हज के लिए मक्का मदीने की रवानगी से पहले माहौल हुआ खुशनुमा
फिजां में लब्बेक की सदाएं
ज फर्श ता अर्श गूंजती है
लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक .. लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक .. इन्नल-हम्दा वन्ने-मता लका वल-मुल्क, ला शरीका लक’’
आज पाली से एक काफिला शहर ए मक्का की तरफ रवाना हुआ जिस शहर को देखने की तलब हर आशिक ए नबी की है उस अज़ीम सफर के लिए नदीम अली,परवेज अली, और अहबाब रब्बे करीम के दरबार में हाजिर होने के लिए बरोज शनिचर दिन में तीन बजे पाली से रवाना हुए
बड़ा मुकद्दस सफर है जिसकी तमन्ना हर मुसलमान को होती है
हैदर लोरी साहब का एक शेर याद आता है
बड़ी तकदीर वाले थे जो उस दरबार तक पहुंचे
हुज्जाज ए इकराम जितना अपनी किस्मत पर रश्क करे कम है उस घर की जियारत जो कि हदीश में आता है
जिसने मेरे घर की जियारत की उस पर मेरी शफाअत वाजिब हो गयी
तेरे करम की क्या बात मोला तेरे हरम की क्या बात मोला
ता उमर कर दे आना मुकद्दर
हुज्जाज इकराम को उनके दोस्त अहबाब रेलवे स्टेशन तक विदाई देने गए
कर रहे थे विदा करके आंखों को नम
था जुदाई का उनको भी मेरा गम
खेर से गुजरे थोड़ी सी ये जिंदगी
है बड़ी कीमती
मक्की मदनी.......