मोह माया जाल
(मोह-माया जाल)
है जीव ना तु माया मे भटक,
यह है खेल,
मोह-माया का।
फँस जाएगा,
इस संसारी जाल में।
अहंकारी घड़े में सर से ऊपर पानी
जाति का करता अभियान,
हिंदू कहते है , हम बड़े
मुस्लिम कहे हम,
पोथी पीढ़ी पीढ़ी में
मेरा धर्म महान हैं।
ना जाति में बँटा
ना धर्म में,
ना बँटा मंदिर, मस्जिद में।
जीव - जीव में बसे,
हरि का बसेरा।
ना तु बड़ा, ना बड़ा मैं
यह हरि का है खेल।
ना तू मालिक, ना मालिक मैं
तू खिलौना, मैं खिलौना
मालिक सृष्टि निर्माता खेल रहा है ,
यह खेल।
कविता चौधरी (राजस्थान)