logo

सिलीगुड़ी का इतिहास

सिलीगुड़ी, जिसे "उत्तरी भारत का प्रवेश द्वार" भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक और परिवहन केंद्र है जो पूर्वोत्तर भारत को मुख्य भारत से जोड़ता है। यह शहर महानंदा नदी के किनारे बसा है और चाय, आवागमन, पर्यटन और इमारती लकड़ी के लिए प्रसिद्ध है.
सिलीगुड़ी का इतिहास:

प्राचीन काल:
सिलीगुड़ी कभी सिक्किम राज्य का एक छोटा सा कृषि प्रधान गाँव था.

नेपाल का प्रभाव:
1788 में, नेपाल राज्य ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा लिया, जिसके बाद किराती और लेप्चा लोग यहाँ आकर बस गए.
व्यापार का केंद्र:
उस समय, सिलीगुड़ी के दक्षिण में महानंदा नदी पर फाँसीदेवा नामक बंदरगाह मालदा, बंगाल और बिहार के साथ व्यापार संबंध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था.
रेलवे का विकास:
हालाँकि यह बस्ती शुरू में चाय के बागान और 1880 में दार्जिलिंग के लिए टॉय ट्रेन में बदलने के लिए एक जंक्शन स्टेशन के साथ शुरू हुई थी, लेकिन 1907 में इसे उप-विभागीय शहर का दर्जा प्राप्त हुआ.
नगर पालिका का दर्जा:
1931 में इसे नगर पालिका घोषित किया गया था.
आजादी के बाद:
1947 में भारत और पाकिस्तान में उपमहाद्वीप के विभाजन और 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद, शहर एक भीड़भाड़ वाला शरणार्थी केंद्र बन गया.
शैक्षणिक केंद्र:
इसमें उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय (1962 में स्थापित) से संबद्ध कई कॉलेज हैं.
पर्यटन:
सिलीगुड़ी अपने अविश्वसनीय दृश्यों और जीवंत खरीदारी स्थलों के लिए प्रसिद्ध है.
वर्तमान स्थिति:
यह पश्चिम बंगाल का तीसरा सबसे बड़ा शहरी समूह है.

सिलीगुड़ी की विशेषताएं:

स्थान:
यह पूर्वी हिमालय की हरी-भरी तलहटी में बसा है.

नदी:
महानंदा नदी के किनारे स्थित है.
व्यापार और परिवहन:
यह दार्जिलिंग और सिक्किम के व्यापार का केंद्र है.
संस्कृति:
यहाँ बंगाल की पारंपरिक संस्कृति और तिब्बती मठों की झलक देखी जा सकती है.
पर्यटन स्थल:
मधुबन पार्क, उत्तर बंगाल विज्ञान केंद्र, सिपाही धुरा चाय बागान और सेवक काली मंदिर सिलीगुड़ी के कुछ लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं.

6
2663 views
  
1 shares