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*चुनाव, चुनाव कमेटी, समाज और न्यायालय*

*चुनाव, चुनाव कमेटी, समाज और न्यायालय*
जब से चुनाव की घोषणा हुई तब से अब तक चुनाव निरन्तर विवादों में रहा है। कभी चुनावी प्रत्याशियों को लेकर, कभी आम सभा को लेकर, कभी पूर्व कार्यकारिणी को लेकर तो कभी चुनाव कमेटी को लेकर। ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव धाम के ना होकर किसी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की किसी कमेटी के हो, जिसे प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। प्राण जाए पर प्रतिष्ठा ना जाए। किसी तरह कुछ ठीक हुआ चुनाव कमेटी बनी, चुनावी तिथि की घोषणा हुई, नए सदस्य बनाए गए। सर्व साधारण ने राहत की सांस ली की चलो अब पटाक्षेप हुआ। किन्तु फिर एक नया मोड आया। एक पूर्व प्रत्याशी ने चुनाव कमेटी के सामने मांग रखी कि चुनाव संशोधित विधान के अनुसार करवाए जाए। किन्तु शायद मांग रखने वाला एक बाल काटने वाला था और चुनाव कमेटी के सदस्य उच्च शिक्षित। उनमें उनसे ज्यादा योग्यता व समझ थी। अतः ना तो उन्हें कोई जवाब दिया गया ना ही उनकी मांग पर विचार किया गया। अंततः उन्हें भारतीय न्याय प्रणाली ओर न्यायालय में विश्वास रखते हुए न्यायालय की शरण में जाना पड़ा। उसके बाद भी कई नाटकीय मोड आए। कई क्रिया प्रतिक्रिया हुई। सोशीयल मीडिया पर लोगों का अच्छा मनोरंजन हुआ। ऐसा लग रहा है जैसे किसी धारावाहिक का डेली शॉप चल रहा हो, जहां प्रत्येक सुबह सर्व साधारण इस उत्सुकता में मोबाईल अपने हाथ में लेता है कि आज क्या नया होगा और देर रात को इस असमंजस के साथ सोता है कि कल क्या मोड आयेगा।
किन्तु इन सभी में चुनावी कमेटी पर कोई असर नहीं पड़ा। वो अपना रवैया बरकरार रखते हुएं चुप बैठी रही। शायद उसे इस बात का अहसास था हम जो भी करेंगे वहीं सही होगा। इसी वजह से उन्हें संविधान को भी दरकिनार कर दिया। जब वाद न्यायालय में गया और माननीय न्यायाधीश के द्वारा आगामी सुनवाई की तारीख दे दी गई जो कि चुनावी तारीख के बाद की है, तो मुख्य चुनाव अधिकारी के द्वारा चुनाव स्थगित करने का आदेश दिया गया ओर उसकी सूचना समाचार पत्र व सोशीयल मीडिया के माध्यम से सर्व साधारण को दे गई। यहां फिर एक नाटकीय मोड आया और दूसरे दिन एक पत्र जारी किया गया जिसमे सहायक चुनाव अधिकारियों के द्वारा मुख्य चुनाव अधिकारी के फैसले से असहमति तथा चुनाव तय समय पर करवाने की प्रतिबद्धता दर्शाई गई।
लेकिन रुकिए अभी इतना ही काफी नहीं था। उसी शाम को वर्तमान सचिव के द्वारा एक पत्र जारी किया गया जिसमे वर्तमान चुनाव कमेटी भंग करने तथा बाद में आम सभा में नई कमेटी गठित करने का आदेश जारी किया गया।
लेकिन इन सब में कुछ प्रश्न ऐसे है जिन्हें जवाब की जरूरत है और सर्व साधारण उन सवालों के जवाब जानने का इच्छुक है।
1. चुनाव कमेटी के द्वारा मुख्य तीन पदों पर चुनाव क्यों घोषित किए गए।
2. यदि विधान के अनुसार तीन पदों पर चुनाव घोषित किए गए तो कुल 131 पदों के लिए क्यों नहीं ?
3. यदि विधान के अनुसार ही इन्हें चुनाव करवाना था तो क्या चुनाव कमेटी ने विधान की प्रति का अवलोकन किया था?
4. यदि किया था तो फिर सभी 131 पदों तथा विधान में तय राशि पर विचार क्यों नहीं किया ?
5. जब एक सामाजिक बंधु द्वारा इस विषय पर ध्यान आकर्षित किया गया तो उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया ?
6. जब वाद न्यायालय में गया उसकी प्रथम पेशी हुई तो उसी समय जवाब क्यों नहीं दिया गया ?
7. क्या कारण है कि न्यायालय के द्वारा अगली सुनवाई की तारीख दिए जाने के बाद भी सहायक चुनाव अधिकारी तय तिथि पर ही चुनाव करवाने के लिए अड़े हुए हैं ?
8. क्या इन्हें अपने पद व उच्च शिक्षित होने का इतना घमंड है जो एक बाल काटने वाले को तो छोड़ो अब अपने आपको भारतीय न्याय प्रणाली ओर न्यायालय से भी ऊपर मानने लगे है ?
9. क्या ये सब एक पूर्व सुनियोजित प्लानिंग है जो मुख्य चुनाव अधिकारी के विरुद्ध जाकर तय तिथि पर ही चुनाव करवाने पर अड़े हुए हैं ?
10. यदि येन-केन प्रकारेण सहायक चुनाव अधिकारी तय तिथि पर चुनाव करवा देते है और उसके बाद न्यायालय के द्वारा वह चुनाव अयोग्य पारित कर दिया जाता है तो चुनाव में व्यय हुई समाज की राशि भुगतान कोन करेगा ? चुनाव कमेटी, या अन्य विशेष जिसे लाभ पहुंचाने के लिए यह रंगमंच तैयार किया जा रहा है ?
एक बात का विशेष ध्यान रखें कोई भी व्यक्ति विशेष समाज से ऊपर नहीं है और ना ही कोई चुनावी कमेटी न्यायालय से इसलिए मेरे समाज समाज को न्याय प्रणाली में विश्वास रखना चाहिए क्योंकि पैसा बहुत मेहनत से कमाया जाता है समाज के लिए पैसों का सदुपयोग होना चाहिए ना कि दुरुपयोग

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