
अपनों से अपील , सुमन झा मोहे
अपनों से अपील
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पीड़ित भाइयों एवं बेटों से एवं उनके परिवारों से अपील ............
जैसा कि हम सब जान रहे हैं आज की अदालत पुरुषों को न्याय नहीं देगी अगर अदालत न्याय देती तो जिस तरह से पुरुष आज आत्महत्या कर रहे हैं या मार दिए जा रहे हैं ऐसा नहीं होता , जरूर इस कुकृत्य पर लगाम लगता ।
जैसा कि हम जानते ही हैं अदालत पुरुषों को और पुरुषों के परिवारों को न्याय नहीं देगी इसलिए अब समय आ गया है कि हम और हमारे समाज की ओर से कठोर से कठोर कदम उठाए जाएं। समाज उन सभी महिलाओं का बहिष्कार करें और उन्हें शर्मिंदा करना शुरू करें जो पति को छोड़कर मायके में बेकार बैठी हुई है और मुफ्त भरण पोषण गुजारा भत्ता का आनंद ले रही है और ये प्रथा बनता जा रहा है।
अब समय आ गया है की ऐसी महिलाओं के माता-पिता और उसके भाई बहनों को भी शर्मिंदा किया जाए जो अपनी बहन बेटी के घर को आबाद करने के बजाय उसके गृहस्थी को और तोड़ दे रहे हैं और उनकी टूटी हुई शादी से पैसे का आनंद ले रहे हैं । साथ ही उनके रिश्तेदारों को भी शर्मिंदा किया जाए ।
*सिंगल माम्स* यह क्या होता है ? क्या महिलाएं सिंगल बच्चा पैदा कर लेती हैं ? क्या उनको पुरुष की जरूरत नहीं पड़ती है ? अगर पुरुष की जरूरत नही है तो फिर शादी से पहले यहां तक कि शादी के बाद भी अफेयर क्यों चलता है? बिना पुरुष के बच्चा धरती पर कैसे आता है ? इसलिए *सिंगल माम्स* की जय - जयकार करना बंद करें। उनसे और उनके बच्चों से सवाल करें कि उनके पिता कहां है ? उनके पिता कौन है? उनके पिता उनसे क्यों नहीं मिल रहे हैं? उनके पिता उनके पास क्यों नहीं है ? पिता को बच्चों से मिलने की अनुमति क्यों नहीं है? क्योंकि ये महिलाएं एवं उनके मायके वाले उस बच्चे के दिमाग में उसके ही पिता के प्रति इतना जहर भर दे रहे हैं कि वह अपने ही पिता को पहचानने से इनकार कर दे रहा है, तो समय आ गया है मेरे भाई /बेटा कि हम सारे शर्मो लिहाज को तोड़े और सामाजिक रूप से इस प्रथा का बहिष्कार करें , खुलकर बोले। मैं जानती हूं ऐसा तत्काल होना संभव नहीं है लेकिन मैं यह भी जानती हूं अगर समाज के कुछ लोगों में भी यह जागरूकता आ गई तो फिर इस तरह की अबला लड़कियां और उसके परिवार वाले ऐसा करने से बचेंगे और डरेंगे जरूर।क्योंकि आज हमारी तो कल आपकी बारी है।
जिस तरह से एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा करती है इस तरह से एक पति को मरने पर मजबूर करने वाली या मार देने वाली अबलाएं पूरे समाज को गंदा कर रही है अब समाज को ही जागना होगा समाज को ही कुछ करना होगा समाज ये न सोचें कि कौन सा ये आग हमारे यहां लगा है क्योंकि हवा का रूख बदलने में देर नहीं लगती अतः पहले के जमाने में जैसे सोशल बॉयकॉट कर देते थे बस वही नियम अपनाएं जाने चाहिए ताकि इस कुप्रथा पर रोक लग सके पूर्ण सामाजिक बहिष्कार!!! ताकि इन्हें कुछ सबक मिल सकें ।
धन्यवाद
सुमन झा "माहे" गोरखपुर
१४/०५/२५