अजमेरपुर भराड़ी में गूंजा संस्कृति का स्वर — तीन दिवसीय ग्रीष्मोत्सव मेला बना लोकजीवन का उत्सव ।।
Dr Ritik Sharma (Bharari)
, हिमाचल प्रदेश
जब परंपरा, उत्सव और लोकजीवन एक साथ मिलते हैं, तो जो चित्र उभरता है वो केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास बन जाता है। कुछ ऐसा ही दृश्य था अजमेरपुर में आयोजित तीन दिवसीय जिला स्तरीय ग्रीष्मोत्सव मेले का, जो न केवल भव्यता का प्रतीक बना, बल्कि क्षेत्रीय संस्कृति, भाईचारे और सौहार्द का गवाह भी।
पहले दिन की शुरुआत एक पारंपरिक शोभायात्रा से हुई, जिसमें बैलों को सजाकर गांव की गलियों से निकाला गया। ढोल-नगाड़ों की गूंज, पारंपरिक वेशभूषा में सजे युवक-युवतियां, और लोक गीतों की मिठास – पूरा अजमेरपुर उस पल जीवंत लग रहा था। शोभायात्रा के बाद बैलों का खूँटा गाड़कर मेले का विधिवत शुभारंभ किया गया – एक परंपरा जो गांव की जड़ों से जुड़ी हुई है।
मुख्य अतिथि के रूप में पधारे हिमाचल प्रदेश सरकार के माननीय कैबिनेट मंत्री श्री राजेश धर्माणी ने दीप प्रज्वलन कर मेले की शुरुआत की और अपने संबोधन में कहा –
“मेले किसी भी समाज की आत्मा होते हैं। ये न केवल हमें हमारी संस्कृति से जोड़ते हैं, बल्कि आपसी प्रेम, सौहार्द और एकता को भी मज़बूत करते हैं।”
इस बार की सबसे खास बात यह रही कि पहली बार ग्रीष्मोत्सव मेले में पशु मेले का आयोजन भी किया गया। इस पहल से पशुपालकों को मंच मिला और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिला।
महिला मंडलों, स्कूलों और बच्चों द्वारा प्रस्तुत किए गए सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने लोगों का दिल जीत लिया। हर प्रस्तुति में लोक संस्कृति की झलक दिखाई दी। नृत्य, गीत, नाटक और कविताएं – हर माध्यम से कलाकारों ने समाज के विविध रंगों को मंच पर प्रस्तुत किया। आयोजक समिति ने सभी प्रतिभागियों को प्रोत्साहन राशि देकर उनका हौसला भी बढ़ाया।
रात की सांस्कृतिक संध्या में जैसे ही स्थानीय कलाकारों ने मंच संभाला, तो लगता था मानो गांव की मिट्टी ने सुरों में गाना शुरू कर दिया हो। लोकगीतों की मिठास, लोकनृत्य की थाप और दर्शकों का उत्साह – हर कोई उन पलों को जी रहा था।
दूसरे दिन, कार्यक्रमों की श्रृंखला और भी रंगीन हो गई। महिला मंडलों और विद्यालयों के बच्चों ने दिन में विभिन्न प्रस्तुतियां दीं। मंच पर जब बच्चे पारंपरिक परिधानों में पहुंचे, तो लगता था जैसे संस्कृति ने खुद अपना रूप धर लिया हो।
शाम को आयोजित स्टार नाइट में जैसे ही सौरव शर्मा ने मंच संभाला, भीड़ ने तालियों और जयकारों से उनका स्वागत किया। उनकी प्रस्तुति ने माहौल को संगीतमय बना दिया, और दर्शक देर रात तक झूमते रहे।
तीसरे दिन, ग्रीष्मोत्सव ने एक पारंपरिक मोड़ लिया — छिंज (दंगल) का आयोजन। सुबह एक और भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें कलाकार, ग्रामीण, और पंचायत प्रतिनिधि शामिल हुए। मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री श्री राजिंदर गर्ग ने दंगल का उद्घाटन किया।
अखाड़े में उतरते पहलवानों के चेहरे पर जोश था और दर्शकों में रोमांच। कड़ी टक्कर के बाद गामा पहलवान ने बड़ी माली में विजय हासिल की और ₹35,000 की नकद राशि तथा परंपरागत गुर्ज प्राप्त किया। वहीं छोटी माली में शिवम बर्थिंग विजेता बने, जिन्हें ₹15,000 और गुर्ज प्रदान किया गया। यह मुकाबला केवल खेल नहीं, बल्कि परंपरा, सम्मान और ताक़त का प्रतीक था।
रात को फिर से संगीत का रंग बिखरा, जब मंच पर ‘गोझरिये’ फेम ईशांत भारद्वाज ने कदम रखा। उनकी ऊर्जा, गायन शैली और प्रस्तुति ने ऐसा समां बांधा कि पूरा मैदान थिरक उठा। अंतिम दिन की ये प्रस्तुति मेले को एक अविस्मरणीय अंत देने में सफल रही।
संगठन और समर्पण का अद्भुत उदाहरण
मेला प्रधान करतार सिंह चौधरी और मेला सचिव डॉ. जगदीश ने मंच से समापन भाषण में सभी विभागों, अतिथियों, प्रतिभागियों, ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं का हृदय से आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि
“यह मेला केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि हमारे गांव की आत्मा है। आने वाले वर्षों में इसे और भव्य रूप दिया जाएगा।”
उन्होंने विशेष रूप से SDM घुमारवीं गौरव चौधरी नायब तहसीलदार प्यारे लाल , बिजली विभाग, राजस्व विभाग , आईपीएच विभाग आदि का धन्यवाद किया, जिनके सहयोग से मेला सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
इस आयोजन में, आज़ाद चंद वर्मा, दीवाना राम चौधरी, डॉ. राज कुमार, अमी चंद सोनी, दिनेश शर्मा, सोहन लाल, अशोक बंथरा, राज शर्मा, अजय शर्मा, रंजीव चौधरी, रमेश शर्मा, यशवंत चौहान, मंजीत, इंदु शर्मा, डॉ. रवि शर्मा, श्याम लाल डॉ. ऋतिक शर्मा जैसे अनेक लोगों का विशेष योगदान रहा।
एक मेला जो राजनीति से ऊपर है
इस मेले की सबसे बड़ी विशेषता यही रही — कि यह राजनीति से ऊपर उठकर, समूह भावना, संस्कृति, और ग्राम्य आत्मा को केंद्र में रखकर आयोजित हुआ। न किसी दल का झंडा, न कोई विभाजन की रेखा – बस एक गाँव, एक समाज और एक परंपरा जो सबको जोड़ती है।
यह मेला सत्ता के नहीं, संस्कारों के रंग में रंगा हुआ था। यही इसकी सुंदरता है। यही इसकी गरिमा।
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