logo

श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर की कलम से

हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत हमें कब और कितना चौंका सकती है इसका कयास लगाना असम्भव ही है। इस बार हमें चौंकाया मंदसौर जिले में स्थित धर्मराजेश्वर मन्दिर ने। हम इसी माह एक सप्ताहांत पर मध्य प्रदेश - राजस्थान सीमा पर चम्बल नदी पर बने गांधीसागर बांध स्थित मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के रिजॉर्ट पर गए थे। बांध के बनाए जाने से निर्मित जलाशय, गांधी सागर, के किनारे पर बने इस खूबसूरत रिजॉर्ट में समय बिताना एक अत्यंत सुखद और आरामदायक अनुभव रहा।

गांधीसागर से लौटते समय भतीजे और प्रसिद्ध वास्तुविद ईशान नातू के विशेष आग्रह पर शामगढ़ के नजदीक धर्मराजेश्वर मन्दिर देखने जाना हुआ। मन्दिर ने स्तब्ध कर दिया। शामगढ़ से कुछ 15-20 किमी दूर चंदवास ग्राम में स्थित श्री धर्मराजेश्वर मन्दिर एक चमत्कार है। वास्तुशास्त्र में इसे रॉक कट टेंपल कहा जाता है। रॉक कट से आशय है कि यह मन्दिर एक ही शिला को काटकर बनाया गया है। कुछ कुछ महाराष्ट्र के एलोरा के कैलाश मन्दिर की तरह! एक विशाल चट्टान को काट कर उसमें से एक पूरा मन्दिर ही नहीं बल्कि मन्दिरों का समूह निर्मित किया गया है।

यह शिला करीब 150 फीट लम्बी, 70 फीट चौड़ी और लगभग 30 फीट ऊंची एक विशाल चट्टान है। इस चट्टान के एक कोने में मन्दिरों का एक संकुल काटा गया है। जाहिर है कि ये मन्दिर ऊपर से काटना शुरू कर नीचे की ओर काटते हुए बनाए गए हैं। यानी, मन्दिर के उत्कीर्ण करने का प्रारम्भ मन्दिर के शिखर से होता है। सबसे पहले शिखर, उसके नीचे मन्दिर का गर्भगृह जिसके आगे सभामंडप और द्वार आदि। मंदिर की बाहरी दीवारों पर सुन्दर आकृतियां और मूर्तियां तराशी गई हैं, वहीं गर्भगृह के अन्दर छत पर भी अत्यन्त सुन्दर सजावट की गई है। सभामंडप में स्तम्भ हैं, गवाक्ष है और गर्भगृह में भगवान विष्णु के विग्रह के साथ ही शिवलिंग भी है। सभामंडम इतना बड़ा है कि 20-25 लोग आराम से बैठ सकते हैं या आरती आदि में सहभागी हो सकते हैं। यह इस मन्दिर संकुल का सबसे बड़ा और मुख्य मन्दिर है। इसकी लम्बाई करीब 50 फीट और चौड़ाई करीब 20 फीट है। परिसर में इस मुख्य मन्दिर के अतिरिक्त 7 और मन्दिर हैं जो अनुपात में इस मुख्य मन्दिर से काफी छोटे हैं। चट्टान काटने से बनी चट्टानी दीवारों के मध्य में एक करीब 5 फीट चौड़ी गैलरी करीब 10 फीट की ऊंचाई पर काटी गई है। यह गैलरी मंदिर के बाईं ओर से प्रारंभ हो कर पीछे के ओर से घूमते हुए दाईं ओर के छोर पर आकर समाप्त होती है। इस गैलरी के मध्य में एक कमरा भी काटा गया है। मन्दिर के तल तक आते हुए चट्टान लगभग 30 फीट तक काटी दी गई है। या यूं कहें कि मुख्य मन्दिर की ऊंचाई लगभग 30 फीट हैं। अन्य मन्दिर छोटे, लगभग 15 फीट ऊंचे हैं। इस संकुल का एक विस्तृत द्वार है। देहरी है। देहरी से निकल कर बाहर की ओर जाने के लिए उसी चट्टान में से एक लगभग दस फीट का गलियारा काटा गया है। दोनों और चट्टान की 30 फीट ऊंची दीवारें और लगभग 100 फीट का लम्बा गलियारा!

पुनश्च, ये सब कुछ एक ही चट्टान से उत्कीर्ण किए गए हैं! आप अपनी आंखों से देख रहे होते हैं फिर भी यकीन करना कठिन हो जाता है। स्वयं को बार बार विश्वास दिलाना पड़ता है कि यह सब आज से 1200 वर्ष पूर्व हाथों से चट्टान को काट कर बनाया गया है।

मन्दिर से पीछे चन्द मीटर दूर ही कईं बौद्ध गुफाएं हैं। ये गुफाएं मन्दिर से भी अधिक प्राचीन है। करीब 51 गुफाएं काफी सुरक्षित स्थिति में हैं। कुछ गुफाएं काफी बड़ी है। अधिकांश में शिवलिंग से मिलती जुलती एक काफी बड़े आकार की स्तंभनुमा रचना बनी हुई है। एक गुफा में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां भी बनी हुई हैं। ये गुफाएं भी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। पुरातत्व विभाग इस स्थान को विकसित करने में जुटा हुआ है। आने वाले वर्षों में सम्भवतः बेहतर परिसर देखने को मिलेगा।

सबकुछ हमें मंत्रमुग्ध कर देता है। हम बस सोचते ही रह जाते हैं कि यह सब कैसे किया गया होगा? क्या तकनीक रही होगी? कैसे उपकरण उपलब्ध रहे होंगे? क्या नियोजन होगा? कितना समय लगा होगा? वहां उपस्थित पुजारी श्री रामलाल भट से जो बातचीत हुई उनके अनुसार यह मन्दिर लगभग 8 वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था। गुर्जर प्रतिहार राजवंश द्वारा इसे बनवाया गया था। भट परिवार गत 900 वर्षों से मन्दिर में पूजा अर्चना कर, करवा रहा है। रामलाल जी के अनुसार उनके पास उनके परिवार का 900 वर्षों का इतिहास दर्ज है। मन्दिर वर्तमान में पुरातत्व विभाग के नियंत्रण में है। विभाग का एक कार्यालय वहां है, परन्तु सोमवार होने से सम्भवतः अवकाश का दिवस था। मंदिर के बाहर लगे एक पत्थर पर मन्दिर का नाम इत्यादि लिखा है परन्तु निर्माण काल और निर्माणकर्ता राजवंश आदि के बारे कोई सूचना नहीं है। गूगल बाबा पर भी सतही जानकारी ही उपलब्ध है। निर्माण काल के सम्बन्ध में भी अलग अलग जानकारियां मिल रही हैं। जो थोड़ा बहुत पढ़ने सुनने में आया है उससे प्रतीत होता है कि यह मन्दिर 8 वी शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार राजवंश द्वारा निर्मित किया गया होगा।

यह विडंबना ही है कि मानव द्वारा निर्मित एक अविश्वसनीय वास्तु के बारे में जानकारियों का नितान्त अभाव है। इन्दौर से कुछ 275 किमी दूर स्थित इस अदभुत निर्मिती को आप सभी अपनी अपनी दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल कर लीजिए। जब भी जाएंगे धन्य हो जाएंगे!


5
1707 views