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प्रतापगढ़ में निजी स्कूलों की महंगी किताबों से अभिभावक परेशान, बिना पक्के बिल के कैंपस में हो रही बिक्री, प्रशासन की कथित निष्क्रियता पर सवाल

प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश): जिले के निजी स्कूलों में हर साल महंगी किताबों का बोझ अभिभावकों की कमर तोड़ रहा है। नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत होते ही अभिभावकों को हजारों रुपये सिर्फ किताबों पर खर्च करने पड़ रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ रहा है। इस समस्या को और बढ़ाते हुए, अब अभिभावकों ने यह भी आरोप लगाया है कि कई स्कूल कैंपस के भीतर ही बिना किसी पक्के बिल या रसीद के किताबों की बिक्री कर रहे हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि अभिभावकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन को इन अनियमितताओं की जानकारी होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा है।
शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के कई निजी स्कूलों पर आरोप लग रहे हैं कि वे छात्रों को कुछ खास प्रकाशकों की महंगी किताबें खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि इन किताबों की गुणवत्ता में कोई खास अंतर नहीं होता, लेकिन इनकी कीमतें बाजार में उपलब्ध अन्य प्रकाशकों की किताबों से काफी ज्यादा होती हैं।
एक अभिभावक, ने नाम ना छापने की शर्त से बताया, "मेरा एक बच्चा कक्षा 2 में निजी स्कूल में पढ़ता हैं। इस साल मुझे सिर्फ किताबों के लिए लगभग 5,000 रुपये खर्च करने पड़े। इतनी महंगी किताबें खरीदना हमारे जैसे मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बहुत मुश्किल है।" उन्होंने आगे कहा, "जब मैंने स्कूल में किताबें खरीदीं तो मुझे कोई पक्का बिल नहीं दिया गया, सिर्फ एक पर्ची मिली जिसपर कीमत लिखी थी। यह कैसा तरीका है?"
कई अन्य अभिभावकों ने भी इसी तरह की शिकायतें की हैं। उनका कहना है कि स्कूलों द्वारा निर्धारित किताबें आसानी से बाजार में उपलब्ध नहीं होती हैं और उन्हें स्कूल या स्कूल द्वारा बताए गए विशेष दुकानों से ही खरीदना पड़ता है, जहां कीमतें अक्सर मनमानी होती हैं। इसके अलावा, स्कूल परिसर में बिना बिल के किताबों की बिक्री होने से अभिभावकों को अपनी खरीदारी का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं मिल पाता है, जिससे उन्हें किसी भी तरह की शिकायत या पूछताछ करने में मुश्किल होती है। अभिभावकों का कहना है कि उन्हें यह भी जानकारी मिली है कि प्रशासन को इन सभी गतिविधियों के बारे में पता है, लेकिन किसी अज्ञात कारण से वे कोई कार्रवाई करने से हिचक रहे हैं।
इस मुद्दे पर जब कुछ स्कूल प्रशासकों से बात करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने किताबों की गुणवत्ता और पाठ्यक्रम के अनुसार चयन की बात कही। हालांकि, वे इस बात का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए कि क्यों कुछ विशेष प्रकाशकों की किताबें ही निर्धारित की जाती हैं और उनकी कीमतें इतनी अधिक क्यों होती हैं, और क्यों किताबों की बिक्री बिना किसी वैध बिल के स्कूल परिसर में की जा रही है।
अभिभावकों ने जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। उनका कहना है कि निजी स्कूलों द्वारा महंगी किताबों की बिक्री पर नियंत्रण लगाया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि छात्रों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण किताबें उपलब्ध हों। साथ ही, उन्होंने मांग की है कि स्कूल परिसर में बिना पक्के बिल के किताबों की बिक्री पर तत्काल रोक लगाई जाए और इस तरह की अनियमितताओं में शामिल स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। अब अभिभावक यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों प्रशासन जानकर भी अनजान बना हुआ है और कब उन्हें इस शोषण से मुक्ति मिलेगी।
इस बीच, कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी अभिभावकों के समर्थन में आवाज उठाई है। उनका कहना है कि शिक्षा एक बुनियादी अधिकार है और इसे महंगा नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाए और शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाए। उन्होंने प्रशासन की कथित निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए हैं और मांग की है कि उच्च अधिकारियों को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि प्रतापगढ़ के अभिभावकों को न्याय मिल सके।
अब देखना यह है कि जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग इस गंभीर मुद्दे पर क्या कार्रवाई करते हैं और प्रतापगढ़ के अभिभावकों को महंगी किताबों के बोझ और बिना बिल की बिक्री की समस्या से कब राहत मिलती है, खासकर तब जब प्रशासन पर जानकर भी कार्रवाई न करने के आरोप लग रहे हैं।

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