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हिमाचल प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था: कितनी कारगर, कितनी लाचार!

शिक्षक ,शिक्षा व्यवस्था के सारथी:उनके हितों की अनदेखी कभी शिक्षा के स्तर को ऊंचा नहीं उठा सकतीं.
हिमाचल प्रदेश की पूरी शिक्षा व्यवस्था ही एक असमंजस की स्थिति में पंहुच गई है, कहां तो दावा था कि व्यवस्था परिवर्तन होगा, लेकिन होगा क्या और होगा कैसे यह किसी को भी नहीं पता.
आए दिन शिक्षा विभाग में हो रहे तुगलकी फरमानों ने शिक्षा की रीढ़ की हड्डी शिक्षकों में ही असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है,ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा विभाग के कर्मचारी, मानव नहीं अपितु कोई रासायनिक तत्व हैं जिसे जब चाहे प्रयोगशाला में प्रयोग कर लो..
अचरज की बात तो यह है शिक्षा विभाग में किसी भी निर्णय को लेने अथवा लागू करने में शिक्षा व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों को कभी भी विश्वास में नहीं लिया जाता. धरातल पर कार्य करने वाले व्यक्ति की क्या समस्याएं हैं, किसी को नहीं पता. .
पूर्व के समय में भी अनेक परिवर्तन शिक्षा विभाग में किए जाते रहे हैं परंतु उस समय शिक्षक संगठनों को भी अपनी बात रखने का मौका दिया जाता रहा है। उनके सुझावों पर गौर किया जाता रहा है क्यों कि यह लोग धरातल पर काम करते हैं और जमीनी हकीकतों से भली भांति परिचित हैं परंतु न जाने क्यों अब शिक्षक संगठन भी अपनी बात रखने से कतराने लगे हैं. .
आज भी हिमाचल प्रदेश में बहुत से विद्यालय ऐसे हैं जहां कई विषयों के शिक्षक नहीं हैं परंतु अध्यापक वर्ग ने कभी भी ऐसा नहीं किया कि वह विषय विद्यालय में बिना पढाए छोड़ दिया हो,अनेक प्रकार के अतिरिक्त कार्य करने पड़ रहे हैं परंतु फिर भी बिना शिकायत किए डटे हुए हैं. .प्राथमिक विद्यालयों में एक एक शिक्षक ने भी पांच पांच कक्षाओं का उतरदायित्व़ संभाला हुआ है, कभी शिकायत नहीं की...क्योंकि यह छात्र हित और प्रदेश के हित की बात है, इसीलिए अध्यापक बिना कोई शिकवा किए,शिकायत किए अपने कार्य में डटा हुआ है. यही एकमात्र ऐसा वर्ग है जिसकी नियुक्ति तो शिक्षा विभाग में हुई है परंतु बोझ सभी विभागों का ढो रहा है। परंतु किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं जाता. कभी तो लगता है कि क्या सरकार को मात्र एक विभाग में ही सारे प्रयोग कर डालने हैं या अध्यापक वर्ग की वेदना को भी समझने की संवेदनशीलता दिखानी चाहिए. .
उस से भी ऊपर. .विभाग के सर्वोच्च पदों पर किसी भी ऐसे व्यक्ति को महत्व न देना, जिसका सीधा संबंध शिक्षक समुदाय से हो क्यों कि उनका अनुभव शिक्षा के क्षेत्र में अनमोल साबित हो सकता है. .परंतु. ......
आज अध्यापक संगठन भी लाचार और बेबस दिखाई दे रहे हैं क्यों कि वे भी अपनी आवाज सिर्फ मीडिया तक ही पंहुचा पा रहे हैं, परंतु उस से आगे कोई राह नहीं. .
मुद्दे तो अनगिनत हैं जिस पर ध्यान देने से शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण और सकारात्मक परिवर्तन लाए जा सकते हैं. .
जब शिक्षक ही हैं लाचार: कैसे सुदृढ़ होगा शिक्षा का आधार.

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