
*जयमंगल रेजिडेंसी में उपधान तपस्वियों का भव्य अनुमोदना समारोह संपन्न*
अहमदाबाद 18 फ़रवरी 2025
संसार की क्षणभंगुरता से ऊपर उठकर जब कोई आत्मा संयम, तप और साधना की राह चुनती है, तो वह केवल स्वयं का नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज का उत्थान करती है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक और भावनात्मक क्षण तब आया, जब अहमदाबाद के शाहिबाग स्थित तेरापंथ भवन से जयमंगल रेजिडेंसी के उपधान तपस्वियों की भव्य शोभायात्रा निकली। शंखेश्वर साम्राज्य में परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्री यशोवर्म सूरीश्वरजी महाराज, पांच-पांच आचार्य भगवंतों और विशाल साधु-साध्वी मंडल की पावन निश्रा में पूर्ण हुए इस महान उपधान तप के तपस्वी रत्न की शोभायात्रा निकली, तो पूरा नगर उनके स्वागत में आनंदमय हो उठा।
गाजे-बाजे, मंगल ध्वनियों और मंगल कलश के साथ जयमंगल परिवार ने अपने इन तपस्वियों का अभिनंदन किया। छोटे-छोटे नन्हे तपस्वी, जिनकी आत्मशक्ति और संकल्प किसी तपस्वी ऋषि से कम नहीं थी, उनकी भव्य शोभायात्रा ने समूचे वातावरण को भक्तिरस से सराबोर कर दिया। इन तपस्वियों में 9 वर्षीय जैनम राजेशजी तातेड, 11 वर्षीय पर्व जितेन्द्रकुमार भंसाली, 13 वर्षीय जियांश राहुलजी कांकरीया, 9 वर्षीय नित्या प्रीतेश बंबोली, 9 वर्षीय वृष्टि राहुलजी कांकरीया, 11 वर्षीय श्रीजा राजेशजी तातेड, 12 वर्षीय फेनल प्रमोद भंडारी, 13 वर्षीय क्रिपा संजयजी लुणीयामुथा, एडवोकेट कींजल राजेशजी तातेड और खुश्बु राहुलजी कांकरीया ने आत्मसंयम की उस परम साधना को पूर्ण किया, जो जन्मों के पुण्य संचित किए बिना संभव नहीं होती।
तेरापंथ भवन, शाहिबाग से जयमंगल रेजिडेंसी तक यह शोभायात्रा किसी आध्यात्मिक विजय यात्रा से कम नहीं थी। जैसे ही ये तपस्वी जयमंगल रेजिडेंसी पहुंचे, समाजजनों ने उन्हें श्रद्धा और प्रेम से नहलाया। महावीर महिला मंडल द्वारा भावपूर्ण स्वागत हुआ, जिसमें मंगलगान, और आत्मीय अभिनंदन ने तपस्वियों के इस कठिन तप को अनमोल बना दिया। जब ये तपस्वी रेजिडेंसी के जिनालय में पहुंचे, तो उनका भगवान के चरणों में समर्पण कर वंदन करना पूरे समाज के लिए एक प्रेरणादायी दृश्य बन गया।
तपस्वियों ने अपने इस अद्भुत उपधान तप के अनुभव साझा किए, जिनमें तप के दौरान मिली आत्मशांति, संयम की कठिनाइयों पर विजय, और अंततः आत्मिक आनंद की अनुभूति के संस्मरण थे। समाज के सदस्यों, गणमान्यजनों और श्रद्धालुओं ने उन्हें माला पहनाकर सम्मानित किया और सुख-साता पूछते हुए उनकी अनुमोदना की। यह क्षण हर उपस्थित व्यक्ति के लिए अविस्मरणीय था, जब उन्होंने इन बाल तपस्वियों और साधना पथ के यात्रियों की दृढ़ इच्छाशक्ति को नमन किया।
इस भव्य अनुमोदना उत्सव के उपरांत सभी मेहमानों और श्रद्धालुओं ने चौविहार भोजन का लाभ लिया। वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का ऐसा प्रवाह था, जो प्रत्येक आत्मा को संयम और तप की ओर प्रेरित कर रहा था। यह कार्यक्रम केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक युगांतकारी क्षण था, जिसने यह सिद्ध किया कि तप और साधना की परंपरा न केवल जीवित है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों में भी अपनी जड़ें मजबूत कर रही है।
इस ऐतिहासिक आयोजन को पत्रकार दिनेश देवड़ा धोका ने विशेष रूप से कवर कर जानकारी प्रदान की ।