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तीरथ सिंह रावत को सीएम की कुर्सी, कांटों भरा ताज

बीते दिनों से उत्तराखंड  में शुरू हुई राजनीतिक उठापटक पर गुरुवार को विराम लग गया है। प्रदेश में बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के उत्तराधिकारी के तौर पर तीरथ सिंह रावत को चुना है। इसके साथ ही पार्टी में मची खलबली पर भी विराम लग गया है। राज्य में ​त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर उनकी जगह तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी करके भाजपा हाईकमान ने पार्टी विधायकों के असंतोष शांत करने में फिलहाल कामयाबी हासिल कर ली है, लेकिन अभी सबकुछ ठीक ठाक हो गया है, यह कहना जल्दबाजी होगी।

उत्तराखंड में भाजपा विधायक त्रिेवेंद्र सिंह रावत के काम करने के तौर तरीकों से काफी खफा थे। उन्होंने पार्टी हाईकमान से उन्हें हटाने की मांग की थी। उनका कहना था कि त्रिेवेंद्र सिंह रावत के रहते अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी का सत्ता में वापस आना मुश्किल होगा। यह ठीक ही हुआ कि पार्टी हाई कमान ने असंतुष्ट विधायकों के बढ़ते असंतोष को देखते हुए राज्य में तत्काल नेतृत्व परिवर्तन का फैसला किया। हालांकि, यह ठीक है कि पार्टी हाईकमान ने जाहिरा तौर पर विधायकों का असंतोष खत्म कर दिया, लेकिन यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि नये मुख्यमंत्री के चयन में पार्टी के विधायकों की राय लेने के बजाय पार्टी हाईकमान ने अपनी मर्जी से  नये सीएम का चयन किया। ऐसी स्थिति में यह भी देखने वाली बात होगी कि नये मुख्यमंत्री पार्टी विधायकों तथा मुख्यमंत्री पद की दौड़ में लगे पार्टी के दिग्गज नेताओं के साथ कहां तक संतुलन रख पाते हैं।

तीरथ सिंह रावत प्रदेश बीजेपी के लिये कोई नया चेहरा भी नहीं है। वे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव भी है। हालांकि उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में तीरथ सिंह को मात्र एक साल में प्रदेश बीजेपी में चल रहे असंतोष को भी कम करना होगा। यहीं नहीं आमजनों के भी उम्मीद पर भी खरा उतरना होगा। साथ ही विपक्ष के भी प्रहार का भी कारगर जवाब देना होगा। यानी तीरथ सिंह को कुर्सी ऐसे समय में मिली है जब चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। 


तीरथ सिंह के सामने कई चुनौतियां भी रहेगी। वे प्रदेश के गढ़वाल से फिलहाल सांसद है। तीरथ सिंह का बीजेपी और आरएसएस से दशकों पुराना नाता रहा है। वे साल 1983 से 1988 तक आरएसएस के प्रचारक भी रहे। वे विद्यार्थी परिषद से छात्र जीवन में ही जुड़ गए थे। वे अभाविप परिषद के राष्ट्रीय मंत्री भी रहे हैं, फिर वे भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े। यहीं नहीं नए राज्य के गठन के बाद वे पहले शिक्षा मंत्री भी रहे है। वे प्रदेश बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। इसके बावजूद जब उन्हें सीएम बनाया गया है तब कई चुनौती भी सामने खड़ी होगी।


महज साल भर के भीतर ही सियासी शतरंज कुछ ऐसी ही अग्नि परीक्षा से राज्य के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को गुजरना है। चूंकि, उन्होंने अपने सियासी सफर की शुरुआत एबीवीपी और आरएसएस से की है, इसलिये वे बखूबी जानते-समझते हैं कि जिन हालातों में पार्टी नेतृत्व ने सीएम पद का ताज उनके उनके सिर पर रखा है, उसमें फूलों से ज्यादा कांटे हैं।


निसंदेह, रावत की छवि तड़क-भड़क से दूर रहने वाले एक ऐसे सादगी पसंद नेता की बनी हुई है जो बोलने में कम और लोगों की सुनने में ज्यादा विश्वास रखते हैं क्योंकि वे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की तरह संघ के प्रचारक रहे हैं और प्रचारकों का यही सबसे बड़ा गुण होता है। अगले महीने 9 अप्रैल को अपने जीवन के 57 बरस पूरे कर रहे रावत अगर पार्टी की दोबारा सत्ता में वापसी चाहते हैं, तो उन्हें सबसे पहले राज्य की बेलगाम हो चुकी अफसरशाही की नकेल कसनी होगी।

मुख्यमंत्री की कुर्सी से रुखसत हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत की के खिलाफ पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा ऐसी शिकायतों की ही भरमार रही. मसलन,अगर सरकार के मंत्री ही पार्टी आलाकमान के आगे आकर यह रोना रोयें कि उनकी बुलाई बैठकों में विभाग के अफसर ही नहीं आते, उनकी बात ही नहीं सुनते तो वे उनसे भला कैसे काम करवायें। जिस सूबे में मंत्रियों की हालत ऐसी बेचारगी की हो जाये, तो समझा जा सकता है कि वहां बीजेपी के विधायकों व जिला स्तर के नेताओं की भला कौन-कितनी सुनता होगा।

लिहाजा, नए मुख्यमंत्री को अफसरों पर लगाम कसने के साथ ही विकास के उन तमाम कार्यों की रफ्तार तेज करनी होगी, जिसके कारण लोगों में बीजेपी सरकार के प्रति नाराजगी पैदा हुई है। प्रशासन का शुद्धिकरण करने के लिये हो सकता है कि उन्हें त्रिवेंद्र सरकार के ही कुछ फैसलों को पलटने का साहसी कदम भी उठाना पड़े।

कांग्रेस से आए विधायकों को मैनेज करने के साथ ही गढ़वाल और कुमाऊं के बीच संतुलन बनाए रखना भी उनके लिए कम चुनौती भरा काम नहीं है। उन्हें त्रिवेंद्र रावत की इस गलती को भी दोहराने से बचना होगा कि सिर्फ एक विशेष वर्ग के लोगों की हर जगह महत्व दिया जाये।
                                                                                      - महेश शर्मा

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