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वक़्फ़ (وقف) अरबी भाषा का शब्द है। इसका हिंदी में अर्थ दान, अर्पण या स्थायी रूप से समर्पित संपत्ति होता है।

कुछ पत्रकार और बिना जानकारी के बयान देने वाले लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि वक़्फ़ बोर्ड के पास पहले 36,000 एकड़ ज़मीन थी, जो अब 9,00,000 एकड़ कैसे हो गई। इससे पहले कि वे इस पर सवाल उठाएँ, उन्हें यह समझना चाहिए कि “वक़्फ़” का मतलब क्या होता है।

वक़्फ़ (وقف) अरबी भाषा का शब्द है। इसका हिंदी में अर्थ दान, अर्पण या स्थायी रूप से समर्पित संपत्ति होता है।

इसका मतलब होता है किसी संपत्ति को धार्मिक, सामाजिक या जनकल्याण के कार्यों के लिए स्थायी रूप से समर्पित कर देना, ताकि उसका उपयोग किसी विशेष समुदाय या समाज की भलाई के लिए किया जा सके।यानी मुसलमान अपनी ज़मीन को मुसलमानों के भले के लिए वक़्फ़ बोर्ड को दान करते रहे हैं, और इसी वजह से वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन समय के साथ बढ़ती गई।

लेकिन कुछ पत्रकार अज्ञानता में यह अफवाह फैला रहे हैं कि जहाँ भी मुसलमान नमाज़ पढ़ता है, वह ज़मीन वक़्फ़ की हो जाती है। यह सरासर झूठ और भ्रम फैलाने वाली बात है। किसी भी ज़मीन को वक़्फ़ तभी माना जाता है जब उसका मालिक उसे बाकायदा दान में दे देता है।

आजकल कई पत्रकार जिस तरह के सवाल कर रहे हैं, उससे साफ़ झलकता है कि उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई नहीं की, बल्कि उनका ज्ञान केवल “WhatsApp यूनिवर्सिटी” से आया है।

अब सवाल यह है कि जब हमारे पूर्वजों ने यह ज़मीन दान में दी, तो उसका असली मालिक कौन हुआ? अगर मोदी सरकार को लगता है कि वक़्फ़ बोर्ड सही तरीके से काम नहीं कर रहा, तो उसे इसका समाधान निकालना चाहिए। वक़्फ़ बोर्ड का अध्यक्ष राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है, और भाजपा शासित राज्यों में भी वक़्फ़ की संपत्तियाँ हैं। वे चाहें तो वहां वक़्फ़ संपत्तियों का सही इस्तेमाल करके एक आदर्श मॉडल बना सकते हैं और फिर पूरे देश में इस पर चर्चा कर सकते हैं।

लेकिन हकीकत यह है कि मोदी सरकार की मंशा वक़्फ़ संपत्तियों के सही इस्तेमाल की नहीं, बल्कि इन क़ीमती ज़मीनों को अपने करीबी उद्योगपतियों को सौंपने की है। उनकी दिलचस्पी ज़मीन हड़पने में ज़्यादा है, न कि वक़्फ़ संपत्तियों के विकास में।

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