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अडानी परिवार ने दिया उत्कृष्ट उदाहरण *विवाह में दिखावे से बाहर निकलकर समाजहित में सार्थक निवेश करे*



भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों और संस्कृतियों का संगम भी होता है। यह जीवन का एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसे यादगार बनाने की इच्छा हर परिवार की होती है। लेकिन आजकल यह अवसर एक प्रतिस्पर्धा का रूप ले चुका है, जहाँ दिखावे, आडंबर और अनावश्यक खर्चों पर ज़ोर दिया जाता है। महंगे वेन्यू, विदेशी सजावट, भव्य दावतें और आर्केस्ट्रा जैसे तामझाम पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, जिनका न तो समाज पर कोई स्थायी प्रभाव पड़ता है और न ही इससे किसी ज़रूरतमंद का भला होता है। अगर इसी धन को समाजसेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण जैसे सार्थक कार्यों में लगाया जाए, तो यह एक नई सामाजिक क्रांति का आधार बन सकता है। हाल ही में अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी ने अपने छोटे बेटे जीत अदाणी की शादी के अवसर पर 10,000 करोड़ रुपये समाजसेवा के कार्यों के लिए समर्पित करने की घोषणा की। इनमें 2,000 करोड़ रुपये से 20 अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्कूलों की स्थापना, 6,000 करोड़ रुपये अस्पतालों के निर्माण के लिए और 2,000 करोड़ रुपये कौशल विकास कार्यक्रमों के लिए समर्पित किए गए। यह न केवल एक अनुकरणीय पहल है, बल्कि समाज के लिए एक संदेश भी है कि विवाह जैसे अवसरों को दिखावे का मंच न बनाकर समाजोत्थान का जरिया बनाया जा सकता है। आज हमारे समाज में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहाँ इस धन का सही उपयोग किया जा सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में लाखों गरीब बच्चे संसाधनों के अभाव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। यदि विवाह में खर्च होने वाली राशि से स्कूल, पुस्तकालय और छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाएँ, तो यह बच्चों के उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी अनेक लोग महंगे इलाज का खर्च नहीं उठा सकते। यदि विवाह समारोहों के बजट का एक हिस्सा अस्पतालों, स्वास्थ्य शिविरों और रक्तदान अभियानों के लिए दिया जाए, तो न जाने कितनी जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं। महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता भी एक महत्वपूर्ण विषय है। भारत में आज भी कई महिलाएँ शिक्षा, रोजगार और स्वावलंबन से दूर हैं। विवाह के खर्चों में कटौती करके महिलाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण केंद्र, स्वरोजगार योजनाएँ और सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। इसके अलावा, पर्यावरण संरक्षण भी एक गंभीर मुद्दा है। विवाह समारोहों में पटाखे, प्लास्टिक की सजावट और फूड वेस्टेज बड़े पैमाने पर होता है। यदि इस खर्च को हरित पहल, वृक्षारोपण और जल संरक्षण कार्यक्रमों में लगाया जाए, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित करेगा। युवा पीढ़ी को इस सोच में बदलाव लाने का बीड़ा उठाना होगा। विवाह केवल व्यक्तिगत खुशी का अवसर न होकर, समाज के प्रति योगदान देने का माध्यम भी बने, यही सच्ची परंपरा होगी। यदि प्रत्येक परिवार अपने विवाह खर्च का कुछ हिस्सा समाजहित में लगाए, तो यह पूरे देश के विकास में योगदान दे सकता है। यह समय है कि हम अपने मूल्यों को और यह तय करें कि हम केवल कुछ घंटों के आडंबर में पैसा बहाएंगे या आने पहचाने पीढ़ियों के भविष्य को संवारेंगे। विवाह का वास्तविक उद्देश्य दो आत्माओं का मिलन है, न कि समाज में अपनी आर्थिक स्थिति का प्रदर्शन। अगर इस अवसर को समाज की सेवा से जोड़ा जाए, तो यह न केवल एक परिवार, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए शुभ होगा।

*दिनेश देवड़ा धोका*

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