आउटसोर्स कर्मचारियों के न्यूनतम मानदेय को अतिशीघ्र लागू करे सरकार निर्धारित न करने तक कर्मियों को संशय।
लखनऊ। प्रदेश मे निजी सेवा प्रदाता कंपनियों के माध्यम से कार्यरत प्रदेश के लगभग 5 लाख से अधिक आउटसोर्स कर्मचारियों के न्यूनतम मानदेय निर्धारित करने में हो रहे विलंब से कर्मचारियों में संशय से बढ़ रहा है ।राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने आज प्रदेश के मुख्यमंत्री के आधिकारिक ईमेल पर पुनः पत्र भेजते हुए आउटसोर्स कर्मचारियों के न्यूनतम मानदेय निर्धारित किए जाने के मुख्य मंत्री जी के आश्वाशन की याद दिलाया है। उन्होंने कहा है मुख्यमंत्री जी आउटसोर्स कर्मचारियों की पीड़ा एवं शोषण से भलीभांति वाकिफ हैं। प्रदेश के मुख्य सचिव भी इस बात को महसूस करते हैं कि आउटसोर्स कर्मचारियों को शोषण से मुक्ति मिलनी चाहिए। 10 दिसंबर को राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता में उन्होंने न्यूनतम मानदेय 20000 निर्धारित किए जाने के संकेत भी दिए थे। आउटसोर्स कर्मचारियों का प्रकरण सूक्ष्म, लघु ,मध्यम उद्यम विभाग, श्रम, कार्मिक ,वित्त एवं सचिवालय प्रशासन के बीच घूम रहा है। मुख्यमंत्री जी द्वारा सबकुछ तय कर दिए जाने के बाद भी मानदेय निर्धारित करने में हो रहे विलंब का कारण समझ से परे है। शासनादेश में विलंब के कारण आउटसोर्स कर्मचारियों में भी बेचैनी बढ़ रही है। विभिन्न विभागों में आउटसोर्स कर्मी आंदोलन की तैयारी में भी लगे हुए हैं ।परिषद ने आउटसोर्स कर्मियों का न्यूनतम मानदेय निर्धारित किए जाने एवं शोषण से मुक्ति दिलाए जाने का संकल्प भी लिया है। संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने अपने प्रस्ताव में यह भी अवगत कराया है कि भी चतुर्थ वर्गीय पद पर कार्यरत आउटसोर्स कर्मियों को न्यूनतम 20000 रुपए का मानदेय दिया जाना चहिए तथा अन्य पदों पर कार्यरत आउटसोर्स कर्मियों को उनके संवर्गीय संरचना के न्यूनतम ग्रेड वेतन के आधार पर मानदेय का निर्धारण करने की मांग मुख्यमंत्री से की गई है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नारायण जी दुबे एवं महामंत्री अरुणा शुक्ला ने भी आउटसोर्स कर्मियों को आश्वस्त किया है कि संयुक्त परिषद आउटसोर्स कर्मियों को शोषण से मुक्ति दिलाने के लक्ष्य पर कार्य कर रही है ।