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रिद्धि सिद्धि नगर में जिनवाणी मंदिर का लोकार्पण , हजारों वर्ष पुराने ताड़पत्रों में जिनवाणी मंदिर में हुए स्थापित , हर वियोग के बाद नया संयोग स्थापित होता है - श्रुतसंवेगी गुरुदेव आदित्य सागर ।

कोटा। चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर, रिद्धि-सिद्धि नगर, कुन्हाड़ी में बुधवार को जिनवाणी मंदिर की प्रतिष्ठा आध्यात्मिक प्रबंधन के प्रवचनकार, श्रुतसंवेगी श्रमणरत्न मुनि श्री 108 आदित्यसागर जी मुनिराज ससंघ के सानिध्य में हुई। मंदिर अध्यक्ष राजेंद्र गोधा ने बताया कि गुरुदेव आदित्य सागर ने जिनवाणी मंदिर का लोकार्पण किया। विधिवत पूजन गुरुदेव एवं प्रतिष्ठाचार्य बा.ब्र. पीयूष प्रसून सतना द्वारा संपन्न हुआ। चातुर्मास समिति के मंत्री पारस बजाज ने बताया कि जिनवाणी मंदिर में सोने, चांदी व ताँबे के पत्र स्थापित किए गए। चातुर्मास समिति अध्यक्ष टीकम पाटनी व जैनेंद्र जज साहब ने बताया कि मंदिर में कुंदकुंद एवं गौतम गणधर भगवान के चरण भी स्थापित किए गए। कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला व निर्मल अजमेरा ने बताया कि मंदिर में 40 से अधिक ताम्रपत्र स्थापित किए गए हैं।

ये रहे पुण्यार्जक:

पंकज खटोड़ ने बताया कि स्वर्ण ताम्रपत्र के पुण्यार्जक परिवार टीकम, उत्तम बष्ट परिवार, रजत जिनवाणी के आदेश गोहिल्या परिवार व अन्य ताम्रपत्रों के सुनील मुक्ता जैन सेठिया, भंवर देवी, पारस देवी व वर्धमान जैन परिवार रहे। मंदिर में चरण स्थापित करने वाले पुण्यार्जक परिवार लोकेश जैन व लोकेश लाल (पत्थर वाले) थे। अंतिम दिवस गुरुदेव पादप्रक्षालन का सौभाग्य मोहन लाल, अनिल कुमार पाण्ड्य, चित्र व दीपप्रज्जवलन का सौभाग्य सविता, महेंद्र जैन परिवार को मिला।

नियोग और संयोग:

गुरुदेव आदित्य सागर ने अपने प्रवचन में गुरु और शिष्य के संबंध, योग, उपयोग, नियोग और संयोग के महत्व पर ज़ोर दिया। साथ ही, गुरु के प्रति निष्ठा, विनम्रता और सेवा भाव को केंद्र में रखते हुए जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि नियोग (नियति द्वारा निर्धारित कार्य) को स्वीकार करते हुए, अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए और संयोग (सही समय पर सही अवसर) का आनंद लेना चाहिए। यह समझना चाहिए कि हर वियोग (विच्छेद) के बाद नया संयोग होगा। गुरुवर ने अपनी चातुर्मास की अंतिम धर्मसभा में कहा कि कहीं वियोग की वजह से अश्रुधारा बह रही है तो कहीं आगमन के लिए खुशी की लहर दौड़ रही है, यही जीवन चक्र है।

सकल समाज ने किया आध्यात्मिक महाद्युति से अलंकृत:

सकल समाज के अध्यक्ष विमल जैन नांता व कार्याध्यक्ष जे.के. जैन ने बताया कि गुरुदेव आदित्य सागर को चातुर्मास पूर्ण कर विदाई के अवसर पर आध्यात्मिक महाद्युति के अलंकार से सम्मानित किया गया। उनके ज्ञान, तप व त्याग की प्रशंसा में सकल दिगंबर जैन समाज ने गुरुदेव के चरणों में प्रशंसा पत्र प्रस्तुत किया और उन्हें आध्यात्मिक महाद्युति उपाधि से अलंकृत किया। इस अवसर पर सकल जैन समाज के संरक्षक राजमल पाटोदी, कार्याध्यक्ष जे.के. जैन सहित, मनोज जैसवाल, नरेश वेद, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकमचंद पाटनी, मंत्री पारस बजाज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेंद्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, जैनेंद्र जज साहब, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, संजय सांवला, जैनेंद्र जज साहब, पारस कासलीवाल, अंकित जैन (आर.के. पुरम), महेंद्र बगड़ा, पारस जैन, श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर समिति के लोग उपस्थित रहे।

मंत्री पंकज खटोड़ ने बताया कि अंतिम प्रवचन के बाद गुरुदेव बारां रोड से मध्य प्रदेश की ओर रवाना हुए। इस अवसर पर अशोक नगर (मध्य प्रदेश) के सैकड़ों लोग उनकी अगवानी के लिए कोटा पहुँचे थे।

सैकड़ों वर्ष पुराने ताम्रपत्रों का संग्रह:

चातुर्मास समिति मंत्री पारस बजाज ने बताया कि दक्षिण भारत से लाए गए 1 से 2 हज़ार वर्ष पुराने ताड़पत्रों का संग्रह किया गया है, जिनमें जैन शासन के विभिन्न ग्रंथों का उल्लेख है। उन्होंने बताया कि लगभग 40 ताड़पत्रों का संग्रह किया गया है। इस स्वर्ण ताड़पत्र व रजत जिनवाणी को भी जिनवाणी मंदिर में रखा गया है।

अध्यक्ष गोधा ने बताया कि जिनवाणी मंदिर की स्थापना एक ऐसा पवित्र और आध्यात्मिक कार्य है, जो जैन धर्म की शिक्षाओं और आदर्शों का प्रचार-प्रसार करेगा। यह मंदिर जैन धर्म के मुख्य ग्रंथों और वाणी का संरक्षण, अध्ययन और अनुशीलन करने के लिए स्थापित करने के उद्देश्य से बनाया गया है।

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