भारतीय इतिहास संगीत सिलेक्शन समिति की बैठक बिलासपुर में हुई बैठक की अध्यक्षता संगठन मंत्री शेर सिंह ने की तथा बिलासपुर इ
हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर/कहलूर/व्यासपुर रियासत का इतिहास आज से हजारों वर्ष पहले का है की मालवा यानी अब के मध्य प्रदेश में चंदेल एक क्षत्रिय राज्य करते थे उनकी राजधानी चंदेरी में थी उनका राज्य बहुत दूर-दूर तक फैला हुआ था राजा भी बहुत पुराना था और 50 पीडिया से चला आ रहा था वहां के राजाओं की 49 वीं पीढ़ी में महाराजा एलदेव नाम के एक राजा हुए थे जो धर्म पर चलकर बहुत न्याय से राजा करते थे उन दोनों लोग सारी उम्र कम नहीं करते थे बल्कि जब वह लोग बूढ़े हो जाते थे तब अपना काम धंधा और घर भर छोड़कर ईश्वर भजन करने के लिए बाद प्राप्त हुआ संन्यास लेकर जंगलों में चले जाते थे महाराजा एलदेव भी जब बूढ़े हो गए तब अपना राजा छोड़कर उत्तराखंड यानी आप हिमाचल बिलासपुर/व्यासपुर में तप करने के लिए चले चले आए उन दिनों आज कल की तरह रेलवे और मोटर तो थी नहीं यहां तक की अच्छी सड़के भी बहुत कम थी इसीलिए खुद ही समझ सकते हैं कि उन दोनों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा। उत्तराखंड की दूसरी तरफ हिमालय में कुछ दिनों तक रहने के बाद यानी बिलासपुर/बिलासपुर में महाराज एलदेव का स्वर्गवास हुआ वह उनकी धर्मपत्नी महारानी विमला देवी भी उनके साथ सती हुई उसे समय उनके राजकुमारों ने एक अच्छा मंदिर बना कर उसमें महाराज एलदेव और महारानी विमला देवी की मूर्तियां रखी थी या मंदिर आज तक बिलासपुर नगर में है और रंगनाथ मंदिर का रहता है तभी से अक्षर चंदेरी के राजा इस मंदिर में दर्शन के करने के लिए बिलासपुर आया करते थे लेकिन इस नगर का नाम बिलासपुर नहीं था बल्कि व्यासपुर था और इसका कारण था कि इस नगर के पास ही एक व्यास गुफा है जो महर्षि वेदव्यास जी की गुफा कहलाती है या वही व्यास जी या वेदव्यास है जिन्होंने चार वेद 18 पुराने का 108 वर्ष उपनिषदों के रचयिता माने जाते हैं उनकी जन्म भूमि मातृभूमि करती है उन्हीं के नाम से या व्यासपुर करता था या व्यास गुफा व्यासपुर से शुरू होकर महर्षि मारकंडे की जन्म भूमि मातृभूमि तपो चली मकड़ी मार्केट जुखला दावी घाटी में जाकर निकलती है जो दोनों तरफ से प्रत्यक्ष प्रमाण विद्यमान है है यह व्यास गुफा आधे रास्ते से बंद पड़ी है और बहुत ही संकीर्ण और छोटी है उससे आगे जाना मुश्किल है इसके जीर्णोद्धार की आवश्यकता है जैसे की मां भगवती वैष्णो देवी की गुफा का जूलोकर किया गया है उसे गर्ग गुफा के नाम से जाना जाता है उसी तर्ज पर महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य महर्षि मारकंडे की व्यास गुफा का जीवन आधार कर विकसित किया जा सकता है जब रियासत बिलासपुर में सड़क मार्ग बाय घागरस या नानी ,ब्रह्मपुत्र, से का मार्ग नहीं था तब लोग बंजारा धार की चोटी को कुनाला, रघुनाथपुर, कोठीपुरा से पैदल चढ़ाई चढ़कर महर्षि वेदव्यास की तैयारी से महर्षि मार्कंडेय तीर्थ स्थल दावी घाटी तब मरकंड मकड़ी तीर्थ स्थल दावीं घाटी पहुंचते थे और महर्षि वेदव्यास जी व्यास गुफा के मार्ग से अपने शिक्षा मारकंडे से मिलने मरकंड जाया करते थे इस के प्रत्यक्ष प्रमाण महर्षि वेदव्यास जी की जन्मस्थली ब्याज गुफा नए बिलासपुर बस स्टैंड लक्ष्मी नारायण मंदिर आनंद पैलेस के नीचे की तरफ लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर भाखड़ा बांध परियोजना के कारण बनी गोविंद सागर झील के 1700 फुट समुद्र जलस्तर के बाहर महर्षि वेदव्यास जी की गुफा भी विद्यमान है उसे स्थान पर महर्षि वेदव्यास की आशा धातु की प्रतिमा मूर्ति विद्यमान है इस व्यास गुफा में लगभग कर के बाहर 300 मीटर की दूरी पर हनुमान जी की मूर्ति भी है या इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि बिलासपुर का पुरातन नाम बिलासपुर था पुराना शहर सांडू का विशाल मैदान रंगनाथ मंदिर तथा अन्य सैकड़ो मंदिर जलमग्न हो चुके हैं अब उन मंदिरों की आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त प्रतिमाएं मूर्तियां नए शहर बिलासपुर बस स्टैंड दियारा सेक्टर नंबर 1 लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास पुरातन शैली के बने मंदिर में पुराने शहर बिलासपुर से लाई गई मूर्तियां रखी गई है हर वर्ष रंगनाथ मंदिर में 15 में से 15 जून तक जिला बिलासपुर के लोग अपनी नई फसल गेहूं का प्रसाद नसरानावा चढ़ाते हैं तथा महाराजा एलदेव वह महारानी विमला देवी जिन्होंने इस महर्षि वेदव्यास की तपोस्थली जन्मस्थली में तपस्या करते हुए ग्रामीण हुए हैं उनके आशीर्वाद लेते हैं क्योंकि उन्हें के वंशजों में राजा वीर चंद ने इस रियासत बिलासपुर/कहलूर/व्यासपुर की स्थापना की थी??????