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ज्ञान और अनुभव का भंडार हैं दादा-दादी, नाना-नानी- डा. ब्रजेश

पद्मावती जैन सशिवि मंदिर में दादा-दादी,नाना-नानी सम्मान समारोह का हुआ आयोजन!

(चाईबासा) पद्मावती जैन सरस्वती शिशु विद्या मंदिर, चाईबासा में दादा-दादी, नाना-नानी सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम मे दादा-दादी, नाना-नानी को पारंपरिक ढंग से पग प्रक्षालन कर और अंगवस्त्र देकर स्वागत किया गया। इसके उपरांत मुख्य अतिथि विद्या विकास समिति,झारखंड के प्रदेश मंत्री डॉ. ब्रजेश कुमार, विद्यालय सचिव तुलसी प्रसाद ठाकुर, सह निरीक्षक ब्रेन टुडू,उपाध्यक्ष बजरंग लाल चिरानियां, सोहन मुंदड़ा, कोषाध्यक्ष दिलीप कुमार गुप्ता, सदस्य सुजीत विश्वकर्मा, अनंत लाल विश्वकर्मा व प्रभारी प्रधानाचार्य अरविंद कुमार पांडेय ने संयुक्त रूप से भारत माता और महारानी अहिल्याबाई होलकर के चित्र दीप प्रज्वलन व पुष्प अर्पित कर किया। कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों का परिचय प्रभारी प्रधानाचार्य ने कराया। इसके उपरांत मुख्य अतिथि को श्रीफल और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। उनके साथ उपस्थित समस्त अधिकारी वृंद का भी अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। मौके पर मुख्य अतिथि डॉ ब्रजेश कुमार ने अपने आशीर्वचन में कहा कि दादा-दादी, नाना-नानी बच्चों के लिए ज्ञान और अनुभव के भंडार होते हैं। उनका स्नेहिल प्रेम बच्चों को प्रत्यक्ष रूप में मिलता है। विद्या भारती के समस्त विद्यालयों में दादा दादी नाना नानी को सम्मानित करने की योजना रहती है जिसका उद्देश्य बच्चों के जीवन में व्यवहारिक ज्ञान देना है और यह व्यवहारिक ज्ञान दादा-दादी, नाना-नानी के शरण में प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि कॉन्वेंट के विद्यालयों में इस तरह की पारंपरिक के विधान नहीं है जबकि शिशु मंदिर में यह सम्मान देने की परिपाटी बहुतायत में देखी जाती है जिसका प्रमाण यहां हम लोग प्रत्यक्ष देख रहे हैं। आज के बदलते परिवेश में भारतीय परंपरा, अपनी सभ्यता-संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए यह विद्या भारती बड़े पैमाने पर शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही है। वहीं इसकी प्रस्तावना विद्यालय के सचिव तुलसी प्रसाद ठाकुर ने देते हुए कहा कि शिशु मंदिर में पढ़ने वाले भैया-बहनों में शिक्षा, संस्कार व संस्कृति कूट-कूट कर भरे जाते हैं ताकि वह अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सके। उन्होंने कहा कि शिशु मंदिर की स्थापना 1952 ई.में की गई जिसका उद्देश्य भैया-बहनों में भारतीय परंपरा, सभ्यता और संस्कृति को आत्मसात करना था। वहीं कोषाध्यक्ष दिलीप कुमार गुप्ता ने कार्यक्रम में उपस्थित समस्त दादा-दादी, नाना नानी का अभिनंदन किया और कहा कि बच्चों के लिए दादा-दादी, नाना- नानी बहुत प्रिय होते हैं। बच्चों का अधिकांश समय दादा-दादी के समक्ष बीतता है। सदस्य अनंत लाल विश्वकर्मा ने भी दादा-दादी नाना नानी को ज्ञान और अनुभव का भंडार बताया जिनके छत्रछाया में बच्चों को स्नेह-प्रेम मिलता है और ज्ञान प्राप्त होता है। विद्यालय के भैया- बहनों ने एक लघु नाटिका 'दादा जी की लाठी' प्रस्तुत किया। इसमें बच्चों ने दर्शाया कि दादा जी की लाठी उनकी लाठी नहीं बल्कि वह खुद उनकी लाठी बनेंगे। मौके पर भैया ने दादा- दादी' नाना-नानी के सम्मान में विभिन्न प्रकार के गीत व नृत्य प्रस्तुत किया। छोटे बच्चों के द्वारा प्रस्तुत गीत नृत्य नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए प्रस्तुत किया जिसे सुनकर सभी मंत्र मुग्ध हो गये। वहीं बच्चों ने एक लघु नाटक दादाजी की लाठी प्रस्तुत किया जिसका संदेश था- 'दादाजी की लाठी' नहीं बल्कि उनके लिए उनके पोते ही लाठी का सहारा बनेंगे। कार्यक्रम में आए बच्चों के दादा-दादी, नाना-नानी ने अपने उदगार प्रस्तुत किया और कहा कि यह विद्यालय अन्य विद्यालयों से संस्कार, संस्कृति, अनुशासन व पढ़ाई-लिखाई आदि में भिन्न है। इस कार्यक्रम का संचालन शिशु वाटिका के क्षेत्र प्रमुख मंजू श्रीवास्तव और कक्षा अष्टम के भैया प्रीतम कुमार और कार्तिक कुमार ने संयुक्त रूप से किया और धन्यवाद ज्ञापन जमशेदपुर विभाग के सह विभाग निरीक्षक ब्रेन टुडू ने किया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में विद्यालय के समस्त आचार्य बंधु भगिनी का सहयोग सराहनीय रहा। इस कार्यक्रम में कुल 250 भैया-बहनों के दादा-दादी, नाना- नानी उपस्थित हुए। साथ ही विद्यालय प्रबंध समिति के समस्त सदस्य गण भी उपस्थित थे। शांति मंत्र के उपरांत यह कार्यक्रम समाप्त हुआ।

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