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लखीमपुर खीरी में एक बार फिर प्रशासन का दोहरा रवैया उजागर हुआ है

पत्रकारिता का हनन अब बर्दाश्त नहीं – वन कॉल मीडिया हेल्पलाइन ने लिया दीपक पंडित मामले में संज्ञान

लखीमपुर खीरी में एक बार फिर प्रशासन का दोहरा रवैया उजागर हुआ है। अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में लचर पुलिस तंत्र, जब किसी पत्रकार की बात आती है, तो बेजोड़ फुर्ती दिखाता है। पत्रकार व मशहूर यूट्यूबर दीपक पंडित के खिलाफ कल ही मुकदमा दर्ज हुआ और उसी दिन गिरफ्तारी भी हो गई।

इस मामले ने मीडिया जगत को झकझोर दिया है। वन कॉल मीडिया हेल्पलाइन, नई दिल्ली ने इस प्रकरण का संज्ञान लेते हुए इसे पत्रकारिता पर सीधा हमला करार दिया है।

क्या अपराधियों के लिए नहीं, सिर्फ पत्रकारों के लिए सक्रिय है पुलिस?

सवाल यह उठ रहा है कि जब खीरी पुलिस इतनी मुस्तैद है, तो फिर यह सक्रियता बड़े अपराधों के मामलों में क्यों नहीं दिखती? इस घटना ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

बिजुआ ब्लॉक का एक कंप्यूटर ऑपरेटर – जिसने कुछ ही वर्षों में आय से अधिक संपत्ति अर्जित कर ली, वह आज इतना ताकतवर हो गया कि उसकी पोल खोलने वाले पत्रकार को उसी दिन जेल भेज दिया गया। आखिर यह व्यक्ति इतना प्रभावशाली कैसे बन गया?

भ्रष्टाचार को उजागर करने की सजा – पत्रकार पर मुकदमा

पत्रकार दीपक पंडित ने जब इस भ्रष्टाचार को सामने लाने की कोशिश की, तो इस ताकतवर ऑपरेटर ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग कर उन्हीं पर मुकदमा दर्ज करवा दिया। यही नहीं, कुछ ही घंटों में गिरफ्तारी तक हो गई। सवाल उठता है –

क्या प्रशासन इस भ्रष्टाचारी को बचाने में लगा है?

अगर यह ऑपरेटर निर्दोष है, तो उसे बचाने की इतनी कोशिशें क्यों हो रही हैं?

क्या अब भ्रष्टाचार उजागर करने वाले पत्रकारों को झूठे मुकदमों में फंसाकर चुप कराया जाएगा?

पत्रकारों के लिए यह सिर्फ एक केस नहीं, पूरे मीडिया जगत पर हमला

वरिष्ठ पत्रकार एनके मिश्रा ने इस मामले को लेकर बिजुआ चौकी से लेकर एसपी खीरी तक फोन किया, लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला। यह साफ संकेत है कि पुलिस सत्ता के इशारे पर काम कर रही है और निष्पक्ष पत्रकारिता को दबाने की कोशिश हो रही है।

वहीं, अनुराग सारथी (चीफ कोऑर्डिनेटर, ऐप्जा) ने इस पूरे मामले में दमदार उपस्थिति दर्ज कराई और पत्रकारों का मनोबल बढ़ाया। उनका कहना है कि यह सिर्फ दीपक पंडित के खिलाफ एफआईआर नहीं, बल्कि हर उस पत्रकार के खिलाफ एफआईआर है जो सच बोलने की हिम्मत रखता है।

पत्रकारों को एकजुट होने की जरूरत – अब चुप रहना गलत होगा!

अब वक्त आ गया है कि पत्रकार संगठन आपसी मतभेद छोड़कर एकजुट हों और इस अन्याय के खिलाफ दमदार तरीके से आवाज़ उठाएं।

अगर आज चुप रह गए, तो कल हर ईमानदार पत्रकार इसी तरह निशाना बनाया जाएगा। प्रशासन और सत्ता को यह एहसास कराना जरूरी है कि कलम को दबाया नहीं जा सकता।

खीरी पुलिस का दोहरा चेहरा उजागर – बड़े अपराधों में ढील, पत्रकार पर त्वरित एक्शन!

खीरी जिले की पुलिस, जो आमतौर पर संगीन अपराधों में हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है, इस बार एक पत्रकार के खिलाफ त्वरित कार्रवाई कर चर्चा में आ गई है। आम जनता से लेकर पत्रकार जगत तक, हर कोई सवाल उठा रहा है कि आखिर पत्रकार दीपक पंडित के खिलाफ इतनी जल्दबाजी क्यों?

जनता में आक्रोश – सत्ता के दबाव में काम कर रही पुलिस?
मीडिया रिपोर्ट्स और जनचर्चाओं के अनुसार, इस मामले के पीछे सत्ता से जुड़े प्रभावशाली जनप्रतिनिधियों का हाथ बताया जा रहा है। जब खीरी जिले में बड़े-बड़े अपराधों पर पुलिस कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती, तो फिर एक पत्रकार के मामले में इतनी मुस्तैदी क्यों दिखाई गई? क्या पत्रकार दीपक पंडित का अपराध इतना बड़ा था कि आनन-फानन में मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया गया?

एसपी संकल्प शर्मा की भूमिका संदेह के घेरे में

संवेदनशील मामलों में निष्क्रिय रहने वाली खीरी पुलिस ने इस बार अपनी सारी जांबाज़ी एक कलमकार पर दिखा दी। जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) संकल्प शर्मा इस मामले पर खुलकर कुछ भी कहने से बचते रहे। छह घंटे तक जब पत्रकार समुदाय ने पुलिस अधीक्षक से संपर्क साधने की कोशिश की, तो उनकी तरफ़ से कोई सीधा जवाब नहीं मिला। बल्कि, पीआरओ के ज़रिए पत्रकारों को गुमराह करने की कोशिश की गई।

अब सवाल उठता है कि क्या एसपी किसी दबाव में हैं? क्या उन्हें सच बोलने वालों को जेल भेजने का आदेश मिला था? आखिर ऐसे कौन से कारण थे, जिनके चलते वह स्वयं मीडिया से बात करने के बजाय एकांतवास में चले गए?

न्याय की लड़ाई – अधिवक्ता सूरज सिंह ने उठाई आवाज़

इस मामले में पत्रकार दीपक पंडित की ओर से अधिवक्ता सूरज सिंह ने पैरवी की। उन्होंने बताया कि न्यायालय ने इस केस में अगली सुनवाई के लिए कल की तारीख तय की है और साथ ही भीरा थाना प्रभारी (एसओ) को अदालत में तलब किया है। यह आदेश कहीं न कहीं पुलिस प्रशासन की जल्दबाजी और पक्षपातपूर्ण कार्रवाई पर सवाल खड़ा करता है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई – क्या सिस्टम से हार जाएगा सच?

आज एक बार फिर यह साबित हो गया कि जब कोई पत्रकार भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग और पुलिस की लापरवाही के खिलाफ आवाज़ उठाता है, तो उसे झूठे मामलों में फंसाकर जेल भेजने की साज़िश रची जाती है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या पत्रकार और सिस्टम के बीच के रिश्ते हमेशा ऐसे ही रहेंगे? क्या कलम की ताकत को सत्ता के इशारों पर कुचला जाएगा? या फिर इस अन्याय के खिलाफ उठी आवाज़ एक बड़ा आंदोलन खड़ा करेगी?

इस लड़ाई को यहीं खत्म नहीं किया जाएगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ यह संघर्ष जारी रहेगा। क्योंकि, जब अन्याय होता है और हम चुप रहते हैं, तो हम भी दोषी बन जाते हैं!

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