
अनंत कान्हेरे: एक तेजस्वी क्रांतिकारी
अनंत कान्हेरे: एक तेजस्वी क्रांतिकारी
अनंत लक्ष्मण कान्हेरे (जन्म: 7 जनवरी 1892 आयणी, रत्नागिरी जिला – मृत्यु: 19अप्रैल 1910, ठाणे) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक तेजस्वी और निडर क्रांतिकारी थे। अत्यंत कम उम्र में, केवल 18 वर्ष की आयु में उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। नासिक के जिला कलेक्टर आर्थर मेसन टिबेट्स जैक्सन की हत्या करके उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पर प्रहार करने का प्रयास किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
कान्हेरे का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनका बचपन और प्राथमिक शिक्षा निजामाबाद (अब इंदौर) में हुई। इसके बाद उनकी अंग्रेजी शिक्षा औरंगाबाद में हुई। बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति की भावना जड़ें जमा चुकी थी।
क्रांतिकारी विचारों की प्रेरणा:
बीसवीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर हो रहे अत्याचार बढ़ रहे थे। लोकमान्य तिलक को जेल में डाल दिया गया और बाबाराव सावरकर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। नासिक के तत्कालीन जिला कलेक्टर जैक्सन बाबाराव सावरकर के मुकदमे के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने देशभक्तों को बहुत परेशान किया था। इसी पृष्ठभूमि में अनंत कान्हेरे के मन में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीव्र असंतोष उत्पन्न हुआ।
उस समय नासिक में 'अभिनव भारत' नामक एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन का कार्य चल रहा था। इस संगठन के विचारों से कान्हेरे प्रभावित हुए और वे इसमें सक्रिय रूप से शामिल हो गए। उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर का 'जोसेफ मैजिनी' का चरित्र पढ़ा, जिससे उनके क्रांतिकारी विचार और दृढ़ हो गए।
जैक्सन की हत्या:
जैक्सन को भारतीय जनता पर अन्याय करने वाले और अत्याचारी अधिकारी के रूप में जाना जाता था। बाबाराव सावरकर को दी गई कठोर सजा के कारण क्रांतिकारियों में जैक्सन के प्रति तीव्र घृणा उत्पन्न हो गई थी। इसी असंतोष से कान्हेरे और उनके साथियों ने जैक्सन को समाप्त करने की साजिश रची।
21 दिसंबर 1909 को नासिक के विजयानंद थिएटर में शारदा संगीत नाटक का प्रदर्शन था। क्रांतिकारियों को सूचना मिली कि जैक्सन यह नाटक देखने आने वाले हैं। अनंत कान्हेरे ने इस अवसर का लाभ उठाने का निश्चय किया। उन्होंने ब्राउनिंग पिस्तौल से जैक्सन पर चार गोलियाँ चलाईं और जैक्सन की मौके पर ही मृत्यु हो गई।
हमले के बाद कान्हेरे ने खुद को गोली मारने का प्रयास किया, लेकिन वे पकड़ लिए गए। उनके साथ कृष्णाजी गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपांडे को भी गिरफ्तार किया गया।
मुकदमा और फांसी:
इन तीनों क्रांतिकारियों पर राजद्रोह और हत्या का मुकदमा चलाया गया। न्यायालय में कान्हेरे ने निर्भीकता से अपने कृत्य की जिम्मेदारी स्वीकार की और अपनी देशभक्तिपूर्ण भावनाओं को व्यक्त किया। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।
19 अप्रैल 1910 को ठाणे जेल में अनंत कान्हेरे, कृष्णाजी कर्वे और विनायक देशपांडे को फांसी दे दी गई। देश के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने वाले इन वीरों के बलिदान ने स्वतंत्रता संग्राम को नई प्रेरणा दी।
विरासत:
अनंत कान्हेरे ने अपने छोटे से जीवन में जो साहस और देशभक्ति दिखाई, वह आज भी प्रेरणादायक है। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनके त्याग से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा मिली। नासिक शहर में उनकी स्मृति में एक बड़ा क्रिकेट स्टेडियम बनाया गया है, जिसे 'अनंत कान्हेरे मैदान' के नाम से जाना जाता है। उनके जीवन पर आधारित '1909' नामक एक मराठी फिल्म भी प्रदर्शित हुई है, जो उनकी वीरता की गाथा कहती है।
अनंत कान्हेरे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अमर शहीद के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे। उनका बलिदान युवा पीढ़ी को हमेशा देशप्रेम और त्याग की प्रेरणा देता रहेगा।