
भू - धारणाधिकार मे प्रभारी नजूल आर आई कि भूमिका संदिग्ध , म. प्र.कांग्रेस,सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष ने भी मांगी जानकारी
डिंडोरी -- राज्य सरकार ने शहरी क्षेत्र के लोगों के लिये भू - धारणाधिकार योजना मे फेरबदल 2014 के स्थान पर 31 दिसम्बर 2020 कर सरल और सहज़ महज इसलिए किया था कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस योजना का लाभ प्राप्त कर सकें। लेकिन आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी के जिला मुख्यालय मे इस योजना मे जरूरतमंदो के आवेदनों को निरस्त कर ऐसे रसूखदारों को तवज्जो दी जा रही है, जिन्होंने भवन निर्माण से पहले नगर परिषद से फर्जी दास्तावेजों के आधार पर अनुज्ञा ली एवं भवन निर्माण करने उपरान्त भू - धारणाधिकार के लिये आवेदन किया और राजस्व महकमे ने प्रकरण तैयार कर एन ओ सी के लिये नगर परिषद डिंडोरी के समक्ष प्रस्तुत कर दिया , और फिर अधिकारियों द्वारा एन ओ सी के लिये मौखिक तौर पर दबाव बनाने का प्रयास। जैसा कि AIMA पहले भी स्पष्ट कर चुका है। हाल ही मे एक अन्य समाचार पत्र मे प्रभारी नजूल आर आई ने भी माना कि नगर परिषद से कागज़ आये और उच्चाधिकारीयों ने दबाव बनाया तो नजूल पट्टा देने कि कार्यवाही कि गई।
प्रदेश अध्यक्ष ने भी मांगी जानकारी -- बता दें कि मध्य प्रदेश कांग्रेस सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष पुनीत टंडन ने भी डिंडोरी राजस्व विभाग मे भू - धारणाधिकार कि जानकारी प्राप्त करने आवेदन प्रस्तुत किया था, लेकिन लोक सूचना अधिकारी और नजूल अधिकारी ने सूचना उपलब्ध कराने मे कोताहि बरती, ऐसी स्थिती मे पुनीत टंडन दिनांक 01/10/2024 को न्यायालय अपर कलेक्टर डिंडोरी के समक्ष अपील प्रस्तुत करने बाध्य हुये। जहाँ से न्यायालय अपर कलेक्टर डिंडोरी ने उन्हें राहत देते हुये भू - राजस्व संहिता 1959 कि धारा 256 के अंतर्गत प्राप्त आवेदन पर नियमानुसार फीस / शुल्क प्राप्त कर आवेदक को जानकारी प्रदाय किये जाने के प्रावधान का स्पष्ट उल्लेख भी किया है।
ऐसे हो रहा खेल -- सूत्रों की माने तो नगरीय क्षेत्र में चीन्ह चीन्ह कर ऐसे लोगों को पट्टे, बतौर रबड़ी वितरित कर दिए गए जो की रसूखदार थे इतना ही नहीं सूत्र तो यह भी बता रहे है की यदि भूमि पर 1500 सौ वर्ग फीट में व्यवसायिक उपयोग का कब्ज़ा है तो उसे महज 500 वर्गफूट व्यवसायिक और शेष 1000 वर्गफीट को आवासीय दर्शाते हुए पट्टे की कार्यवाही कर दी गई। मतलब शेष 1000 वर्गफुट व्यवसायिक लाभ राज्य सरकार को मिलना चाहिए था, सरकार उससे वंचित रह गई। और इस पट्टा वितरण में नगर परिषद की एन ओ सी एवं विद्युत विभाग की एन ओ सी में मीटर मीटर - का खेला भी हुआ है। क्यों और कैसे..? यदि इस मामले में छानबीन हो जाए तो निःसंदेह राज्य सरकार के खजाने में इजाफा तो होगा ही, साथ ही ऐसे दोषी अधिकारी कर्मचारी भी सामने आएंगे, जिन्होंने मिलकर राज्य सरकार को करोडों की चपत लगाई है।
यह भी है चर्चा का विषय -- भू - धारणाधिकार मे की गई मनमानी का अंदाजा आप जगदम्बा मंदिर के पास वार्ड क्रमांक -6 मे फारेस्ट बॉउंड्रीबाल के सामने भी देखा जा सकता है, जहाँ रसूखदारों कों फुटपाथ की ज़मीन पर आसानी से पट्टे दे दिए गये, लेकिन राजेश चौरसिया नामक व्यक्ति और उसके परिजन राजस्व विभाग के चक्कर काटते - काटते थक गये, और अंततः उनका आवेदन भी निरस्त कर दिया गया। क्यों...? ऐसी क्या वजह थी की बाकियो कों रेवड़ियो की तरह पट्टे वितरित किये गये और जरूरतमंद आज भी परेशान है।
सम्पूर्ण नगरीय क्षेत्र कि हो जांच -- सरकारी आवासों के नजूल पट्टे बनाकर लीज पर देने के मामले मे जिलाधिकारी यह कहते नजर आये कि सिविल लाइन क्षेत्र के आवासों कि जांच कि जायेगी। चूँकि मामला गंभीर है और सम्पूर्ण नगरीय क्षेत्र से जुडा है तो जांच पूरे नगरीय क्षेत्र कि की जानी चाहिये, ताकी यह स्पष्ट हो सके की प्रभारी नजूल आर आई ने उच्चाधिकारीयों के दबाव मे और कहाँ - कहाँ और कितना काला - पीला किया है..? और कौन - कौन इस प्रक्रिया मे शामिल है।
इनका कहना है --
डिंडोरी जिला मुख्यालय मे भू - धारणाधिकार अंतर्गत गलत पट्टे वितरित किये जाने की जानकारी प्राप्त हुई थी, जिसमे मेरे द्वारा वहां आवेदन किया गया था। इसी बीच शासकीय आवासों वाली खबर पढ़कर पैरों तले ज़मीन खिसक गई की इस हद तक अंधेरगर्दी कैसे की जा सकती है। बहरहाल मामले की उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिये ताकि दोषी अधिकारी - कर्मचारियों पर शिकंजा कसा जा सके।
पुनीत टंडन ( प्रदेशाध्यक्ष, मध्य प्रदेश कांग्रेस आर टी आई प्रकोष्ठ भोपाल )