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मानव समाज में विकारों का फैलाव पर सत्संग से लगेगी रोक-संत पंकज जी महराज

विश्व प्रसिद्ध महान् आध्यात्मिक गुरु बाबा जयगुरुदेव के एक मात्र उत्तराधिकारी बाबा पंकज जी महाराज इन दिनों देवीपाटन मण्डल के जिलों में बहुत ही सघन सत्संग कार्यक्रम कर रहे हैं। जगह-जगह उनको सुनने के लिए ग्रामीण स्तर पर भारी संख्या में श्रद्धालु जुट रहे हैं। जहाँ भी पंकज महाराज का सत्संग होता है, पूरा क्षेत्र ”जयगुरुदेव नाम प्रभु का“, बाबा जयगुरुदेव जी महाराज का कहना है, शाकाहारी रहना है, शाकाहारी रहना है। जैसे नारों से गूॅज उठता है। बाबा का काफिला आने के पूर्व पलक पॉवड़े बिछाये भाई-बहनों की लम्बी-कतारें स्वागत एवं अभिनन्दन करने के लिए घण्टों इन्तजार करती हैं।
बाबा पंकज महाराज की यह 108 दिवसीय सत्संग भ्रमण यात्रा शाकाहार और मद्यनिषेध के प्रबल प्रचार का पर्याय बन गयी है। वह भारत के सनातन अध्यात्मवाद का जो गहरा रहस्यमयी, सरल भाषा में सत्संग सुना रहे हैं, सुनकर लोग भाव-विभोर हो जाते हैं। मन्त्रमुग्ध होकर अपलक नेत्रों से निहारते स्वयं को भूल जाते हैं। सत्संग सुनकर हजारों हजार लोग शाकाहारी और नशामुक्त बनने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं।
आज शाकाहार सदाचार मद्यनिषेध आध्यात्मिक वैचारिक जन-जागरण का 99 वां दिन है। वह सत्संग की पूर्व संध्या पर मंगलवार को यहाँ से 6 कि.मी दूर ग्राम-लक्खा बौड़ी के निकट गहिरवा में के पास खेल मैदान में आ गये थे। उनका श्रद्धालुओं ने भाव भीना स्वागत किया। सत्संग सुनाते हुए बाबा पंकज महाराज ने कहा कि सत्संग का निर्मल जल मन की मैल को धो देता है। सत्संग सबके लिए जरूरी है। जिन विकारों का फैलाव मानव समाज में बड़ी तेजी से हो रहा है, उसमें सुधार सत्संग द्वारा ही होगा। सत्संग से संस्कार पड़ते हैं। परमार्थ और भक्ति में मन लगता है। सत्संग हृदय परिवर्तन का आधार है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य स्वाभाविक रूप से शाकाहारी प्राणी है। इसके लक्षण माँसाहारी पशुओं से बिल्कुल भिन्न हैं। जबड़े के रदनक नामक दाँत नुकीले होना, शिशु अवस्था में बच्चों की आँखें बंद होना, पानी जीभ से चाटकर, लबलबाकर पीना और लम्बी ऑतंे आदि अनेकों लक्षण मॉसाहारी पशुओं के हैं, जो मनुष्य के लक्षणों से एकदम भिन्न हैं। कहा कि मनुष्य का खून अलग और पशु पंक्षियों का खून अलग होता है। माँसाहार के जरिये यदि मनुष्य शरीर में पशुओं का बेमेल खून मिला दिया तो ऐसी भयंकर बीमारियाँ लग जायेंगी कि उनकी दवा डॉक्टरों के पास नहीं होगी। असाध्य रोगों एवं जानलेवा बीमारियों से बचना है तो सभी लोग शाकाहार अपनायें और नशों के सेवन से बचें। माँसाहारी और शराबी कभी भगवान का भजन नहीं कर सकते।
बाबा जयगुरुदेव द्वारा संस्थापित जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था, मथुरा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि सतयुग में योग से, त्रेता में यज्ञ से, द्वापर में मूर्ति पूजा से मुक्ति मिला करती थी। पिछले युगों की कठिन साधना पद्धतियों से वर्तमान कलयुग में भव पार जाना असंभव है। कलयुग की मान्यता प्राप्त साधना सुरत शब्द (नाम) योग है। ”कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिरि-सुमिरि नर उतरहिं पारा। कलयुग में नाम कमाई सार है। आगामी 8 दिसम्बर से 12 दिसम्बर तक पूज्यपाद दादा गुरु के 76 वें पावन वार्षिक भण्डारा महापर्व में भाग लेने का निमन्त्रण दिया।
इस अवसर पर रमाकान्त चौहान, भू-स्वामी ब्रज कुमार वर्मा, ग्राम प्रधान कमलेश मौर्य, राजित राम, खूबलाल, मस्तराम, चुन्नीलाल, सहयोगी संगत आजमगढ़ के राम चरन यादव कमला प्रसाद मौर्य, राम समुझ गुप्ता, संस्था के अनेक पदाधिकारी, प्रबन्ध समिति व सामान्य सभा के सदस्य उपस्थित रहे।

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