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सम्बन्ध

आज व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों की नींव निजी महत्व एवं स्वार्थ पर आधारित हो गई है / आज के संबंधों का आधार भावनात्मक न होकर मतलब परस्त हो चुका है/ आज व्यक्ति स्वयं को सही सिद्ध करने के लिए अन्यत्र को किसी भी हद तक कष्ट पहुंचाने से नहीं हिचकता / जिस देश में कृष्ण-सुदामा,राम-लक्ष्मण जैसे संबंधों को निभाने वाले किरदार उपस्थित रहे हो आज वही ' स्वार्थ' संबंधो पर एक मोटी परत बनाए हुए है / सर्व विदित है संबंध बनाने से ज्यादा उन्हें निभाने का दायित्व होता है/ प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह उस व्यक्तित्व का सदैव सम्मान व रक्षण करें जो आपत्ति काल में व मन मस्तिष्क से आपके लिए सहयोगी रहा हो / अपने शत्रु की तलाश करना एक सार्थक कदम हो सकता है परंतु चाहे 10 शत्रु को अपना लिया जाए परंतु एक मित्र का परित्याग करना ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार कोई बच्चा पानी की तलाश में तेजाब को पी जाए / आज के दौर में जीवन की चढ़ती सीढ़ियों के साथ आपको अन्य व्यक्ति द्वारा अगर 'छल' लिया जाए तो आप जीवन पर्यंत उस 'छल' को नहीं भूल सकते /इसलिए स्वम भी अपना व्यवहार दोष रहित एवं धर्म परायण रखना अति महत्वपूर्ण कदम है /
अंततः शाश्वत धर्म यही है कि संबंधों को निभाने का प्रण आपके आत्मिक प्राण से कहीं अधिक महत्व रखता है/ जिसे निभा कर ही आप शख्सियत का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं/
लेखक -अभिषेक धामा

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