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मूल निवास भू कानून को लेके भूख हड़ताल 26 नवंबर से शहीद स्मारक देहरादून पर

मोहित डिमरी के फेसबुक वॉल से :

एक लड़ाई उत्तराखंड बचाने के लिए...

साथियों, लंबे समय से उत्तराखंड की जनता मूल निवास 1950 और सशक्त भू-क़ानून की लड़ाई को सड़कों पर लड़ रही है। अब इस लड़ाई को निर्णायक मोड़ देने का समय आ गया है। मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति ने निर्णय लिया है कि भूख हड़ताल के जरिये इस लड़ाई को और तेज किया जाय। संघर्ष समिति के साथ ही आंदोलन को समर्थन दे रहे विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक संगठनों और आम जनता की सहमति के बाद संविधान दिवस 26 नवंबर से शहीद स्मारक कचहरी, देहरादून में भूख हड़ताल शुरू कर रहा हूँ।

हालांकि हमारे शुभचिंतकों को इस निर्णय पर आपत्ति है और वह मेरे स्वास्थ्य को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं। वह इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए कह रहे हैं। मैं अपने उन सभी मार्गदर्शकों, शुभचिंतकों और समर्थकों से कहना चाहता हूँ कि अपने राज्य को बचाने और अपनी जनता के सुरक्षित भविष्य के लिए यह कदम उठाना बहुत जरूरी है। बिना त्याग और तपस्या के हम कोई लड़ाई नहीं जीत सकते। अभी इस आंदोलन को और धार नहीं मिली तो हमारी जितनी भी जमीनें बची हुई हैं, वह सब हमारे हाथों से निकल जायेंगी।

यह बात सही है कि भूख हड़ताल किसी भी आंदोलन का अंतिम हथियार होता है। लेकिन अब संवैधानिक व्यवस्था में हमारे पास इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं है। राज्यभर में स्वाभिमान महारैलियाँ करने के बावजूद सरकार न तो मूल निवास 1950 को लेकर धरातल पर काम करती दिखाई दे रही है और ना ही मजबूत भू-कानून बना रही है। पिछले तीन साल से सरकार जनता के आंखों में धूल झोंक रही है। सिर्फ मीडिया में खबरें प्रचारित-प्रसारित कर यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि सरकार मजबूत भू-कानून लाने जा रही है। लेकिन हकीक़त में सरकार गंभीर नहीं दिखाई दे रही है।

हर बार सरकार ने भू-माफिया के पक्ष में कानून बनाया है और इस बार भी क्या गारंटी है कि सरकार जनता के पक्ष में कानून बनाएगी? सरकार कह रही है कि बजट सत्र में मजबूत भू-कानून लायेंगे। किस तरह का भू-कानून लायेंगे, यह भी स्पष्ट नही है। बजट सत्र तक को हमारी सारी जमीनें खत्म हो जायेंगी। हो सकता है कि सरकार कानून को लचर बनाकर एक बार फिर हमारे साथ धोखा करे। इसलिए संघर्ष समिति इस बात पर जोर दे रही है कि भू-कानून का ड्रॉफ्ट विधानसभा में पारित होने से पूर्व जनता के बीच सार्वजनिक किया जाय।

सोचनीय विषय यह है कि सरकार कैबिनेट बैठक बुलाकर अध्यादेश लाकर 2018 से लेकर अब तक हुए भूमि कानूनों के संशोधनों को रद्द कर सकती थी। अवैध बस्तियों को बचाने के लिए तो सरकार अध्यादेश ले आई, लेकिन जमीनों को बचाने के लिए सरकार ठोस कदम नहीं उठा रही है। इन दिनों तेजी से भू-माफ़िया द्वारा उत्तराखंड में जमीनें खरीदने की खबरें भी आ रही हैं।

अब हम सबकी जिम्मेवारी है इस आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाने की। आप सोशल मीडिया, मीटिंग्स और फोन के जरिए भूख हड़ताल की जानकारी अपने परिचितों, सगे-सम्बंधियों, दोस्तों और सामाजिक संगठनों तक पहुँचाने में सहयोग कर सकते हैं। यह आंदोलन हम सभी के भविष्य, सांस्कृतिक पहचान, संसाधन और अस्तित्व को बचाने का आंदोलन है। यह लड़ाई अकेले मेरी नहीं है, हम सबकी है और अपने-अपने हिस्से का योगदान हमें इस आंदोलन में देना है।

साथियों, हमें तब तक लड़ना है, जब तक जन भावनाओं के अनुरूप मजबूत भू-क़ानून और मूल निवास 1950 लागू नहीं हो जाता। आज लड़ेंगे तो अपना और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर पायेंगे।

आप सभी के मार्गदर्शन, सहयोग एवं समर्थन से ही यह लड़ाई जीती जा सकती है। आप सभी से पुनः अनुरोध है कि 26 नवंबर के दिन अधिक से अधिक संख्या में शहीद स्मारक देहरादून पहुंचकर इस आंदोलन को सफल बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।

धन्यवाद।

संघर्ष समिति सरकार से निम्नलिखित मांग करती है-

1- 2018 से लेकर अभी तक भूमि कानूनों में हुए संशोधनों को रद्द किया जाय। इसके लिए सरकार शीघ्र कैबिनेट बैठक बुलाकर अध्यादेश लाए।

2- भूमि कानून की धारा 2 हटाई जाय। इस धारा के प्रभावी होने से नगरीय क्षेत्रों के विस्तार के चलते कृषि भूमि खत्म हो रही है।

3- कृषि योग्य भूमि को किसी भी ग़ैरकृषक को खरीदने की छूट न दी जाय।

4- किसी भी तरह के उद्योग के लिए ज़मीन लीज पर दी जाय। उद्योग के लाभांश में भूमि के मालिक की भी हिस्सेदारी हो। इससे किसान/काश्तकार भूमिहीन नहीं होंगे और उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी।

5- उत्तराखंड के मूल निवासी भूमिहीनों को भूमि आवंटित की जाय।

6- मूल निवास की परिभाषा तय हो और मूल निवासियों का सर्वेक्षण किया जाय। ताकि मूल निवासियों की वास्तविक स्थिति का पता चल सके।

7- यूसीसी में स्थाई निवास के लिए किये गए एक साल के प्रावधान को खत्म किया जाय।

8 - सरकारी/गैरसरकारी नौकरी, ठेकेदारी और सरकारी योजनाओं में 90 प्रतिशत हिस्सेदारी मूल निवासियों को दी जाय।

9- फर्जी स्थाई निवास प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे कर्मचारियों के साथ ही अन्य लाभ ले रहे लोगों की उच्चस्तरीय जांच हो।

10. राज्य बनने के बाद उद्योगों के नाम पर दी गई जमीनों का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाय।

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