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रोज़ों के दरजात

रोज़ों के दरजात

हज़रत सहल (रदी अल्लाहु अनहु) से रिवायत है कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया: "जन्नत में एक दरवाज़ा है जिसे अर-रयान कहा जाता है, और जो लोग रोज़े रखते हैं वे क़यामत के दिन उसमें दाख़िल होंगे और उनके अलावा कोई भी उसमें दाख़िल नहीं हो सकता।

यह पूछा जाएगा, 'कहां हैं वे जो रोज़ा रखते थे?' वे उठेंगे, और उनके सिवा और कोई उस में से दाख़िल नहीं हो पाएगा। उनके दाख़िल होने के बाद दरवाज़ा बंद कर दिया जाएगा और कोई भी उसमें से दाख़िल नहीं हो पाएगा।" (सहीह अल-बुखारी, किताब 30, हदीस 6)।

हुज्जतुल-इस्लाम इमाम ग़ज़ाली (क़द्दास अल्लाहु सिर्राहु) ने फ़रमाया कि रोज़े के तीन दरजात होते हैं। पहला है मामूली रोज़ा जिसका मतलब है खाना, पानी और अंतरंग संबंधों से दूर रहना।

दूसरा ख़ास रोज़ा है जिसका मतलब है अपने कान, आंख, जीभ, हाथ और पैर और अन्य सभी अंगों को गुनाह से पाक रखना।

तीसरा ज़्यादा ख़ास फाज़िल रोज़ा है जिसका मतलब है दिल का रोज़ा ना हक़ फिकरों और दुनियावी ख़यालातों से। यह रोज़ा अंबिया (अलैहिस्सलाम), सच्चे वलियों और अल्लाह के दोस्तों का है। दीनी मामलों के लिए ज़रूरी दुनियावी ख़यालात के अलावा अल्लाह के अलावा कुछ और सोचने से यह रोज़ा टूट जाता है।

दुआ:

इश्क दे महबूब का हम को या इलाहुल आलमीन,
सैय्यदतिना मासूमा हज़रत फ़ातिमा (रदी अल्लाहु अन्हा) के वास्ते

सिलसिला - ए - आलिया ख़ुशहालिया !!

(संदर्भ: इमाम ग़ज़ाली की इस्लामी उपासना के आंतरिक आयाम, मुहतर हॉलैंड द्वारा अनुवादित, पृष्ठ 75)

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