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अनुशासन


अनुशासनहीनता स्वयं के जीवन को तो
विनाश की तरफ ले ही जाती है साथ ही साथ
दूसरों के लिए भी विनाश का कारण बन जाती है।

पानी अनुशासन हीन होता है
तो बाढ़ का रूप धारण कर लेता है।
हवा अनुशासन हीन होती है
तो आँधी बन जाती है
और अग्नि यदि अनुशासन हीन हो जाती है
तो महा विनाश का कारण बन जाती है।

अनुशासन में बहकर ही एक नदी सागर तक
पहुँचकर सागर ही बन जाती है।
अनुशासन में बँधकर ही एक बेल जमीन से
ऊपर उठकर वृक्ष जैसी ऊँचाई को प्राप्त कर पाती है
और अनुशासन में रहकर ही वायु
फूलों की खुशबु को अपने में समेटकर
स्वयं भी सुगंधित हो जाती है
व चारों दिशाओं को सुगंध से भर देती है।

गाड़ी अनुशासन में चले तो सफर का आनंद
और बढ़ जाता है।
इसी प्रकार जीवन भी अनुशासन में चले तो
जीवन यात्रा का आनंद और बढ़ जाता है।
जीवन का घोड़ा निरंकुशता अथवा उच्छृंखलता का
त्याग करके निरंतर प्रगति पथ पर अथवा तो अपने
लक्ष्य की ओर दौड़ता रहे उसके लिए अपने हाथों में
अनुशासन रुपी लगाम का होना भी
परमावश्यक हो जाता है !

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