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क्या त्रिवेंद्र सिंह रावत का इस्तीफा कई मुख्यमंत्रियों के लिए है संदेश

18 मार्च 2017 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा बीती 9 मार्च को नौ दिन कम चार साल इस पद पर रहने के बाद इस्तीफा दे दिया गया। जैसा कि हमेशा ही ऐसे मौकों पर चर्चा चलती है। कोई कहता है हाईकमान नाराज थी तो कुछ कहते हैं कि इनकी काबिलियत का उपयोग और किसी स्थान पर किया जाएगा। इसलिए ऐसा हुआ। लेकिन जो भी थोड़ा सा राजनीतिक ज्ञान रखता है। वह अच्छी तरह जानता होगा कि इस्तीफे क्यों दिए और लिए जाते हैं। इस संदर्भ मेें देखें तो जो चर्चाएं उभरकर सामने आ रही हैं उसके अनुसार भाजपा के नेता ही नहीं सांसद और विधायक तथा मंत्री भी त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाराज थे। इस संदर्भ में जो आवाजें उभरकर आ रही हैं उनके अनुसार मुख्यमंत्री की सांसदों से दूरी और अपने विधायक और मंत्रियों की बात ना सुनना भी एक कारण हो ही सकता है सबसे बड़ा कारण जो उभरकर आया है वो यह है कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में अफसर किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं थे। जनता के काम हो नहीं पा रहे थे। मंत्री कुछ कर नहीं पा रहे थे। परिणामस्वरूप त्रिवेंद्र सिंह रावत को राजनीति में तीन महत्वपूर्ण पदों राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री में से जो पद उन्हें मिला था उसे उन्हें गंवाना पड़ा।

आज प्रातः उच्च कमान द्वारा भेजे गए पर्यवेक्षक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम आदि की मौजूदगी में बताते हैं कि विधायक दल की बैठक में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहली बार यूपी विधानसभा के सदस्य बनकर सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाले तीरथ सिंह का नाम रखा जो सर्वसम्मिति से पास हो गया। आज ही वो शपथ लेंगे और मंत्रियों के विभाग बांट दिए जाएंगे। 2022 के विधानसभा चुनावों में तीरथ सिंह रावत क्या करिश्मा दिखा पाएंगे यह तो समय ही बताएगा लेकिन फिलहाल भाजपाईयों को यह लगता है कि वो पार्टी का परचम फहराने में सफल हो जाएंगे।

मिल सकती है महत्वपूर्ण भूमिका
पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम का कहना है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को भाजपा की ओर से केंद्रीय स्तर पर कोई भूमिका दी जा सकती है। उनसे उच्च कमान नाराज नहीं है। इस्तीफे को प्रशासनिक असफलता के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री अनुभवी नेता है। पार्टी ने सोचा है कि उनका केंद्रीय स्तर पर काम करना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। उन्होंने कोरोना के दौर में भी कोई प्रशासनिक कामकाम नहीं रूकने दिया। पूर्व में आरएसएस के प्रचारक और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके रावत जी को अब क्या मिलेगा और कब मिलेगा यह समय ही बताएगा।

इस्तीफे के कारण
खबरों को अगर सही समझें तो संघ की रिपोर्ट भी रावत के समर्थन में नहीं थी। और गैरसैण को कमिश्नरी बनाने में स्थानीय जनप्रतिनिधियों को विश्वास में ना लेना, सड़क चैड़ीकरण को लेकर चल रहे आंदोलन में लोेगों पर लाठियां बरसना, कोटद्वार का नाम कण्वनगरी करना लेकिन इसकी जानकारी स्थानीय लोगों को भी ना होना, केंद्र से दो ट्रेनों के मिलने पर जो खुशी दिखनी चाहिए थी वह नहीं दिखी। खाली पड़े मंत्री पदों को ना भरना, विधायकों और मंत्रियों की नाराजगी, अपने रिश्तेदार के खाते में रकम लेने के आरोप में सीबीआई की जांच, प्रदेश के पांचों सांसदों से दूरी बनाए रखना, प्रदेश भर में अधिकारियों द्वारा सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधियों की बात ना सुनना जैसे कारणों को लेकर उनसे इस्तीफा लिया जाना बताया जा रहा है।

सन 2000 से अब तक 10 मुख्यमंत्री
बताते चलें कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ही ऐसे मुख्यमंत्री नहीं है जो चार साल का कार्यकाल भी पूरा कर पाए। शायद ये संयोग ही है कि साल 2000 में जब से उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ है तब से एक नाम के अलावा कोई भी सीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। राज्य के सबसे पहले मुख्यमंत्री थे नित्यानंद स्वामी जो 11 महीने 20 दिन तक सीएम रहे. इसके बाद भगत सिंह कोश्यारी करीब 4 महीने के लिए मुख्यमंत्री बने। 2002 में चुनाव हुए और मुख्यमंत्री बने कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी, वो पूरे 5 साल के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद बीजेपी के बीसी खंडूरी करीब 25 महीने, फिर रमेश पोखरियाल निशंक 26 महीने और फिर खंडूरी करीब 6 महीने के लिए मुख्यमंत्री बने। 2012 के चुनावों में कांग्रेस जीती, पूरी उम्मीद थी कि हरीश रावत सीएम बनेंगे, लेकिन पार्टी ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया. बहुगुणा करीब 22 महीने तक सीएम रहे. फिर मुख्यमंत्री बने हरीश रावत, जो करीब 34 महीने के करीब मुख्यमंत्री रहे. अब 2017 में बीजेपी ने त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन 47 महीने और 20 दिनों के बाद उनका भी इस्तीफा हो गया।

क्या सहयोगियों को संतुष्ट
एक सवाल जो सबसे महत्वपूर्ण है वो यह है कि आखिर कैबिनेट मंत्री डाॅ हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज, रेखा आर्य, अरविंद पांडेय, वंशीधर भगत, मंत्री मदन कौशिक, राज्यमंत्री धनसिंह रावत, विधायक हरवंश कपूर, कुंवर प्रणव सिंह आदि के नाम मुख्यमंत्री के रूप में चले और हरक सिंह रावत बाजी मार ले गए इसके पीछे आखिर कौन सी ताकतें थी और क्या वो अगले चुनाव तक यह वर्चस्व बनाए रखने में सहयोगी हो पाएंगी यह अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कारण जानना है तो दिल्ली जाइये
दिल्ली से लौटकर राज्यपाल को अपना इस्तीफा देने के उपरांत पत्रकारों से बात करते हुए अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए यह कहते हुए कि पार्टी ने तय किया कि मैं अब किसी और को मौका दे रहा हंू और पत्रकारों के पूछने पर पूर्व मुख्यमंत्री बोले कि कारण जानना है तो दिल्ली जाइये।
भ्रष्टाचार पर परदा
प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल कांगे्रस का त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफा प्रकरण में कहना है कि इस्तीफा भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश है। इनके शासनकाल में कुंभ, मिड डे मील सहित कई योजनाओं में भ्रष्टाचार हुए हैं। जिन कारणों से त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा देना बताया जा रहा है ऐसे तमाम कारण सभी प्रदेशों में लगभग उभरकर सामने आ रहे हैं। अधिकारियों द्वारा बात ना सुने जाना, कार्यकर्ताओं के काम ना होना, मंत्रियेां विधायक व जनप्रतिनिधियों में तालमेल की कमी, जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को प्रतिनिधित्व ना देना और सेवानिवृत अधिकारियों के महिमामंडन करने के जैसे ऐसे कई मुददे हैं भले पर ही जिन पर कोई खुलकर ना बोल रहा हो लेकिन पर्दे के पीछे से चर्चाएं खूब हो रही हैं। उत्तराखंड प्रकरण को देख अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री अपने यहां सुधार कर लें उनके लिए एक प्रकार का यह संदेश भी हो सकता है।


उतना असफल भी नहीं रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत
जो भी हो त्रिवेंद्र सिंह रावत अब सीएम नहीं रहे लेकिन जैसा कहा जा रहा है उतना असफल भी उन्हें नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस कुछ भी कह ले लेकिन श्री रावत लगभग चार साल तक अपनी छवि साफ सुथरी बनाए रखने में सफल रहे कहे जा सकते हैं। इतने बड़े पद पद बैठकर कई कमियां तो रह ही जाती है और सबको संतुष्ट नहीं कहा जा सकता है। वो भी राजनीति में जहां झाडू लगाने से लेकर शुरू होने वाला हर कार्यकर्ता उच्च पद पर विराजमान होना चाहता है फिर यहां तो सतपाल महाराज जैसे धंुरंधर नेता मौजूद हैं। उसके बाद चार साल तक सरकार चलाना त्रिवेंद्र सिंह रावत की बड़ी सफलता कहा जा सकता है।

क्या तीरथ सिंह यह सब कर पाएंगे
नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री तीरथ सिंह को पद को मिल गया लेकिन क्या वो पुराने फैसलों को बदल पाएंगे, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में सफल होंगे, विकास कार्यों को तेजी देने में कामयाबी हासिल कर पाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री के समर्थकों से तालमेल बैठाकर उन्हें संतुष्ट करने में सफल होंगे और सबसे बड़ी बात सरकार पर हावी अधिकारियों पर अंकुश लगाने में सफल रह पाएंगे यह चर्चा उत्तराखंड में इस समय तेजी से चल रही है।

– रवि कुमार विश्नोई
सम्पादक – दैनिक केसर खुशबू टाईम्स
अध्यक्ष – ऑल इंडिया न्यूज पेपर्स एसोसिएशन
आईना, सोशल मीडिया एसोसिएशन (एसएमए)
MD – www.tazzakhabar.com

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1 comment  
  • Mahesh Sharma

    अतिसुन्दर।