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आज्ञा चक्र, मूलाधार चक्र और इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना नाडी

आज्ञा चक्र शास्त्र में इसके कमल कि दो पंखुड़ी कहा गया है,सभी चक्र में कमल की पंखुड़ी उसकी पहेचान से होती है जैसे प्रत्येक तत्व के परमाणु होता है उसमें इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन अलग अलग संरचना होती है तीनों गुणों कि भिन्नता उस तत्व की पहेचान है कि यह फला फला प्रदार्थ रसायन है l

वैसे ही शरीर के सात मुख्य चक्र हैं उनकी पहेचान पंखुड़ी है दल है, ये उस चक्र के तत्व गुण स्वभाव ऊर्जा को परिभाषित करते है,

आध्यात्मिक में यदि आज्ञा चक्र नहीं खुला विकसित नहीं हुआ है तब तक आध्यात्मिक में जाना असंभव ना मुमकिन है, आध्यात्मिक में बुद्धि कोइ विशेष स्थान नही रखती है सब खेल इन सात चक्र का है l

जब तक आज्ञा चक्र जागृत नहीं होता है तब तक सभी चक्र सुप्त है सोए हुए हैं,

कई धार्मिक बुद्धि जीवी कहते है कि आज्ञा चक्र 6 वा चक्र है यह तीसरा नेत्र हैं, सीरियल में यह छठा है लेकिन सभी चक्र को सक्रिय जगाने वाला यही प्रथम चक्र हैं जिसमे सिर्फ दो दल, दो पंखुड़ी, दो विद्युत धारा हैं, जैसे बिजली में प्रथम दो तार होते है,दो आवेश होते है फिर यंत्र में कई तार हो जाते हैं वह अलग बात है यात्रा ये दो से होती हैं इसलिए आज्ञा चक्र की दो प्वाइंट मिले हैं, दो धारा मिली है, दो पहलू मिले हैं l

जैसे बिजली बिना सभी यंत्र बन्द हैं विज्ञान नहीं है विज्ञान की प्रथमशरण प्रथम हिस्सा ये बिजली के ऋण ओर आवेश मुख्य है फिर उसके आगे विज्ञान विकसित होती हैं, यदि बिजली नहीं है तब कोइ विज्ञान नहीं है वैसे ही यह आज्ञा चक्र के दो प्वाइंट दो पंखुड़ी आध्यात्मिक के जननी हैं या आध्यात्मिक का आविष्कार हैं या आध्यात्मिक की प्रथम नींव या प्रथम सीढ़ी यह आज्ञा चक्र हैl

आज्ञा चक्र प्रथम स्थूल जड़ दोनों स्वर से जुडी है एक स्वर्ग चंद्र है दूसरा स्वर सूर्य हैं या एक लिंग स्त्री हैं दूसरा स्वर पुरुष, जहा जो कुछ दो हैं वह उससे जुड़ा हुआ हैं l

एक मन दूसरी बुद्धि, एक जड़ तत्व दूसरा सूक्ष्म तत्व, एक जड़ बुद्धि दूसरी सूक्ष्म बुद्धि यही से जुडी हुई है l

साधारण जो एकाग्रता है वह इसी के माध्यम से मिलती है यह बाहर जगत के एकाग्रता है भीतर जगत के लिए ध्यान है l

आज्ञा चक्र आध्यत्मिक की दो नाडी से जुड़ा हुआ है इंगला पिंगला यही दो नाडी आगे 72000 नाडी में ऊर्जा परवाह करती है , चक्र में आज्ञा चक्र गणेश है, नाडी में सुषुम्ना नाडी आध्यात्मिक में प्रथम नाड़ी है यदि सुषुम्ना नाडी यह नहीं खुली नहीं जागी तब सात में पंच चक्र जागृत नहीं होगे, विकसित नहीं होंगे l

शरीर की जड़ नाडी नाक की नासिका हैं सूर्य नाडी और चन्द्र नाडी है लेकिन जो नाडी आज्ञा चक्र से जुडी हुई हैं इड़ा ओर पिंगला नाडी है यह आध्यत्मिक हैं,

आज्ञा चक्र को जागृत के पहले सभी बाहरी साधना है आज्ञा जागृत की बहरी साधना महत्पूर्ण हैं फिर आज्ञा चक्र जगाने के बाद भीतर की यात्रा संभव है यदि आज्ञा चक्र नहीं जाग और भीतर गए तब कुछ भी घटने वाला नही है, भले पूरा दिन आंखे बंद करके बैठ जाओ कुछ भी भीतर घटने वाला नहीं है l

धर्म की साधना आज्ञा चक्र तक है फिर आध्यामिक यात्रा आरम्भ होती है, जिसका आज्ञा चक्र जगा हुआ नहीं है उन्हें आध्यामिक ज्ञान कि सारी बातें बकवास लगेगीl

आज्ञा चक्र जागते ही दूसरे चक्र की यात्रा होती है

एक नाडी आक्रमण करती हैं मूलाधार पर तब काम उत्तेजना पैदा होती है यह सेक्स ऊर्जा हैं दूसरी चंद्र नाडी है स्त्री नाडी हैं, पुरुष नाड से ऊर्जा पैदा होती हैंस्त्री नाडी ऊर्जा को कंट्रोल करती हैं एक नाडी आक्रमण करती हैं दूसरी समर्पण नाडी है दोनो नाडी का संतुलन से मूलाधार चक्र जागृत होता है है आध्यात्मिक ऊर्जा पैदा करती है वह जो सुषुम्ना में वह ऊर्जा प्रवेश करती है फिर यह सुषुम्ना नाडी पांच चक्र को उर्जा भेजती हैं फिर यह चक्र खुलते है l फिर इसी सुषुम्ना नाडी से फिर आज्ञा चक्र जागृत होता है, आज्ञा चक्र मूलाधार तक बिज रूपी उर्जा है फिर बड़ी मात्र ऊर्जा आज्ञा चक्र को मिलती है तब आज्ञा चक का जागना पूर्ण होता है l

इड़ा पिंगला नाडी आज्ञा चक्र से नीचे मूलाधार से जुडी हुई हैं यहां मूलाधार में ऊर्जा संतुलन जैसे AC ऊर्जा से Dc ऊर्जा बन जाती है, यह न्यूट्रॉन ऊर्जा के रूप मे सुषुम्ना में प्रवेश कर ऊपर उठती है यही ऊर्जा का उर्ध्वगमन है यह ऊर्जा आध्यात्मिक ऊर्जा हैं जैसे जैसे यह ऊर्जा ऊपर गति करती है वैसे वैसे वह उर्जा भी बदलती है जो रीड की स्थित है इसमें 33 करोर जोड़ है इन जोड़ के संबंध चक्र से होता हैं

मूलाधार चक्र

यह जड़ ओर आध्यत्मिक दोनों ऊर्जा का मुख्य भंडार है, इसमें चार दल हैं, चार कमल पंखुड़ी है ये चार तत्व चार गुण का केंद्र है, इसमें चार दल हैं चार अक्षर है इसका रंग लाल है यह जड़ तत्व प्रधान है जो गुण में तम है आगया चक्र में दो प्वाइंट थे यहां से चार प्वाइंट विकसित होते है यह शरीर का बिजली घर हैं जहां बिजली पैदा भी होता हैं पुनः बिजली रूपांतरण भी होती है आज्ञा चक्र के दो पॉइंट से यहां चार प्वाइंट विकसित होते है l

जैसे आज्ञा चक्र दो आंख का नेतृत्व करता है वैसे ही यह ऊर्जा के चार भाग कर देता है आज्ञा चक्र में दो गुण प्रधान थे अब एक रसायन विज्ञान की भाती चार परमाणु बन जाते है जो एक प्वाइंट सेक्स पवर्जन है दूसरा प्वाइंट जड़ शक्ति, शरीर को शक्ति देता हैं, शेष दो प्वाइंट आध्यामिक है, शास्त्र में इसका देव गणेश है जो आज्ञा चक्र इसका देव को गणेश है यहां की ऊर्जा को डाकिनी कहते हैं l यह मूलाधार नही होता वह नपुष्क कहलाता है,

यह गुदा और लिंग के मध्य चक्र है यहां ऊर्जा साधक ने परिवर्तन कि तब वह परिवर्तन ऊर्जा रीड की आखिरी पूछ में प्रवेश होती है और वह परिवर्तन नहीं हुई तब वह काम लिंग के सेक्स के माध्यम से बाहर निकल जाती है

यही ऊर्जा यदि काम में परवाह होती है तब यही काम वासना क्रोध मोह लोभ अहंकार मन संसार जड़ भोग बनती है,

यही ऊर्जा यहां परिवर्तन होती है फिर यह ऊर्जा सुषुम्ना में प्रवेश होती है यही ब्रह्मचय है

काम वासन क्रोध मोह लोभ सब त्याग दो फिर भी वह ब्रह्मचय नहीं है जब तक ऊर्जा रूपांतरण नही होती है, इसलिए धर्म में त्यागी बन जाते हैं संसार से दूर चले जाते हैं तब उसका मात्र अभाव होता हैl

जो त्यागी साधु संत संन्यासी तथा कथित धार्मिक प्रवचन देने वाले हैं, वे मूलाधार चक्र से दूर खड़े हो जाते है, की बिजली घर चालू होगा नहीं ओर कोई समस्या आएगी नहीं,, इसे आध्यत्मिक नहीं कहते है ।

ये सारा खेल जड़ बुद्धि चतुर बुद्धि वाक कला से धार्मिक खेल खेलते हैं ।

यदि कुंडलिनी उर्जा का अनुभव होता तब भीतर की बात करते भीरत जाने को कहते ध्यान करने को कहते है l जो शास्त्र धर्म कि लकीर पीटते है वे एक भी आध्यात्मिक नहीं है,

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