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लकड़ी की जगह उपले जलाये होली में, गले की जगह दिलों को मिलाये

पिछले वर्ष होली पर कोरोना की आहट सुनाई दी थी, इसलिए नागरिकों ने थोड़ी बहुत सर्तकता के बाद रंगों का यह त्यौहार जोरशोर से मनाया था और गले मिलकर एक दूसरे को खूब बधाईयां भी दी गई थी।

इस वर्ष कोरोना मरीजों की संख्या पिछले वर्ष इन दिनों के मुकाबले काफी ज्यादा है इसलिए हमें ऐसा प्रयास करना होगा कि होली का यह पावन रंगों भरा त्यौहार भी मना ले और हमें या हमारे किसी भाई को इसके कारण किसी समस्या या बिमारी झेलने के लिए भी न मजबूर होना पड़े। पुलिस और प्रशासन ने बढ़ते कोरोना के प्रभाव के बाद भी हमें घरों में कैद करने का प्रयास नहीं किया है इसलिए हमें भी होली में गले मिल बिमारियां लेने देने की बजाए दिल मिलाने की कोशिश दूरियां रखकर करनी होगी।


होली पर संस्कृति व संस्कारों के साथ पर्यावरण संरक्षण की भी चिंता हमें करनी होगी। उत्तर प्रदेश के उन्नाव, जालौन और मध्य प्रदेश के ग्वालियर समेत देशभर में कई जगहों पर हरियाली को नवजीवन देने के लिए गाय के गोबर से बने उपलों से होलिका दहन हो इसके लिए बड़े पैमाने पर गोकाष्ठ तैयार किए जा रहे हैं। कई संस्थाएं जागरूकता अभियान चला रही हैं।

सभी जानते है कि होली से एक दिन पूर्व देश के गांव-गांव में होलिका दहन होता है। एक अनुमान के अनुसार एक स्थान पर दो से तीन क्विंटल लकड़ी जलाई जाती है। कुछ जगहों पर इसके लिए हरे-भरे पेड़ भी काट दिए जाते हैं, जबकि इन्हें तैयार होने में सालों लग जाते हैं। पर्यावरण को इसका बड़ा नुकसान है। आक्सीजन के बड़े स्रोत तो खत्म होते ही हैं, लकड़ी जलाने पर इसके धुएं से निकलती कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड, सल्फर नाइट्रेट एवं नाइट्रोजन आक्साइड जैसी गैसें स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है।

जबकि एक जगह होलिका दहन में लगभग एक क्विंटल गोबर के उपलों की जरूरत होती है, जिसकी कीमत 500 रुपये बताई जाती है। पर्यावरण के लिहाज से भी यह अहम है। केवल दो फीसद नमी होने के कारण धुआं बहुत कम होता है और कार्बन मोनोआक्साइड गैस नहीं निकलती है। इसके धुएं में हल्की कार्बन डाइआक्साइड और नाइट्रेट होती है। यदि देसी घी, कपूर, लौंग मिला दिए जाएं तो इन गैसों का भी प्रभाव खत्म हो जाता है।

ग्वालियर की समाजसेवी ममता कुशवाह ने गोबर के उपले निर्माण हेतु मशीन बनाई है। बताते हैं कि उनकी बनाई मशीनें कानपुर, जयपुर, मुंबई, सागर, कटनी, भींड, मुरैना, सबलगढ़, रायसेन, दिल्ली तक भेजी जा चुकी हैं। एक मशीन की कीमत 60 हजार रुपये है। इसे चलाने में दिनभर में करीब 100 रुपये की बिजली की खपत होती है। मगर प्रदूषण से मुक्ति मिल जाती है।

मुझे लगता है कि पर्यावरण संतुलन बनाये रखने और होली पर जो लकड़ी की बर्वादी होती है उसे रोकने के लिए ग्वालियर की ममता कुशवाहा ने जो मशीन बनाई है उसका उपयोग कर गोबर के उपले बनाकर होली जलाने के काम में उन्हें लिया जाना चाहिए। इससे जहां मुश्किल में तैयार और हमें हरियाली देने वाले वृक्षों को बचाया जा सकता है उसी प्रकार इनके जलने से जो प्रदूषण पैदा होता उससे होने वाले नुकसानों से भी बचाव होगा।

होली दिवाली हमारे यहां ऐसे त्यौहार है जो देशभर में जोरशोर से मनाये जाते है और पूर्व में लगे लाॅकडाउन की अवधि को छोड़ दे तो इनको मनाये जाने के आर्कषण से हम बच नहीं सकते। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आओ होली तो हम पूरे उत्साह से मनाये और अपने और अपनों को इससे कोई नुकसान न हो इसलिए सोशल डिस्टेसिंग का पालन और मास्क लगाकर यह अपनों का शहर है सबसे दूरी बनाकर हाथ जोड़कर मिला करो को आत्मसात कर अगर हम इस व्यवस्था से यह त्यौहार मनायेंगे तो मुझे लगता है कि हमें ना कुछ नुकसान होगा ना सामने वाले को त्यौहार मनाने का उत्साह बना रहेगा और हम बिमारी से भी बचे रहेंगे। तो दोस्तों कोरोना संक्रमितों की संख्या में कमी लाने के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे उपायों में सहयोग होली पर पुलिस और प्रशासन द्वारा बनाई जा रही व्यवस्थाओं में अपना साथ देकर होलिका में उपले ज्यादा लकड़ी कम जलाने का संकल्प लेकर रंग और गुलाल दूर से लगाने और खुशी के साथ यह त्यौहार मनाने का प्रयास करें। कहते है कि जीवन है तो जहान है हमें स्वस्थ और ठीक रहेंगे तो त्यौहार आते ही रहेंगे। यह कोई कुंभ का मेला तो है नहीं जो 12 साल बाद आयेगा और कोरोना हमेशा रहेंगा नहीं इसलिए खुद भी संयम रखने और औरों को भी इसके लिए तैयार कर अपने को सुखी और निरोगी बनाये रखे।
और वैसे भी इस वर्ष तो मार्च का आखिरी और अप्रैल का शुरू साप्ताह बड़ा ही शुभ है क्योंकि इस दौरान हम सभी देशवासियों द्वारा मनाये जाने वाला कोई न कोई त्यौहार पड़ रहा है जो एक दूसरे को जोड़ने और भाईचारे की डोर को मजबूत और साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ाने में महत्वपूर्ण है।

– रवि कुमार विश्नोई
सम्पादक – दैनिक केसर खुशबू टाईम्स
अध्यक्ष – ऑल इंडिया न्यूज पेपर्स एसोसिएशन
आईना, सोशल मीडिया एसोसिएशन (एसएमए)
MD – www.tazzakhabar.com

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