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कश्मीर में हुई निर्मम हत्या

"कश्मीर में हुए इस निर्मम कत्लेआम की मैं तीव्र निंदा करता हूँ। आज मेरी आयु 64 वर्ष है, और अपने पूरे जीवन में मैंने कभी ऐसा नहीं देखा कि आतंकवादियों ने सीधे-सीधे पर्यटकों को निशाना बनाया हो। अब तक उनके निशाने पर हमेशा हमारे सुरक्षाकर्मी और खुफिया एजेंसियाँ ही रही हैं।

इस घटना में दो स्थानीय मुस्लिम युवकों — आरिफ और जावेद — ने असाधारण साहस दिखाते हुए सैलानियों को बचाने का प्रयास किया। दुर्भाग्यवश, वे स्वयं आतंकियों की गोलियों का शिकार हो गए। यह बलिदान दर्शाता है कि मानवता का धर्म सबसे ऊपर होता है। वे न तो हिंदू थे, न ही सिख या ईसाई — वे सिर्फ इंसान थे, जिन्होंने दूसरे इंसानों की जान बचाने के लिए अपनी जान दे दी।

एक आतंकवादी का कोई धर्म या जाति नहीं होती — वह केवल इंसानियत का दुश्मन होता है। इसलिए उसे किसी भी धर्म या जाति से जोड़ना उचित नहीं है।

यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश के भीतर कुछ राजनीतिक दल और मीडिया ऐसे शब्दों और भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे देशवासियों के मन में नफरत पैदा होती है।

हमारे देश की विडंबना है कि यहाँ शिक्षित लोग अशिक्षित नेताओं के अधीन काम करने को विवश हैं।

कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा यह अफवाह भी फैलाई गई कि पीड़ितों से पूछ कर मारा गया कि 'क्या तुम हिंदू हो?' — यह बेहद चिंताजनक है। मीडिया का दायित्व है कि वह तथ्यों को जिम्मेदारी से प्रस्तुत करे, न कि भय फैलाकर या किसी धर्म विशेष को निशाना बनाकर।

मैं भारत की जनता से करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि वे आपस में प्रेम, भाईचारा और सौहार्द बनाए रखें। यही हमारे देश की सच्ची पहचान है।"
जय हिंद, जय भारत
जय महाराष्ट्र

डॉ एम एस बाली

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