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बसेड़ी व बस्सी झाझड़ा में देश का सफलतम पॉलीहाउस मॉडल–कुलपति डॉ बलराज सिंह

श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर के कुलपति डॉ बलराज सिंह ने स्नातकोत्तर और विद्या वाचस्पति के विद्यार्थियों के साथ संरक्षित खेती पर गहन एवं विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि संरक्षित खेती एक आधुनिक और वैज्ञानिक कृषि तकनीक है जो फसलों को प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों से बचाकर नियंत्रित वातावरण में उगाने में सक्षम है। ग्रीनहाउस, पॉलीहाउस और शेड नेट जैसी संरचनाओं का उपयोग करके फसलों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाई जाती हैं।
कुलपति डॉ बलराज ने बताया कि संरक्षित खेती से फसलों की गुणवत्ता में काफी सुधार होता है क्योंकि फसलें कीटों, रोगों, नेमेटोड और खरपतवारों का समुचित नियंत्रण करना आसान हैं। इस तकनीक से बे मौसम किसान साल भर फसलें उगा सकते हैं जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है साथ ही आय के स्रोत मजबूत होते है।
हालांकि भारत में संरक्षित खेती का क्षेत्रफल अभी सीमित है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। देश के उन हिस्सों में जहां जलवायु प्रतिकूल है, वहां संरक्षित खेती की अपार संभावनाएं हैं। यह तकनीक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
उन्होंने बताया कि शेडनेट में विभिन्न संशोधन किए जा सकते हैं ताकि विभिन्न फसलों के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सके। उदाहरण के लिए, लाल रंग की छाया अदरक और हल्दी की खेती के लिए बेहतर मानी जाती है। एकत्रित वर्षा जल का उपयोग रबी की फसलों के उत्पादन को बढ़ाने में किया जा सकता है। डॉ बलराज सिंह के अनुसार, पोर्ट ब्लेयर में बैक्टीरियल विल्ट की समस्या के कारण सब्जियों की खेती चुनौतीपूर्ण है। संरक्षित खेती इस समस्या का एक संभावित समाधान हो सकती है।
साथ ही बताया कि संरक्षित खेती की कुछ प्रमुख चुनौतियों में उच्च लागत, तकनीकी ज्ञान की कमी, कुशल श्रम की कमी और मौसम की अनिश्चितता शामिल हैं। छोटे और सीमांत किसानों के लिए उच्च लागत एक बड़ी बाधा है। उन्होंने बताया कि किसानों को पॉलीहाउस और ग्रीनहाउस की तकनीक को एक क्लस्टर के रूप में अपनाने की जरूरत है, तभी इसका सफल रूप से परिणाम आएगा।
डॉ बलराज सिंह ने बताया कि सरकार संरक्षित खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन प्रदान कर रही है और किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण भी दे रही है। किफायती और टिकाऊ संरक्षित खेती संरचनाओं के विकास और अनुसंधान को बढ़ावा देने से इस क्षेत्र में और अधिक प्रगति हो सकती है। गौरतलब है कि बसेड़ी एवं बस्सी झाझड़ा में देश का सफलतम पॉलीहाउस मॉडल है जो संपूर्ण रूप से जल संरक्षण व बारिश पर आधारित है, साथ ही डॉ बलराज सिंह ने बताया कि बारिश आधारित जल में पोषक तत्वों की मात्रा विद्यमान होती है और यह पोली हाउस में उगाई जाने वाली फसलों के लिए काफी कारगर है।
इस पोली हाउस तकनीकी को सभी जगह पर अपनाने की जरूरत है तथा विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी सलाह देने के लिए भी प्रयास कर रहा है। साथ ही बताया कि बसेड़ी एवं बस्सी झांझड़ा के किसान पॉलीहाउस में खीरे की खेती की बजाय अब मिर्च, टमाटर व चेरी टमाटर की खेती की ओर आकर्षित हो रहे है, जिससे उन्हें अधिक मुनाफा मिल रहा है। संरक्षित खेती भारत में कृषि क्षेत्र को बदलने की क्षमता रखती है। उचित नीतियों, निवेश और किसानों के समर्थन के साथ, हम इस तकनीक की पूरी क्षमता का उपयोग कर सकते हैं और कृषि उत्पादन और किसानों की आय में सुधार कर सकते है। इस कार्यक्रम में डॉ बी एस बधाला , डॉ संतोष देवी सामोता, डॉ राजेश , डॉ पिंकी शर्मा एवं स्नातकोत्तर और विद्या वाचस्पति के 118 विद्यार्थियों को लाभान्वित किया गया।

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