
तलमेहडा में महाशिवरात्रि की धूम,5600 साल पुराने ध्यूंसर सदाशिव मंदिर में लगा भक्तों का तांता।
रिंकू भारद्वाज शर्मा
हर साल शिवरात्रि के महापर्व पर चार पहर होती है विशेष पूजा: अध्यक्ष प्रवीण शर्मा
जिला ऊना के उपतहसील जोल के तलमेहडा में आज महाशिवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया गया।
तलमेहडा के गांव वही में स्थित 5600 साल पुराने मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तातां लगा रहा। भक्त शिवलिंग का अभिषेक कर रहे और तलमेहडा की महादेव नगरी के भोलेनाथ के उद्घोषों से गुंज उठी।
आज शिवरात्रि के महापर्व की जिला भर में धूम है। भक्तों द्वारा भोलेनाथ की भक्ति में पूजा अर्चना की जा रही है। महाशिवरात्रि पर्व पर आज तलमेहडा में ध्यूंसर सदा शिव मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ लगी रही।श्रद्धालुओं ने सुबह से ही देवालय में जाकर लंबी कतारों में लगकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की।उप तहसील जोल के सभी शिव मंदिर महादेव के उद्घोष से गूंज उठे।हर आयु वर्ग के लोग मंदिर पहुंचे और भगवान शंकर का अभिषेक किया।
कैसे करें शिवरात्रि व्रत की पूजा।
पंडित राकेश शर्मा ने बताया कि शिव पुराण की कोटी रूद्र संहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत का पालन करने से भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं। ब्रह्मा,विष्णु और माता पार्वती के पूछने पर भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि का व्रत करने से व्यक्ति को महान पुण्य की प्राप्ति होती है। मोक्ष प्रदान करने वाले चार संकल्पों का पालन करना चाहिए। शिवपुरी में मोक्ष के चार अनंत मार्ग बताए गए हैं।इन चारों में ही शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है। यह है चार संकल्प है भगवान शिव की पूजा, रुद्रो का जाप, शिव मंदिर में उपवास, काशी में देहत्याग।
फागुन मास की शिवरात्रि विशेष।
पंडित राकेश शर्मा ने बताया कि शिवरात्रि का व्रत सभी के धर्म का सबसे अच्छा साधन है।इस महान व्रत को सभी मनुष्यों, वर्णों, स्त्रियों, बच्चों और देवताओं के लिए बिना पाप के परम उपकारी माना गया है। हर महीने के शिवरात्रि व्रत में फागुन कृष्ण चतुर्दशी को होने वाले महाशिवरात्रि व्रत का महाशिव पुराण में विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन ही भगवान शिव का माता पार्वती संग विवाह हुआ था।
5600 साल पुराना शिव मंदिर।
तलमेहडा के गांव वही में स्थित ध्यूंयर सदाशिव मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है।इस मंदिर में महाशिवरात्रि के उपलक्ष पर भक्त भगवान शिव के दर्शन और शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए मंदिर पहुंचें। शिव मंदिर के पुजारी राकेश शर्मा ने बताया कि यह सदियों पुराना ऐतिहासिक शिव मंदिर है।
सदा शिव मंदिर पांडवों के पुरोहित धौम्य ऋषि की तपस्थली है। जिसके चारों तरफ प्राकृतिक सौंदर्य की छठा बिखेरती शिवालिक पहाड़ियों और सामने धौलाधार की बर्फ से ढकी पहाड़ियों का दिलकश नजारा शिव भक्तों को देखने को मिलता है।
स्वयंभू है इस मंदिर में भगवान शिव।
सदाशिव चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रवीण शर्मा ने बताया कि मंदिर में जो शिवलिंग विराजमान है। वह स्वयंभू है।यानी की जमीन से खुद प्रकट हुए थे।मंदिर में हर साल शिवरात्रि पर चार पहर विशेष पूजा अर्चना होती है।महाशिवरात्रि के विशेष पर्व पर मंदिर को पूरी तरह से सजाया जाता है। पहले सुबह मंदिर में पूजा होती है। उसके बाद इसके कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते है।
सदाशिव चैरिटेबल ट्रस्ट ध्यूंसर के चेयरमैन प्रवीण शर्मा ने कहा कि मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन और श्रद्धा से मंदिर में पूजा अर्चना करता है। भगवान शिव उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। हर साल शिवरात्रि पर मंदिर में विशेष पूजा की जाती है। वहीं मंदिर में सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम रहते हैं।पुलिस द्वारा मंदिर में पहरा दिया जाता है,ताकि किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना ना घटित हो।