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युवा पीढ़ी जीवन में अपनाएं महान आदर्शों को,नशा है नाश का द्वार!

युवा पीढ़ी जीवन में अपनाएं उच्च आदर्श:नशा है नाश का द्वार!

वर्तमान समय में युवा पीढ़ी में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति एक स्वस्थ समाज के विकास में रोड़ा बन गई है। आज प्रतिदिन प्रदेश में कई घटनाएं नशे की सामने आ रही हैं जो कि युवा पीढ़ी के साथ साथ अभिभावकों के लिए भी गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है क्योंकि अभिभावक अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए हमेशा चिंतित रहते हैं और स्वयं अभाव में रह कर भी अपना अमूल्य समय और धन अपने बच्चों के भविष्य के लिए खर्च करते हैं।
परंतु युवा पीढ़ी का नशे के प्रति बढ़ रहा झुकाव निश्चय ही माता पिता तथा समाज के लिए घोर कलंक बनता जा रहा है।अगर हम बात करें कि ऐसे हालात क्यों पैदा हो रहें हैं तो यह बात सामने आती है कि वर्तमान समय में वैज्ञानिक और भौतिक प्रगति ने मानव जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है, परंतु मानव इस के सकारात्मक उपयोग के बजाय उसके विनाशकारी दुरूपयोग की ओर अधिक उन्मुख होता जा रहा है। परिणाम स्वरूप युवा पीढ़ी मूल्य हीन और संस्कार विहीन होती जा रही है।

मानव ने या अधिक कहें तो युवा पीढ़ी ने अपने समाज और संस्कृति के मूल तत्व को भुलाकर ऐसा मार्ग अपना लिया है जो उनके जीवन को घोर अन्धकार में धकेल रहा है।
युवा पीढ़ी किसी भी समाज के विकास और उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि इस आयु में युवाओं में असीम ऊर्जा और क्षमता का समावेश होता है, जिसका उसके व्यक्तिगत जीवन और समाज और राष्ट्र की प्रगति और भलाई के लिए सदुपयोग किया जाना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा वही ऊर्जा और क्षमता अगर नकारात्मक दिशा में प्रवाहित होने लगे तो यह विनाशकारी रूप धारण कर लेती है।
सबसे गंभीर चिंता का विषय तो यह है कि व्यवस्था से जुड़े लोगों का ऐसे कृत्यों में संलिप्तता।आज जिन लोगों को, अधिकारियों को चिट्टे जैसी गंभीर बुराई को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए वो ही युवा पीढ़ी के विनाश के लिए षड्यंत्र रच रहें हैं।वो शायद यह भूल गए हैं कि दूसरों की संतानों को यदि वे चंद पैसों के लालच में नरक में धकेल रहे हैं तो उनकी अपनी संतान भी इस से अछूती नहीं रह सकतीं। ऐसे लोगों के प्रति सरकार और विभाग को कठोर दण्ड देना चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति या अधिकारी ऐसा दुस्साहस न कर सके।

आज हमारे देश के युवाओं में संयम, धैर्य और सहनशीलता जैसे जीवन को आलोकित करने वाले गुणों की कमी बड़े पैमाने पर परिलक्षित हो रही है। आज की युवा पीढ़ी वास्तविकता से परे काल्पनिक दुनिया में ज्यादा खो गई है।
आज का अधिकांश युवा वर्ग जीवन में आने वाली परिस्थितियों और हालातों का सामना करने में नाकाम साबित हो रहा है जीवन में कठिनाईयों का सामना करना और समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना उसके लिए मुश्किल प्रतीत हो रहा है, परिणाम स्वरूप वह ऐसे कृत्यों का सहारा ले रहा है जो उसे जीवन में आसान और सुखद लग रहा है।
अभिभावक भी इसमें कहीं न कहीं बराबर के भागीदार हैं क्योंकि हमने बच्चों को हर चीज जिसकी उसे जरूरत है आसानी से उपलब्ध करवा दी। बच्चों को इसका मूल्य और महत्व का अहसास ही नहीं करवाया। हमने अपने बच्चों में नैतिकता के स्थान पर भौतिकता को ज्यादा महत्व दिया।आज हमारे पास अपने बच्चों के लिए साधन तो हैं, परंतु मूल्यवान समय नहीं!
आज की युवा पीढ़ी आदर्श जीवन जीने के मानवीय मूल्यों और संस्कारों से विहीन हो गया है, संयम और धैर्य नाम की कोई चीज हम उनके भीतर नहीं भर पाए हैं।
हमने उन्हें साधन तो दे दिए परंतु संस्कार नहीं, भौतिकता तो भर दी परंतु आदर्शवाद नहीं। साधन सम्पन्न तो बना दिया परंतु साधना शक्ति संपन्न नहीं!
यही कारण हैं कि आज युवा पीढ़ी नशे जैसी भयंकर और विनाशकारी प्रवृत्ति की ओर अग्रसर होता जा रहा है क्योंकि वह जीवन जीने के आसान रास्तों की तलाश में रहता है, वह वास्तविक जीवन से दूर रहकर काल्पनिक दुनिया में आरामदायक जीवन जीने का प्रयास कर रहा है।
हमारी युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति और विरासत को समझकर जीवन में कर्तव्य बोध के साथ जीवन निर्माण का प्रयास करना होगा और अपने आप को शारीरिक और मानसिक रूप से बलशाली और सामर्थ्यवान बनाना होगा और यह बात भलीभांति समझ लेनी होगी कि क्षणिक सुख और आनंद के लिए अनमोल जीवन को दांव पर लगाना कोई बुद्धिमानी नहीं है।

इसका एक दूसरा पहलू आसानी से धनवान बनना भी है क्योंकि आज समाज में धन का महत्व इतना बढ़ चुका है कि मनुष्य धन प्राप्त करने के अनैतिक और गैरकानूनी तरीकों का सहारा लेकर बिना परिश्रम किए ही रातों रात धनवान बनना चाहता है।
अगर हम गंभीरता से विचार करें तो इसमें सामाजिक पहलू भी उभरकर सामने आता है।समाज में अच्छी संगत का अभाव और आदर्शवादी मनुष्यों की कमी और अकर्मण्यता का दृष्टिकोण है । माता पिता द्वारा अपने बच्चों को पर्याप्त और गुणवत्ता पूर्ण समय न दे पाना अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। जिसके कारण बच्चे घर परिवार से बाहर निकल कर अपने लिए राहत और सहारा ढूंढ रहे हैं।
नशे की बढ़ती प्रवृत्ति मात्र युवा पीढ़ी तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि इसके लिए परिवार, समाज और व्यवस्था भी पूर्ण रूप से जिम्मेदार है। जागरूक नागरिकों को समाज की ऐसी समस्याओं से अपने आप को दूर रखना भी कारण हैं
नशे की आसानी से उपलब्धता होना भी कहीं न कहीं प्रश्न चिन्ह पैदा करता है । प्रतिदिन व्यवस्था से जुड़े लोगों और जिम्मेदार विभागों से संबंधित लोगों की इस कृत्य में संलिप्तता अत्यंत ही चिंताजनक और दुखदायक है। हमारे ही समाज में लोग युवा पीढ़ी के भविष्य को दांव पर लगाकर बिना मेहनत किए ही धनवान बनना चाहते हैं जो कि न्यायोचित नहीं है। अगर समाज में यह आसानी से उपलब्ध न हो तो युवा पीढ़ी अपनी ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों में लगा सकते हैं और इसके लिए समाज के जागरूक लोगों को आगे आना होगा।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर यह नशा आज हमारे समाज में अपने पैर पसार चुका है तो यह कल हमारे घर में भी दस्तक दे सकता है।आज इस भयंकर सामाजिक बुराई को जड़ से उखाड़ने के लिए समाज के हर वर्ग को, सामाजिक संगठनों और प्रशासनिक तंत्र तथा राजनैतिक तंत्र को मिलकर प्रयास करने की अत्यधिक आवश्यकता है।
समाज की हर व्यवस्था को दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्ध सोच के साथ अपने दायित्व को निभाने का प्रयास करना होगा,तभी हम अपनी युवा पीढ़ी का वर्तमान सुरक्षित और भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं।

विक्रम वर्मा
स्वतंत्र लेखक
चम्बा हिमाचल प्रदेश

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