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भारत में मुस्लिम समाज के "लोहार-बढ़ई" का "पुश्तैनी" काम करने वालों को "सैफ़ी" कहा जाता है।,,रहीसुद्दीन सैफी

मेरठ सैफी संघर्ष समिति रजि० 161 के निवृत में हापुड़ रोड नूरजहां पैलेस हापुड़ रोड पर सैफी स्थापना 51 वा दिवस के मौके पर सर्व समाज का ईद मिलन समारोह वा सद्भावना सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें सर्व समाज के जिम्मेदार लोगों ने हिस्सा लिया तय किया गया समाज में बुराइयों को दूर कर भाईचारा मजबूत किया जाएगा समाज में फैली हुई कुरुतियो को दूर किया जाएगा शिक्षा पर जोर दिया जाएगा शादियों में फ़िज़ूल खर्चे पर रोक लगेगी होनहार बच्चों को शील्ड देकर सम्मानित किया गया जिसमें एमबीबीएस की छात्रा व हायर एजुकेशन के बच्चे शामिल थे तथा समाज की जिम्मेदार चौधरी के अध्यक्षों को पकडी पहन करके स्वागत किया इस प्रोग्राम की खासियत ये रही कि सभी समाज के लोगों ने भाग लिया भाईचारा मजबूत करने पर बल दिया

हुसैन अहमद सैफी ने बताया 51 वर्ष पूर्व सैफी नाम कैसे पड़ा

अब से करीब 51 साल पहले गांवों में अन्य बिरादरी के लोग "मिस्त्री" या "मियांजी" या फिर "खान साहब" कहकर पुकारते थे। उस ज़माने में बढ़ई बिरादरी के लोग पूरे साल जी तोड़ मेहनत करके किसानो की खेती के लिए लकड़ी के नये-नये "कृषि-यंत्र", और "हल" आदि बनाते थे। और साथ ही उनकी "मरम्मत" करते थे, और इतना सब कुछ करने के बाद बदले में बढ़ई बिरादरी के लोगों को अन्न और "अनाज" मिलता था जिससे वे अपना "भरण-पोषण" करते थे। इसी बीच देश की अन्य मुस्लिम बिरादरियों में "जागरूकता" आने लगी थी, और सभी बिरादरियों ने अपनी क़ौम का कुछ ना कुछ नया नाम चुन लिया था, जैसे -अंसारी, कुरैशी, अब्बासी, इदरीसी, सिद्दीकी, मंसूरी, मलिक, सलमानी, कस्सार, अलवी, वग़ैरह वग़ैरह।

लिहाज़ा बढ़ई बिरादरी के लोगों में भी "जागरूकता का "संचार" होने लगा और सैफ़ी बिरादरी के कुछ लोगों ने विचार विमर्श किया कि क्यों ना हम लोहार-बढ़ई मिलकर एक अच्छा सा "नाम" रख लें, ताकि मुल्क में हमें भी एक अच्छे से नाम से पुकारा जाए, और हम भी अपने बच्चों को अच्छी "तालीम" दिला सकें, हम भी दूसरी कौमों की तरह "तरक्की" कर सकें।

इसी "मक़सद" को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर मीटिंग/बैठकों का आयोजन किया जाने लगा।

बिरादरी का नाम रखने की कोशिशों एवं इन बैठकों का आयोजन करने में सैफ़ी बिरादरी के कुछ "मुख्य" एवं "महत्वपूर्ण लोगों" का विशेष योगदान रहा, जिन्होंने दिन-रात मेहनत करते हुए करीब तीन साल तक बिरादरी के लोगों में ऐसी बैठकें कीं, इन लोगों में चंद नाम यहाँ लिख रहा हूँ -
स्वतंत्रता सेनानी और अल-जमियत(उर्दू समाचारपत्र ) के संपादक हज़रत मौलाना उस्मान फारक़लीत साहब (पिलखुवा) मुल्ला सईद पहलवान (अमरोहा) डॉ. मेहरूद्दीन खान(मशहूर लेखक पत्रकार नवभारत टाइम्स) बाबू हनीफ बछरायूंनी, अली हसन सैफ़ी चकनवाला (पत्रकार व लेखक गजरौला) मौजी ख़ान एसीपी दिल्ली पुलिस (रमाला बागपत) हाजी अलीशेर सैफी, युसुफ सैफी, रशीद सैफ़ी सैदपुरीी (शायर व लेखक) मुहम्मद गुलाम जीलानी, मुहम्मद किफायतुल्लाह सैफी, अब्दुल हफीज़ सैफी, कामरेड हकीमुल्लाह सैफ़ी, नज़ीरुल अकरम सैफ़ी, मुहम्मद अतीक़ सैफ़ी(मुरादाबाद) नज़ीर अहमद सैफ़ी (बुलंदशहर) मुहम्मद अली सैफ़ी (बुलंदशहर) सुलेमान साबिर सैफ़ी (पिलखुवा ) एम. वकील सैफ़ी (लेखक दिल्ली) सहित हज़ारों सैफ़ी समाज के बुज़ुर्गों ने बहुत सारी मीटिंग्स की एवं बहुत सारे नाम बिरादरी के लियें प्रस्तावित किये, जिनमे *नूही*, *दाऊदी*, *सैफ़ी*, आदि नामों पर विचार किया गया। जिसमे सबकी राय मिलाकर एक नाम तय किया गया और वो नाम था *सैफ़ी*

यूँ तो बिरादरी का नाम चुनने को लेकर बहुत सारी मीटिंग्स हुईं, लेकिन मार्च 1975 में गुलावठी में एक शानदार "सम्मेलन" हुआ और इस सम्मलेन में नाम रखने को लेकर आगे की "रूपरेखा" तैयार की गई।

इसी कड़ी में "अथक मेहनत" और कोशिशें करने के बाद "6 अप्रैल 1975" को "अमरोहा" में एक "महासम्मेलन" रखा गया, जिसमे बढ़ई बिरादरी के हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया, और इसी "ऐतिहासिक महासम्मेलन" में स्वतंत्रता सेनानी और अल-जमियत (उर्दू समाचार पत्र) के संपादक एवं नेक बुज़ुर्ग हज़रत मौलाना मुहम्मद उस्मान फारक़लीत सैफ़ी साहब जोकि पिलखुवा ग़ाज़ियाबाद के रहने वाले थे, आपके ज़ेरे-साये में बढ़ई बिरादरी का नाम *सैफ़ी* रखा गया। और इस नाम से सभी खुश थे, क्योंकि "सैफ़ी" नाम के मायने बहुत अच्छे हैं, इस मौके पर सैफी संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रईसुद्दीन सैफी पूर्व मंत्री शकील भारती सैफी मंजूर सैफी बसपा के मंडल प्रभारी शाहजहां सैफी अब्बासी समाज की चौधरी इलियास चौधरी अंसारी समाज से बुंडू अंसारी सिख समाज से परविंदर सिंह इशू मलिक समाज से निजाम मलिक अल्वी समाज से फुरकान अली सत्तर कुरैशी सिद्दीकी समाज से हाजी जावेद डॉक्टर जर्रार सिद्दीकी कारी सफीकुर रहमान कासमी अफान कासमी कयूम सैफी दिलशाद सैफी फिरोज सैफी फैमुद्दीन जब्बार सैफी कारी शफीकुर्रमान ने दुआ कराकर प्रोग्राम का समापन किया गया!

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