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पंचायत शिक्षकों के वेतन भुगतान में ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी की लापरवाही पर पटना हाईकोर्ट ने जताई कड़ी नाराज़गी

पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम निर्णय में अररिया ज़िले के पंचायत शिक्षकों को न्याय देते हुए ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) श्री रवि रंजन की भूमिका पर गंभीर आपत्ति जताई है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शिक्षकों की फाइलों को जानबूझकर दबाया गया, जिससे वे वर्ष 2017 से अपने वेतन से वंचित रह गए।
इस मामले में अररिया समेत विभिन्न क्षेत्रों के 16 पंचायत शिक्षकों ने याचिका दाखिल की थी, जिनकी नियुक्ति पूर्व में न्यायालय और राज्य अपीलीय प्राधिकरण द्वारा वैध ठहराई गई थी। इसके बावजूद इन शिक्षकों को सात वर्षों से वेतन नहीं मिला।

माननीय न्यायमूर्ति श्री पूर्णेन्दु सिंह ने अपने आदेश में कहा:

⭕राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके अधिकारी संविधान और कानून के अनुरूप कार्य करें। यदि वे जानबूझकर नागरिकों के अधिकारों का हनन करें, तो उनके विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।"
कोर्ट के निर्देशों के प्रमुख बिंदु:
शिक्षकों की नियुक्ति वैध पाई गई।
सरकार को आदेश दिया गया कि 28 अगस्त 2017 से अब तक का समस्त बकाया वेतन तत्काल जारी किया जाए।
श्री रवि रंजन के आचरण पर कड़ी टिप्पणी करते हुए, शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव को निर्देशित किया गया है कि वे पूरे प्रकरण की समीक्षा करें, जवाबदेही तय करें और ज़रूरत पड़ने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करें।
बाधा डालने की नई कोशिश?
जब इस फैसले के संबंध में श्री रवि रंजन से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि वे Letters Patent Appeal (LPA) दाख़िल करने की तैयारी में हैं — यह सीधे तौर पर आदेश की अनुपालना को टालने की मंशा को दर्शाता है।
यह निर्णय न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और शिक्षक वर्ग के सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। ज़रूरी है कि सरकार कोर्ट के आदेश का त्वरित पालन करे और यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में कोई भी शिक्षक वेतन से वंचित या प्रशासनिक उत्पीड़न का शिकार न हो।

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