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आज जब सब लोग अदालत से निकल चुके थे... कैमरे बंद हो चुके थे, तमाम सीनियर वकीलों की भीड़ घट चुकी थी, तब भी एक शख़्स वहां मौजूद था — बिल्कुल आख़िर में निकलने वाला इंसान… औवेसी साहब।

आज जब सब लोग अदालत से निकल चुके थे... कैमरे बंद हो चुके थे, तमाम सीनियर वकीलों की भीड़ घट चुकी थी,
तब भी एक शख़्स वहां मौजूद था — बिल्कुल आख़िर में निकलने वाला इंसान… औवेसी साहब।

ना कोई प्रेस कॉन्फ़्रेंस, ना कोई तस्वीर, ना कोई बयान...
बस एक ख़ामोश मगर गवाही देती हुई मौजूदगी।
वो सुबह से कोर्ट में थे — Adv मैंने ख़ुद उन्हें दोपहर एक बजे अंदर बैठे देखा... तनहाई में भी संजीदगी का लिबास ओढ़े हुए, जैसे कोई मर्द-ए-अज़ीम अपने क़ौमी फ़र्ज़ की अदायगी में मग्न हो। वो बोले नहीं, लेकिन उनकी खामोशी बहुत कुछ कह गई।
वो रुके रहे, क्योंकि मसला सिर्फ़ एक मुक़द्दमे का नहीं था यह वक़्फ़ की हिफ़ाज़त, हमारे अस्लाफ़ की अमानत, और हमारी मिल्ली पहचान की बात थी। लोग तस्वीरें लेकर जाते हैं,
औवेसी साहब खामोशी लेकर लौटे — और यही खामोशी इस लड़ाई की सबसे बुलंद आवाज़ है इसे कहते हैं देश के वर्ग के लोगों की आवाज बनती नजर आ रहे हैं जो लोग owassi Ji गरीब लोगों की हक की बात करते हैं। खुद मैने बहुत बार गलत कहा है कि लेकिन कभी भी उसे गलत नहीं समझा। आज पूरे हैदराबाद के लोग दारुस्सलाम में प्रोग्राम में शामिल हैं हर वर्ग के लोग।
डॉ Md Firoz Alam

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