गज़ल - जाने क्या विष घुला हुआ है....
जाने क्या विष घुला हुआ है...?.....मेरे इस परिवेश में |गद्दारों की बहुतायत है..................मेरे भारत देश में ||भारत में ये पैदा होकर.............पलते भी हैं भारत में,लेकिन ये...............उसको ही गाली देते हैं आवेश में ||भारत से चिढ़कर दुश्मन बन.........भारत पर गुर्राते हैं, सपना है ये इनका...............भारत डूबा रहे क्लेश में ||भारत से है नफ़रत जिनको........उनसे इनकी यारी है, उनकी ख़ातिर प्रेम छलकता.........इनके हर संदेश में ||राष्ट्रवाद जो हमें सिखाता...........हमें राष्ट्र से प्यार हो,चिढ़ने जैसा दिखता है कुछ.......इनको इस निर्देश में ||आतंकी - अपराधी..........इनके लिए दया के पात्र हैं,क्षमादान पर हक़ है उनका.........इनके हर उपदेश में ||‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’............ये इनका प्रिय नारा है,भारत के कपूत ये..................इतने हैं डूबे विद्वेष में ||अपने देश - धर्म और संस्कृति...के विनाश के प्रेमी ये, छिपे भेड़िये हैं समाज के............ये मानव के वेष में ||भारत जो अति धर्म - निष्ठ बन...इनको सहता रहता है,उसे राम बन..........धनुष उठाना होगा अब अन्वेष में ||आवश्यक है न्याय - धर्म में......गद्दारों का वध हो अब,अगर चाहिए हमें शांति - सुख......अपने देश-प्रदेश में || रचनाकार - अभय दीपराज संपर्क सूत्र - 9893101237