवा ये समस्त राजा न रहे हों ; और न ऐसा है कि भविष्य में हम लोग नहीं रहेंगे।
व्याख्या - आत्मा अजर अमर अविनाशी है, आत्मा को शरीरी कहा जाता है। आत्मा सदैव शरीर में रहतीं है, चाहे सूक्ष्म शरीर हो या स्थूल शरीर। इस श्लोक के माध्यम से योगेश्वर श्री कृष्ण एक संदेश और देते हैं कि आत्मा कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म लेतीं है। इससे एक बात और स्पष्ट होती है कि मनुष्यात्मा सदैव मनुष्य के रूप में ही जन्म लेगी, तभी तो श्रीकृष्ण, अर्जुन और समस्त राजा लोग पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में रहेंगे।
श्रीकृष्ण पूर्ण योगेश्वर हैं उनका कथन मिथ्या नहीं हो सकता है। योग साधना द्वारा स्वयं को जानकर अपने पूर्व जन्मों को जाना जाता सकता है। स्वयं को जानने की एक शक्तिशाली तकनीक मुनीश्वर-योगेश्वर शिव मुनि द्वारा प्रणीत चक्रभेदन, प्रणोपासना के अतिरिक्त स्वर साधना भी है, जिसकी दीक्षा योगश्वर शिव शंकर ने देवी पार्वती को दी थी। जिस प्रकार योगेश्वर श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को ज्ञान देने पर गीता का अवतरण हुआ उसी प्रकार योगेश्वर शिव शंकर द्वारा देवी पार्वती को स्वर साधना की दीक्षा से शिवस्वरोदय का अवतरण हुआ। शिवस्वरोदय प्राण का विज्ञान है, जो स्वर प्रवाह के माध्यम से स्वास्थ्य, संपदा, सफलता और विजय होने का ज्ञान प्रदान करता है।
योगाचार्य सत्यवीर सिंह मुनि
सुआवाला सुआवाला-धामपुर-बिजनौर।

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