
**संस्कृत अध्ययन से ही होता हैं भारतीय संस्कृति का ज्ञान - डॉ. प्रकाश चंद्र पंत*
प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा निदेशक विनय श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में संचालित ऑनलाइन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम निर्माण योजना के अंतर्गत सरल संस्कृत संभाषण कक्षा में प्रेरणा सत्र का शुभारंभ प्रशिक्षु शोभन उपाध्याय के मंगलाचरण से हुआ सरस्वती वन्दना सृष्टी कुमारी ने किया संस्थानगीतिका पलक ने तथा स्वागतगीत पुष्पा पटेल ने प्रस्तुत किया। आये हुए अतिथियों का स्वागत एवं मुख्यवक्ता का परिचय दिवाकर मिश्र समन्वयक दिव्यरंजन ने प्रास्ताविक भाषण किया तथा सत्र का संचालन प्रशिक्षक रजनीश तिवारी ने किया। शाश्वत बरोलिया और प्राची ने कक्षागत अनुभवकथन प्रस्तुता किया
प्रेरणासत्र के **मुख्यवक्ता डाॅ प्रकाश चन्द्र पंत सहायकाचार्यः उत्तराखंडसंस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार* महोदय ने अपने वक्तव्य में संस्कृत भाषा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए उपस्थित लोगों से कहा कि संस्कृत हमारी भारतीय संस्कृति की धरोहर है और हमें इसपर गर्व की अनुभूति होनी चाहिए। इसका प्रचार प्रसार करना हमारा दायित्व है। जब हमारी संस्कृति स्वयं में ही परिपूर्ण है तो हम पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण क्यों करते हैं? उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि पहले श्रवण फिर भाषण तब पठन बाद में लेखन पठनकौशलों के विषय में प्रशिक्षुओं को समझाया और कहा कि हमने जब संस्कृत बोलना शुरू किया था तो प्रारम्भ अनेक कठिनाइयां हुई धीरे धीरे सम्भाषण सहज हो गया, हमें सदैव सरल और अभिनय के साथ बोलना चाहिए। अन्य लोगों को भी संस्कृत पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिये। तथा लोगों को संस्कृत के रोजगारों के विषय में भी जागरूक करना चाहिये। संस्कृत भाषा के बिना भारत की कल्पना करना भी संभव नहीं है,
प्रशिक्षक विनय प्रकाश तिवारी ने आए हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया तथा कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव, प्रशासनिक अधिकारी जगदानंद झा, दिनेश मिश्र, योजना प्रमुख भगवान सिंह, प्रशिक्षण प्रमुख सुधिष्ठ मिश्र, समन्वयक धीरज मैठाणी, दिव्यरंजन तथा राधा शर्मा, आदि उपस्थित रहे। शान्ति मंत्र प्रशिक्षिका नीलमरानी ने तथा तकनीकी सहयोग प्रशिक्षिक अशोक मिश्र का अतिथि एवं कार्यक्रम का संयोजन प्रशिक्षक रजनीश तिवारी एवं दिवाकर मिश्र का रहा।