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क्या प्रिंट मीडिया का अस्तित्व खत्म हो रहा है ?

क्या भारत में प्रिंट मीडिया का अस्तित्व खत्म हो रहा है? क्या डिजिटल मीडिया प्रिंट मीडिया को खा जाएगा? इस तरह के सवाल उठने लगे हैं। ये सवाल नए नहीं हैं। जब देश में निजी चैनलों का चलन शुरू हुआ तो इसे प्रिंट मीडिया ने अपने लिए खतरा माना था। लेकिन चूंकि तब न्यूज चैनल एक बड़े टीवी सेट पर देखे जा सकते थे, इसलिए प्रिंट मीडिया पर कोई खतरा पैदा नहीं हो सका। स्थानीय खबरों के लिए अखबारों की सहारा था। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। मुट्ठी में दबे मोबाइल ने परिदृश्य बदल दिया है। याद करें, क्रिकेट मैच के दौरान कैसे टीवी पर सैकड़ों लोग टीवी देखते थे। अब क्या कहीं ऐसा नजारा दिखता है? मोबाइल में सीधा प्रसारण आदमी अपने घर पर, दफ्तर में, बस में, रेल में देख सकता है। यही हाल समाचारों का भी है। मोबाइल में कोई भी न्यूज चैनल कहीं भी देखा जा सकता है। केवल देश-दुनिया की ही नहीं, अपने शहर की खबरें भी मोबाइल पर देखी और पढ़ी जा सकती हैं। अखबारों के पाठक तेजी से घटे हैं, खासतौर से कोविड के बाद से। सुबह सवेरे साइकिलों पर अखबार लादे हॉकर इक्क दुक्का ही दिखाई देते हैं। एक हॉकर ने बताया कि पहले मेरे पास पंद्रह सौ अखबार थे, अब मात्र तीन सौ रह गए हैं।

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