क्या देश में अब अदालतें सिर्फ़ दिखावा रह गई हैं?
नागपुर हिंसा के आरोपी का घर बुलडोज़र से ढहा दिया गया। सोचने वाली बात है, “आरोपी” का घर! यानी अभी जुर्म साबित नहीं हुआ, सिर्फ़ आरोप लगा और सरकार ने घर गिरा दिया। अगर इसी तरह महज़ आरोप पर सज़ा दी जाएगी, तो फिर अदालतों की ज़रूरत क्या है? करोड़ों रुपये जनता का पैसा जजों की मोटी तनख़्वाह में झोंका जा रहा है, आखिर किस लिए?
अगर फैसला सड़क पर ही होना है, तो सबसे पहले उन अदालतों पर बुलडोज़र चलाओ, उन बेकार जजों को बर्ख़ास्त करो जो सालों तक फाइलें धूल खाते रहने देते हैं। इंसाफ़ का मज़ाक बना दिया गया है। लोकतंत्र की जगह अब “बुलडोज़र तंत्र” चल रहा है। याद रखो, एक दिन यही आग हर घर तक पहुंचेगी।