राधाबल्लभ मंदिर का इतिहास.......
राधावल्लभ मन्दिर, वृन्दावन में स्थित श्री राधावल्ल्भलाल का प्राचीन मन्दिर है। यह मन्दिर श्री हरिवंश महाप्रभु ने स्थापित किया था।
वृंदावन के मंदिरों में से एक मात्र श्री राधा वल्लभ मंदिर में नित्य रात्रि को अति सुंदर मधुर समाज गान की परंपरा शुरू से ही चल रही है। सवा चार सौ वर्ष पहले निर्मित मूल मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेबके शासनकाल में क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। तब श्री राधा वल्लभ जी के श्रीविग्रहको सुरक्षा के लिए राजस्थान से भरतपुरजिले के कामांमें ले जाकर वहां के मंदिर में स्थापित किया गया और पूरे 123वर्ष वहां रहने के बाद उन्हें फिर से यहां लाया गया।
इधर वृंदावन के क्षतिग्रस्त मंदिर के स्थान पर अन्य नए मंदिर का निर्माण किया गया। निर्माण कार्य सं. 1881 सन्1824 में पूरा हुआ। इस मंदिर में गोस्वामी श्रीहितहरिवंश जी के उपास्थश्री राधा वल्लभजीसेवित हैं जो उन्हें चरथवाल कस्बे के एक ब्राह्मणसे प्राप्त हुए थे। मंदिर के आचार्य श्रीहितमोहित मराल गोस्वामी/युवराज/के अनुसार मुगल बादशाह अकबर ने वृंदावन के सात प्राचीन मंदिरों को उनके महत्व के अनुरूप 180बीघा जमीन आवंटित की थी जिसमें से 120बीघा अकेले राधा वल्लभ मंदिर को मिली थी। यह मंदिर श्री राधा वल्लभ संप्रदायी वैष्णवों का मुख्य श्रद्धा केन्द्र है। यहां की भोग राग, सेवा-पूजा श्री हरिवंश गोस्वामी जी के वंशज करते हैं।
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने इस मंदिर के बाहर लगाए गए प्रस्तर पट्ट में इसके बारे में निम्नलिखित जानकारी लिखी है। श्री हित हरिवंश गोस्वामी जी के सेव्य श्री राधा वल्लभ लाल के गोस्वामियोंद्वारा इस मंदिर का निर्माण सन् 1584में देवबंद निवासी श्री सुंदर दास खजांची द्वारा करवाया गया था। इनको आज्ञा दी श्री हित व्रजचन्दमहाप्रभु ने। यह वृंदावन का प्राचीन एवं अति प्रसिद्ध मंदिर है। श्री राधा वल्लभ जी अन्यत्र जाने तक इसमें विराजमान रहे। पुन:वृंदावन लौटने पर वे नए मंदिर में सन 1842से प्रतिष्ठित हुए। इसमें श्री हित हरिवंश जी के चित्रपट की सेवा है।