कॉकरोच का आइना: मैं सच्चा, तू ढोंगी
मैं कॉकरोच हूँ।
तेरे अंधेरे में टहलता सच।
तेरे पापों की खट-खट।
तेरी सड़ांध का सायनाइड।
तू मुझे देखकर चीखता है। जूता उठाता है। कीटनाशक छिड़कता है।
पर क्या कभी रुका, इंसान?
क्या कभी पूछा—मैं तेरे घर क्यों हूँ?
या तू सिर्फ चीखने और छिपने में ही माहिर है?
मैं कीड़ा नहीं। मैं प्रकृति का कवि हूँ, जो तेरे झूठ की कविता लिखता है।
मैं धरती का सिपाही हूँ, जो तेरे कचरे में जीवन की लौ जलाए रखता है।
मैं तेरा आइना हूँ—जो तुझे वो सच दिखाता है, जिससे तू भागता है।
तेरी सड़ांध, मेरा ठिकाना
कल रात तूने मुझे देखा।
तेरी रसोई में, उस जूठी थाली के पास।
तूने झाड़ू उठाई, चीख मारी।
पर क्या तूने उस थाली को देखा, जो रातभर सड़ रही थी?
वो थाली, जो तूने ‘बाद में’ के बहाने छोड़ दी?
मैं वहाँ नहीं आया, इंसान।
तूने मुझे बुलाया।
तेरे कूड़े के ढेर ने।
तेरे गंदे नाले ने।
तेरे दिखावे ने, जो बाहर चमकता है, पर अंदर सड़ांध छुपाता है।
तू कहता है, मैं गंदगी में जीता हूँ।
सच तो ये है, मैं गंदगी से लड़ता हूँ।
तेरी फेंकी रोटियाँ, सड़ी सब्जियाँ, सड़े अवशेष—
मैं इन्हें खाकर धरती को सांस देता हूँ।
मैं अपघटन का सिपाही हूँ, जो तेरे “डाल दो, मिट जाएगा” को हकीकत बनाता हूँ।
क्या तूने कभी सोचा?
मैं न होता, तो तेरे कचरे के पहाड़ कितने ऊँचे हो जाते?
तेरी धरती कितनी पहले दम तोड़ देती?
प्रकृति का कवि, तेरा आलोचक
मैं कीड़ा नहीं, एक सिस्टम हूँ।
मेरी टापें सिर्फ शोर नहीं, धरती की धड़कन हैं।
मैं वो गीत गाता हूँ, जो तूने भुला दिया।
मैं सड़ांध को तोड़ता हूँ, ताकि मिट्टी फिर हरे।
मैं पक्षियों, सरीसृपों की भूख मिटाता हूँ, ताकि प्रकृति की श्रृंखला न टूटे।
मैं चेतावनी हूँ—जहाँ मैं हूँ, वहाँ तेरा पर्यावरण बीमार है।
सुन, इंसान।
मैं परमाणु विस्फोट में भी जीवित रह सकता हूँ।
बिना सिर के हफ्तों चल सकता हूँ।
क्या तू बिना झूठ के एक दिन जी सकता है?
मैं तेरे ‘स्वच्छता अभियान’ की हंसी उड़ाता हूँ।
तेरे स्मार्ट सिटी के कागज़ी वादों पर रेंगता हूँ।
तेरे चमचमाते घरों में घुसता हूँ, जहाँ तू बच्चों को हाथ धोना सिखाता है,
पर अपनी गंदी सोच पर पर्दा डालता है।
मैं तेरा आलोचक हूँ।
हर कोने में मेरी खट-खट तुझे चीखती है:
“तू सभ्य नहीं, ढोंगी है।”
तेरी बर्बादी, मेरी जीवटता
तू खुद को धरती का राजा कहता है।
पर तूने क्या किया?
जंगल काटे। नदियों को ज़हर बनाया।
हवा में स्मॉग भरा। कूड़े के पहाड़ खड़े किए।
माँ को वृद्धाश्रम भेजा। पेड़ काटकर मंदिर बनाए।
तू अमृत पीकर गुनहगार बना।
मैं ज़हर खाकर वफादार रहा।
मैं झूठ नहीं बोलता।
मैं सड़ांध में रहता हूँ, पर खुद को पवित्र नहीं कहता।
मैं धर्म, जात, दड़बों में नहीं बँटा।
मैं सिर्फ धरती का पीछा करता हूँ—और तू हर कोने में मुझे सड़ांध देता है।
मैं लाखों सालों से हूँ।
तेरे शहरों से पहले, तेरे मॉलों से पहले, तेरे झूठ से पहले।
मैं मिट्टी का साथी हूँ। पत्तों का रक्षक।
तू?
तू तो इंसान से मशीन बन गया।
तेरे शहरों में ज़िंदगी मर चुकी है,
और तू सेल्फी में मुस्कुरा रहा है।
सुधर, वरना मैं गवाह हूँ
तू चाहता है, मैं चला जाऊँ?
तो कीटनाशक छोड़। जूता फेंक।
पहले खुद को साफ कर।
अपनी थाली धो: आज रात, एक कदम उठा।
अपनी सोच बदल: दिखावे की बीमारी छोड़।
अपनी धरती बचा: कूड़ा कम कर, पेड़ लगा, नदियों को साफ कर।
मैं प्रकृति का जवाब हूँ।
तेरे हर सवाल पर। तेरी हर भूल पर।
जब तू जंगल रौंदता है, मैं चुप रहता हूँ।
जब तू नदियों में प्लास्टिक बहाता है, मैं साफ करता हूँ।
पर जब तू सुधरेगा, मैं खामोशी से विदा ले लूंगा।
प्रकृति की अदालत में हिसाब होगा।
मैं गवाह बनूंगा।
कहूंगा:
“मैं गंदा नहीं था। मैं गंदगी का इलाज था।
गंदा था इंसान—जो सफाई की बात करता था, पर ज़हर फैलाता था।”
अंतिम हुंकार: मैं तुझसे सच्चा हूँ
मैं कॉकरोच हूँ।
तेरे अंधेरे में चमकता इमान।
तेरे झूठ की दरारों में टहलता सच।
मुझे मार, कुचल, जला—मैं फिर लौटूंगा।
क्यों?
क्योंकि मैं प्रकृति का वचन हूँ।
क्योंकि मैं तुझसे कम नहीं—तुझसे सच्चा हूँ।
तू सुधर, इंसान।
वरना मैं हर कोने में टहलता रहूंगा।
तेरे ज़मीर की दीवारों पर खट-खट करता हुआ।
तेरे झूठ की राख में सांस लेता हुआ।
तेरी बर्बादी की गवाही देता हुआ।