
गाजियाबाद पुलिस कमिश्नर जे. रविन्द्र गौड़ द्वारा शुरू की गई ‘शिष्टाचार संवाद नीति’एक अच्छी पहल
गाजियाबाद पुलिस कमिश्नर जे. रविन्द्र गौड़ द्वारा शुरू की गई ‘शिष्टाचार संवाद नीति’ न केवल एक प्रशासनिक सुधार है, बल्कि यह पुलिस और जनता के रिश्तों में सकारात्मक बदलाव की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम भी है। इस नीति के तहत अब पुलिसकर्मी आम जनता से 'तुम' या 'तू' जैसे अपमानजनक शब्दों की बजाय 'आप' कहकर संवाद करेंगे। यह छोटा सा बदलाव दिखने में भले ही मामूली लगे, लेकिन इसका सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव अत्यंत गहरा हो सकता है।
पुलिस का व्यवहार और भाषा आम नागरिकों की मानसिकता पर बड़ा असर डालते हैं। जब एक आम व्यक्ति थाने में जाता है, तो वह पहले ही डरा और असहज महसूस करता है। अगर वहां उसे सम्मानजनक भाषा में बात करने वाला पुलिसकर्मी मिले, बैठने के लिए कुर्सी और पानी पीने की सुविधा मिले, और बच्चों को टॉफी जैसी छोटी-छोटी खुशियाँ दी जाएँ, तो यह अनुभव पूरी तरह बदल सकता है। ‘शिष्टाचार संवाद नीति’ इसी बदलाव की नींव रखती है।
गौर करने वाली बात यह है कि यह नीति केवल संवाद तक सीमित नहीं है। इसके तहत थानों को एक स्वागतयोग्य स्थान बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है। नागरिकों को बैठने की सुविधा, पानी पीने का प्रबंध और बच्चों के लिए टॉफी जैसे प्रावधान, पुलिस को एक मित्रवत संस्था के रूप में स्थापित करने में मदद करेंगे। जब थाने डर और दबाव का केंद्र न होकर विश्वास और सहयोग का केंद्र बनेंगे, तभी असली सुधार संभव होगा।
यह पहल अन्य जिलों और राज्यों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकती है। अक्सर पुलिस को सख्ती, कठोरता और संवेदनहीनता से जोड़ा जाता है। लेकिन जे. रविन्द्र गौड़ जैसे अधिकारियों के ऐसे प्रयास यह साबित करते हैं कि सिस्टम में रहते हुए भी बदलाव संभव है — बशर्ते इच्छाशक्ति हो। अगर देशभर के थानों में इसी प्रकार की शिष्टाचार आधारित नीतियाँ लागू की जाएँ, तो निश्चित ही पुलिस और नागरिकों के बीच विश्वास का पुल मजबूत होगा।
इस तरह की नीतियाँ केवल जनता के लिए ही नहीं, बल्कि पुलिसकर्मियों के लिए भी लाभकारी हैं। जब पुलिस सम्मान देती है, तो उसे सम्मान मिलता है। इससे उनकी कार्य-प्रेरणा और आत्म-सम्मान भी बढ़ता है। साथ ही, यह पुलिस की छवि सुधारने और कानून व्यवस्था के प्रति जनता के विश्वास को बढ़ाने में भी मदद करता है।
अंततः, यह कहा जा सकता है कि ‘शिष्टाचार संवाद नीति’ केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि इंसानियत और संवेदनशीलता की मिसाल है। अगर हम चाहते हैं कि हमारा समाज अधिक सुरक्षित, सुसंस्कृत और सहयोगी बने, तो इस तरह की पहलों को न केवल अपनाना चाहिए, बल्कि उसका प्रचार भी करना चाहिए।