
सड़क दुघर्टनाओं के लिए जागरुकता आवश्यक है! चालान नहीं है समाधान!
अपनाना होगा सकारात्मक दृष्टिकोण.. चालान नहीं है समाधान!
वर्तमान समय में हमारे प्रदेश और देश में बड़े पैमाने पर बढ़ रही सड़क दुघर्टनाएं मानव संसाधन की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। अधिकांश घटनाएं तो ऐसी घट रही हैं जिसमें अल्प आयु के बच्चे या घर के इकलौते चिराग़ बुझ रहे हैं,यह समाज के साथ साथ मां बाप के लिए भी परेशानी का विषय बनता जा रहा है।
सड़कें किसी भी प्रकार के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू होती हैं। सड़कें आधुनिकता और विकास की जीवन रेखाएं मानी जाती हैं।सत्य ही है क्योंकि सामाजिक और आर्थिक विकास के किसी भी पहलू का सड़कों के बिना कोई भी व्यवहारिक रूप परिलक्षित नहीं हो सकता।
आधुनिक काल में वैज्ञानिक विकास और यातायात की सुविधाओं ने मानव जीवन को अत्यंत सुलभ और सुगम बना दिया है। आज मनुष्य को अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए पैदल नहीं चलना पड़ता, विकसित यातायात व्यवस्था और वाहनों की उपलब्धता ने मानव जीवन में समय की बचत और यात्रा को सुगम बना दिया है। जिसके कारण मनुष्य के जीवन में समय की कोई कमी नहीं है। अगर कमी है तो समय के कुप्रबंधन और सामंजस्य की।
मानव ने आधुनिक काल में अपने लिए अनेक प्रकार की सुख सुविधाओं का सृजन तो कर लिया है परंतु इनका विवेकपूर्ण उपयोग कैसे करना है,इस बात से अनभिज्ञ है। भौतिक संसाधनों और सुविधाएं मानवता के लिए तभी उपयोगी और कारगर साबित हो सकती है यदि मनुष्य अपने कर्तव्य बोध के प्रति सजग हो और उनके ऊपर पूरी तरह से निर्भर न होकर अपने विवेक से निर्णय लेकर आवश्यकतानुसार ही इनका उपयोग करें, अन्यथा इसके नकारात्मक और भयंकर परिणाम परिलक्षित हो रहें हैं, जिनके कारण आए दिन सैकड़ों जिंदगियां काल का ग्रास बन रही हैं।
बात करें अगर सड़क दुघर्टनाओं की तो यह अहसास होता है कि सड़कों की खराब दशा के कारण और वाहनों में तकनीकी खराबी के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की तुलना में मनुष्य की लापरवाही और जागरूकता की कमी के कारण अधिक दुर्घटनाएं घटित हो रही हैं। परिणाम स्वरूप असमय मौत के मुंह में सैकड़ों जिंदगियां जा रही हैं।
सड़क दुघर्टनाओं पर गंभीरता से मंथन करें तो यह अहसास होता है कि आवश्यकता से अधिक दिखावा करने केलिए धनाढ्य माता पिता अपनी संतान को छोटी आयु में ही वाहन सौंप देना अपनी शान समझते हैं, किशोरावस्था में बच्चों में न तो सुरक्षा नियमों की जानकारी होती है और न ही आभास।वे तेजी से वाहन चलाना गौरव समझते हैं। आवश्यकता से अधिक तीव्र गति से वाहन चलाना और गति पर नियंत्रण न रख पाना अनेकों बार दुर्घटना का कारण बन जाता है। वो इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि वाहनों में तकनीकी प्रणाली होती है, जिस पर नियंत्रण रखना वाहन चालक पर निर्भर करता है।
बिना हेलमेट पहने दोपहिया वाहन चलाना अत्यंत खतरनाक साबित होता है, परंतु युवा पीढ़ी इसे अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।
सड़क सुरक्षा नियमों से अनभिज्ञ लोग की बार दूसरों के लिए भी जानलेवा साबित होते हैं,कई बार ऐसे लोग राह चलते राहगीरों को कुचल डालते हैं।
जहां तक सड़क सुरक्षा और परिवहन विभाग का दायित्व है,यह जागरूक करने से ज्यादा चालान करने और राजस्व एकत्रित करना ही अपने उत्तरदायित्व की इतिश्री समझ लेते हैं, जिसके कारण लोग पैसे देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। क्योंकि पैसा आधुनिक काल में कोई प्रश्न नहीं है, प्रश्न है समझ का, दायित्व निभाने का और जागरूकता का।
दूसरे पहलू पर अगर विचार किया जाए तो वाहनों की तकनीक भी प्रश्न पैदा करती है, वाहनों में तकनीकी लाइटें जो दिन के समय भी जगमगाती हैं, क्या औचित्य है समझ से परे है, लेज़र लाइट जो आवश्यकता के समय ही प्रयोग की जानी चाहिएं। वो सामने वाले वाहन चालक की आंखों को अंधियारा कर देती हैं और परिणामस्वरूप वाहन पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है। लेज़र लाइट का उपयोग मार्ग को दूर तक स्पष्ट रूप में देखने के लिए किया जाता है, जबकि वाहनों की भीड़ में इसका कोई औचित्य परिलक्षित नहीं होता है, परंतु अधिकांश वाहन चालक उसे निरंतर जलाकर गाड़ी चलाते हैं।शाम या रात के समय वाहनों की लाईट को मंद करना भी आवश्यक हो जाता है,जब सामने से कोई वाहन आ रहा हो, लेकिन आमतौर पर देखा जाता है कि वाहन चालक इस ओर ध्यान नहीं दिया करते हैं।जो अंततः दुर्घटना का कारण बनता है।
और सबसे महत्वपूर्ण और व्यवहारिक पहलू है नशा करके वाहन चलाना,यह ऐसा विषय है जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि नशा करने के कारण मानव की निर्णय क्षमता में अपेक्षाकृत कमी आ जाती है, जिसके कारण आपात स्थिति में वाहन चालक वाहन पर नियंत्रण नहीं रख पाते और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
वैसे तो हमारे देश में वाहन चलाने से संबंधित कई कानून बनाए गए हैं, परंतु उनके प्रति अनभिज्ञता और उदासीनता मुख्य रूप से दुर्घटनाओं के लिए उत्तरदाई हैं।
हाल ही में घटित दुर्घटनाओं से यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि किशोरावस्था में स्पीड के प्रति बढ़ता क्रेज और साथ में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति जैसे युवा पीढ़ी में एक फैशन बन गया है, जो अंततः जान गंवाने तक पहुंच गई है, उत्तराखंड में हुई भयंकर दुर्घटना, जहां युवाओं ने गाड़ी को 180किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलाना कितना न्यायोचित है?. कितने ही घरों के चिराग बुझ गए !
उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि हम स्वयं और हमारी भावी पीढ़ी भी जीवन के लिए आवश्यक गुणों, धैर्य,संयम और सहनशीलता का समावेश नहीं कर पाए हैं।
हमने अपने बच्चों को आधुनिक सुविधाओं से तो सम्पन्न कर दिया, परंतु जीवन जीने की कला और संस्कृति तथा जीवन का अस्तित्व और अनमोल वरदान की समझदारी विकसित करने में असफल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप बहुत से किशोर अल्पायु में ही अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं, जो कि गंभीर चिंता का विषय है। माता पिता बच्चों की जिद्द के आगे और भावनाओं के आगे लाचार दिखाई पड़ते हैं, जिस के भयंकर परिणाम परिलक्षित हो रहें हैं।
जीवन के अस्तित्व को बनाए रखना और बच्चों में जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना और जीवन के लिए आवश्यक गुणों का विकास करना हम सभी का दायित्व है। अभिभावकों और व्यवस्था से जुड़े लोगों को अपने दायित्व समझने और निभाने के लिए आवश्यक प्रयास और जागरूकता को महत्व देना होगा,तभी हम इस प्रकार की घटनाओं से बच सकते हैं और अनमोल जीवन को सुरक्षित रख सकते हैं।यह दायित्व हम सभी का है और मिलकर निभाना होगा।
आज अपने देखा जाए तो परिवहन विभाग और पुलिस विभाग द्वारा ऐसी दुर्घटनाओं के लिए चालान करने का काफी प्रचलन बढ़ रहा है, परंतु वर्तमान समय में चालान मात्र समाधान नहीं है, आवश्यक है जागरूकता और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण ताकि वाहन चालक स्वयं यह महसूस कर सकें और अविभावक भी अपने बच्चों के प्रति अनुशासनात्मक रवैया अपना सकें जिससे समाज का भला हो सकता है।
विक्रम वर्मा
स्वतंत्र लेखक
चम्बा हिमाचल प्रदेश।