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ज्ञान प्रकाश आकुल जी एक हृदय स्पर्श करती हुई शानदार मनोरम प्रेरणाएं देती हुई कविता. .

जानते ही नहीं खींचता कौन है। चाह कर भी चरन लौटते ही नहीं, जानते हैं कि पानी नहीं दूर तक, पर अभागे हिरन लौटते ही नहीं, उस तरफ जो गया फिर नहीं आ सका,यह भ्रमों से भरा एक संकेत है। कुछ बताने लगे सुख बहुत हैं वहां, कुछ बताते रहे रेत ही रेत है। कुछ दिखाई नहीं दे रहा है मगर, मन भ्रमित है नयन लौटते ही नहीं, एक भटकाव टाला गया देर तक, किन्तु कोई कथा कसमसाती रही, दूर उन्मुक्त आकाश को देखकर, मुक्ति का छंद यह देह गाती रही,लग रहा प्यास ही भाग्य है देह का,नीर लेकर श्रवण लौटते ही नहीं, एक उलझी कहानी सुनाते हुए,हर किसी की नजर डूबकर रह गई, एक राजा निकल कर बना देवता, एक रानी कपिलवस्तु में रह गयी ,जंगलों ने कहानी बदल दी वहां, जो गए वो सजन लौटते ही नहीं. .धनेन्द्र कुमार मिश्र

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