
हैदराबाद में आईटी पार्क निर्माण के लिए वनों की कटाई : जंगली जानवरों के निवास स्थान की सुरक्षा की आवश्यकता
जानवरों के अधिकार और हैदराबाद में आईडी पार्क निर्माण का प्रभाव
*पीयूष सोनी* (पंज़ाब) वर्तमान समय में विकास और शहरीकरण की दौड़ में हम अक्सर पर्यावरण और जैवविविधता की अनदेखी कर देते हैं। हैदराबाद में आईटी पार्क निर्माण के लिए की जा रही वनों की कटाई इसका एक ताजा उदाहरण है। इस क्षेत्र में हो रही तेजी से वनों की कटाई न केवल पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है, बल्कि यह वहां रहने वाले जंगली जानवरों के निवास स्थान को भी नष्ट कर रही है। ऐसे समय में यह आवश्यक हो गया है कि हम विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखें।
*विकास बनाम पर्यावरण*
प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में जानवरों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं, बल्कि मानव जीवन की स्थिरता और विविधता के लिए भी आवश्यक हैं। किंतु आधुनिक विकास की दौड़ में हम प्रकृति और जानवरों की उपेक्षा कर रहे हैं। हैदराबाद में बन रहे 400 एकड़ के आईडी (Information Development) पार्क का निर्माण इसका जीवंत उदाहरण है, जहाँ विकास के नाम पर वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवासों से विस्थापित किया जा रहा है।
हैदराबाद जैसे महानगर में आईटी उद्योग का विस्तार रोजगार और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन इसके लिए यदि हम प्राकृतिक वनों को उजाड़ कर वहां कंक्रीट के जंगल खड़े करेंगे, तो इसका दीर्घकालिक परिणाम विनाशकारी हो सकता है। वनों की कटाई से न केवल जलवायु परिवर्तन को बल मिलता है, बल्कि वहां रहने वाले वन्य जीवों का जीवन भी संकट में पड़ जाता है। कई जीव ऐसे हैं जो केवल विशेष पारिस्थितिक तंत्र में ही जीवित रह सकते हैं। उनके निवास स्थान नष्ट होने से उनकी प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर पहुँच सकती हैं।
यह पार्क उस क्षेत्र में बनाया जा रहा है जहाँ अनेक जानवरों का प्राकृतिक वास है। जैसे ही निर्माण कार्य आरंभ हुआ, कई जानवरों को जंगलों से बाहर आकर मानव बस्तियों की ओर रुख करना पड़ा। यह न केवल जानवरों के लिए खतरनाक है, बल्कि मानव समाज के लिए भी संकट पैदा करता है। जब जानवर अपने घर से बेघर होते हैं, तो वे भोजन और पानी की तलाश में गाँवों और शहरों की ओर आते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है।
*जंगली जानवरों के निवास स्थान की महत्ता*
जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं होते, बल्कि यह जंगली जानवरों का घर होते हैं। शेर, तेंदुआ, हिरण, बंदर, और विभिन्न पक्षी प्रजातियाँ इन वनों में ही सुरक्षित जीवन जीते हैं। जब उनके घर उजड़ते हैं, तो वे मानव बस्तियों की ओर रुख करने लगते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता है। ऐसे संघर्षों में जानवरों और कभी-कभी इंसानों की जान तक चली जाती है। इसलिए जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास की सुरक्षा न केवल उनकी, बल्कि हमारी सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।
इस समस्या का सबसे बड़ा कारण यह है कि विकास परियोजनाएं बनाते समय पर्यावरणीय प्रभाव का समुचित आकलन नहीं किया जाता। जब एक जंगल काटा जाता है या प्राकृतिक क्षेत्र में निर्माण होता है, तो वहाँ रहने वाले पक्षी, जानवर और कीट-पतंगे बेघर हो जाते हैं। उनके पास कोई आवाज नहीं होती, इसलिए उनका संघर्ष अनदेखा रह जाता है। लेकिन हमें यह समझना होगा कि यदि हम पर्यावरण की रक्षा नहीं करेंगे, तो आगे चलकर यह विकास हमारे लिए ही विनाश का कारण बन सकता है।
*संरक्षण के उपाय*
सरकार और प्राइवेट डेवलपर्स को चाहिए कि वे आईटी पार्क या अन्य निर्माण योजनाओं को पर्यावरणीय अध्ययन के आधार पर तय करें। वैकल्पिक स्थानों का चयन किया जाना चाहिए, जहां पारिस्थितिक नुकसान न्यूनतम हो। 'ग्रीन बिल्डिंग' अवधारणा को बढ़ावा देना चाहिए, जिसमें हरियाली को संरक्षित रखते हुए निर्माण कार्य किया जाए। इसके साथ ही, वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
हमें विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना सीखना होगा। सरकार और संबंधित संस्थाओं को चाहिए कि किसी भी परियोजना से पहले विस्तृत पर्यावरणीय मूल्यांकन किया जाए। यदि किसी क्षेत्र में वन्यजीव रहते हैं, तो उस परियोजना को अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए या उस क्षेत्र में जानवरों के लिए सुरक्षित स्थान बनाए जाने चाहिए।
जनता को भी इस विषय में जागरूक होना चाहिए। हमें जानवरों की पीड़ा को समझना होगा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठानी होगी। हम विकास चाहते हैं, परंतु वह ऐसा होना चाहिए जो प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखे। जब तक हम जानवरों और पर्यावरण के साथ न्याय नहीं करेंगे, तब तक सच्चा और टिकाऊ विकास संभव नहीं है।
*निष्कर्ष*
विकास जरूरी है, लेकिन वह ऐसा न हो कि आने वाली पीढ़ियाँ हमें इसके लिए दोष दें। हैदराबाद में आईटी पार्क का निर्माण देश की तकनीकी प्रगति में अहम भूमिका निभा सकता है, लेकिन इसके लिए वनों की बलि देना बुद्धिमानी नहीं होगी। हमें अब यह समझने की आवश्यकता है कि वनों और वहां के निवासियों की रक्षा करना हमारी नैतिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी है। केवल तभी हम एक सतत, सुरक्षित और संतुलित भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
हैदराबाद में बन रहे आईडी पार्क जैसी परियोजनाएं, यदि पर्यावरण की अनदेखी कर बनाई जाती हैं, तो उनका दीर्घकालिक प्रभाव नकारात्मक हो सकता है। जानवरों को उनके घरों से बेघर करना केवल एक नैतिक अपराध ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ा खतरा भी है। हमें जानवरों के समर्थन में खड़े होना चाहिए और उनके लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना चाहिए।