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कॉरपोरेट संस्कृति: आधुनिक युग की अदृश्य बेड़ियाँ

*कॉरपोरेट संस्कृति: आधुनिक युग की अदृश्य बेड़ियाँ*

हमारे बुजुर्गों की कहानियाँ हमें अतीत की एक झलक दिखाती हैं। एक समय था जब बड़े उद्योगपति मजदूरों को गुलामों की तरह रखते थे। मजदूरों की पहचान उनके पैरों में कड़े से होती थी, और वे मालिक की अनुमति के बिना कोई निर्णय नहीं ले सकते थे। यह व्यवस्था मानवता की असमानता और शोषण का प्रतीक थी।

आज के दौर में, कॉरपोरेट जगत ने उस गुलामी को एक नए स्वरूप में पेश किया है। भले ही आज श्रमिकों को “कर्मचारी” कहा जाता है और उन्हें वेतन, सुविधाएँ, और सम्मान दिया जाता है, लेकिन क्या यह वास्तव में आज़ादी है? आइए, इस सवाल का उत्तर तलाशें।

*कैसे बदला समय, और कैसे वही रहा?*

पुराने समय की गुलामी:
• मजदूरों को केवल अपनी आजीविका चलाने के लिए काम करना पड़ता था।
• स्वतंत्रता छीन ली जाती थी, और उनकी पहचान मालिक के आदेशों से बंधी होती थी।

आधुनिक समय की गुलामी:
• आज कर्मचारी को अधिक वेतन और सुविधाएँ दी जाती हैं, लेकिन इसके साथ भारी काम का दबाव भी आता है।
• तकनीक (लैपटॉप, मोबाइल) उन्हें 24/7 काम के लिए बांध देती है।
• व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन को लगभग समाप्त कर दिया गया है।

आधुनिक गुलामी के प्रभाव

1. काम के दबाव से मानसिक थकावट:

आज का कर्मचारी दिन-रात काम के बोझ तले दबा हुआ है।
• आँकड़े बताते हैं कि 77% कर्मचारी मानसिक थकावट (Burnout) के शिकार हैं।
• लगातार काम के चलते चिंता और अवसाद जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।

2. पारिवारिक और सामाजिक जीवन का पतन:
• तलाक के मामलों में वृद्धि: पारिवारिक रिश्ते कमजोर हो रहे हैं, क्योंकि कर्मचारी परिवार को समय नहीं दे पा रहे।
• बच्चों पर प्रभाव: बच्चों को संस्कार और देखभाल नहीं मिलने के कारण वे ग़लत आदतों का शिकार हो रहे हैं।

3. सामाजिक कनेक्शन का अभाव:
• दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ समय बिताना अब अतीत की बात लगती है।
• कर्मचारी मशीन बनकर रह गए हैं, जो केवल अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित हैं।

*क्या है समाधान?*

1. वर्क-लाइफ बैलेंस:
• कंपनियों को नीतियाँ बनानी चाहिए जो कर्मचारियों को व्यक्तिगत समय दें।
• उदाहरण: कुछ कंपनियाँ “नो वर्क ऑन वीकेंड्स” जैसी नीतियाँ अपनाती हैं।

2. मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें:
• कर्मचारियों को योग, ध्यान, और काउंसलिंग जैसी गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
• तकनीक का सीमित उपयोग सुनिश्चित करें।

3. कॉरपोरेट संस्कृति में बदलाव:
• कंपनियों को यह समझना चाहिए कि खुश कर्मचारी ही बेहतर उत्पादकता दे सकते हैं।
• काम के घंटों और अपेक्षाओं को यथार्थवादी बनाना जरूरी है।

*क्या यह नई गुलामी है?*

भले ही आज का कर्मचारी पुराने समय के मजदूरों से बेहतर परिस्थितियों में है, लेकिन उनकी स्वतंत्रता पर अब भी सवाल उठता है।
कॉरपोरेट जगत में आजादी के नाम पर कर्मचारियों से उनके जीवन का संतुलन छीन लिया गया है।
हमें अपने जीवन को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। पैसा जरूरी है, लेकिन इससे भी अधिक जरूरी है परिवार, स्वास्थ्य, और अपनी पहचान को बनाए रखना।

मनोज शर्मा गौड़
सिलीगुड़ी
9832427777

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