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शहरों से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में बिक रहा नशा शहर से ज्यादा नशे का कारोबार गांवों में फैला है।

शहरों से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में बिक रहा नशा
शहर से ज्यादा नशे का कारोबार गांवों में फैला है।
जिम्मेदारों को मेडिकल स्टोर्स के जांच के लिए नहीं टाइम
हनुमानगढ़।✍️ (मदनलाल पण्डितांवाली)।
शहरों से ज्यादा नशे का कारोबार गांवों में फैला है। नशामुक्त समाज की सृजना के लिए शासन-प्रशासन द्वारा भरपूर प्रयास किए जाने का दावा किया जा रहा है परंतु इसके उलट जमीनी सच्चाई यह भी है कि, जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध नशे का कारोबार खूब फल-फूल रहा है।वर्तमान सरकार व जिला पुलिस अधीक्षक श्री अरशद अली द्वारा नशा रोकने के लिए अभियान चलाए जाने की बात की जा रही है, परंतु न तो नशा की सप्लाई लाइन टूटी और न ही नशे की डिमांड खत्म हुई। सरकार द्वारा नशे की रोकथाम की दिशा में तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे है, पुलिस-प्रशासन भी पूरी तरह से सक्रिय दिखाई दे रहा है परंतु नशे के सौदागर है कि उन पर इनका कोई असर होता हुआ दिखाई ही नहीं पड़ रहा है।
जिले के पुलिस अधीक्षक श्री अरशद अली ने जिले में नशा रोकने के लिए पूरी तरह से अपनी भूमिका निभा रहे हैं। लगातार जब से उन्होंने जिले की बागडोर संभाली थी तब से नशे के सौदागरों पर अभियान चला कार्रवाई की व ज़िले में खूब वाहवाही भी बटोरी, लेकिन सच बात तो यह है कि पुलिस अधीक्षक श्री अरशद अली जिले के ग्रामीण क्षेत्रों को नशामुक्त नहीं बना पाए।
"वहीं एक एक कहावत है कि नशे का जो हुआ शिकार, उजड़ा उसका घर परिवार"।
पीलीबंगा उपखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षो से चल रहे नशे के अवैध कारोबार के कारण कई लोगों की खुशियां छिन गई।
नशे की लत के कारण ऐसे लोग खुद तो बर्बाद हुए ही, उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों की भी ¨जदगी को नर्क बना डाला।ग्रामीण अंचलों में मेडिकल स्टोर से लेकर किराना दुकान में नशीली दवाओं की बिक्री धडल्ले से हो रही हैं। जिस दवा को बीमारी से निजात दिलाने के लिए बनाया गया है उसका उपयोग युवाओं द्वारा नशे के लिए किया जा रहा है। नशे के लिए बीड़ी, सिगरेट और शराब के अलावा सीरप , इंजेक्शन और टेबलेट का उपयोग हो रहा है। मेडिकल स्टोर वाले अपने थोड़े से फायदे के लिए बिना डाक्टर की पर्ची देखे ही ये नशीली दवाएं बेंच रहे हैं।
युवकों में दिन-ब-दिन नशे को लेकर झुकाव बढ़ता जा रहा है। शराब, सिगरेट, गांजा के साथ अब नशे के लिए युवा नए तरीके भी इजाद कर रहे हैं। दर्द और एलर्जी से राहत दिलाने के लिए बनाई गई दवाइयों को उपयोग युवा वर्ग नशे के लिए करने लगा है। *हरे तोते नामक* कैप्सूल का नशे के लिए उपयोग होता है। नशे के ये सामान मेडिकल स्टोर में 2 रुपए से लेकर 15 रुपए में आसानी से मिल जाते हैं। युवा एक साथ चार से पांच कैप्सूल खाकर इसका उपयोग नशे के लिए कर रहे हैं। इन नशीली दवाओं की ब्रिक्री कर मेडिकल स्टोर के संचालक चांदी कूट रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में धार्मिक स्थल और सार्वजनिक स्थानों पर आजकल *हरे रंग के गोली कैप्सूल* सेवन करने के बाद में पाए जाते हैं। जिन्हें नशेड़ी हरे तोते के नाम से मशहूर कर रखा है।
*जिम्मेदारों को मेडिकल स्टोर्स के जांच के लिए नहीं टाइम*
मेडिकल स्टोर्स की जांच और कार्रवाई करने के लिए जिले में ड्रग इंस्पेक्टर व जिम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति की गई है। लेकिन किसी के पास इसके लिए टाइम नहीं है। नशीली दवा का कारोबार ग्रामीण क्षेत्रों में भी खूब फल-फूल रहा है। मेडिकल स्टोर्स पर निरीक्षण नहीं होने से दुकान वालों को कोई भय भी नहीं है। ड्रग इंस्पेक्टर द्वारा साल में ग्रामीण क्षेत्र के एकाध मेडिकल स्टोर्स में कार्रवाई कर इतिश्री कर लिया जाता है। आखिर क्यों नहीं होती है कार्रवाई।

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