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काशीपुर :- मोटेश्वर महादेव की नगरी काशीपुर में बनाई जा रहीं आलीशान मजारें, सरकारी जमीनों पर कब्जे करने का लैंड जिहाद #upendrasingh

काशीपुर उधम सिंह नगर जिले में काशीपुर ऐसा पौराणिक शहर है, जहां पुरातत्व विभाग द्वारा कई महत्वपूर्ण मंदिरों और अन्य स्थानों को ऐतिहासिक धार्मिक धरोहरों में सूचीबद्ध किया गया है। मोटेश्वर महादेव जैसे प्रसिद्ध शिवालय मंदिर नगरी, चैती मंदिर, मनसा देवी मंदिर, नाग शक्ति मंदिर, द्रोणसागर, गिरिताल जैसे सनातन आस्था के केंद्र काशीपुर में इन दिनों बड़ी बड़ी मजारों का निर्माण का काम चल रहा है।

खास बात ये कि ये एक ही नाम की कई फ्रेंचाइजी मजारें सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करके बनाई गई हैं और प्रशासन इस ओर आंखे मूंदे बैठा हुआ है। जानकारी के अनुसार, हाल ही में कटोराताल क्षेत्र में एक स्कूल के पास एक मजार को आलीशान रूप दिया का रहा है। जबकि, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि किसी भी धार्मिक स्थल पर बिना डीएम की संस्तुति के कोई नव निर्माण नहीं किया जा सकता। इस मामले में हाईकोर्ट को निगरानी के लिए अधिकृत किया गया है और उनके द्वारा हर जिले में डीएम को नोडल अधिकारी बनाया गया है।

काशीपुर शहर और ग्रामीण क्षेत्र में एक दो नहीं करीब तीस मजारें अवैध रूप से बना दी गई और इनमें से कुछ तो लोगों की निजी जमीन पर कब्जे करने की नीयत से भी बनाई गई है। जानकार बताते हैं कि इतने फकीर तो काशीपुर में कभी देखे सुने भी नहीं गए जो यहां दफना दिए गए होंगे। हकीकत ये है कि इन मजारों के अंदर कुछ भी नहीं है।उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में धामी सरकार ने 5 सौ से अधिक अवैध मजारों को ध्वस्त किया है और इनमें कोई किसी भी प्रकार का अवशेष नहीं मिला।
जानकार बताते हैं कि इन मजारों में मुस्लिम सजदा नहीं करते, बल्कि हिंदू अंधविश्वासी जाते हैं और ये एक बिजनेस करने का अड्डा है जहाँ मुस्लिम खादिम बैठकर हिंदुओं को झाड़ फूंक कर पैसा कमाते हैं।

बहरहाल काशीपुर में अचानक से आलीशान मजारों के बनने के पीछे क्या रहस्य है, कौन इन्हें फंडिंग कर रहा है ? किसकी अनुमति से ये बनाई जा रही है ये सवाल अब उधम सिंह नगर प्रशासन के सम्मुख है।
ऐतिहासिक सनातन नगरी है काशीपुर
पुरातत्व सर्वेक्षण के सीए नीरज मैठाणी ने बताया काशीपुर का गौविषाण टीला पुरातत्व की दृषिट से काफी महत्वपूर्ण है। विभाग इसका सौदरर्यीकरण करेगी और इसकी सफाई कर इसको गार्डन के रुप में विकसित करने की योजना बना रहा है, जो अगले वित्त वर्ष में संभव होगा। उल्लेखनीय है कि पुरातत्व की दृष्टि से गौविषाण टीला काफी महत्वपूर्ण है। भारत सरकार पुरातत्व विभाग ने वर्ष 1954, 1964 व 2005 में इसका उत्खनन किया था। उत्खनन में त्रिविक्रम, नरसिम्हा की प्रतिमा और छठी शताब्दी का पंचायती मंदिर तथा महाभारत कालीन कई महत्वपूर्ण कलाकृतियां व अवशेष मिले थे।

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वर्णन में गौविषाण टीला का वर्णन एक विशाल किला और नगर के रुप में और इसी के पास स्थित तीर्थ द्रोणसागर का वर्णन हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रुप में किया है। वर्ष 2005 में उत्खनन भगवान बुद्ध के नाखून व बाल की खोज के लिए हुआ था। पुरातत्व अधिकारियों ने गौविषाण टीले की खुदाई में चार सभ्याताओं के अवशेष पाए जाने का दावा किया है। त्रिविक्रम की प्रतिमा राष्ट्रीय संग्राहलय दिल्ली और नरससिम्हा की प्रतिमा पुरात्तव संग्रहालय जागेश्वर अल्मोड़ा में रखी गई है।

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