रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।
रेत कारोबारी को प्रशासनिक महकमे का खुला संरक्षण, दीवारी के बाद कमको खदान से फायदा पहुंचाने कि तैयारी
डिंडोरी, नवभारत -- दीपावली के पूर्व से ही दीवारी रेत खदान मे रेत कारोबारी के इशारों पर गुर्गों द्वारा कि जा रही मनमानी और पर्यावरणीय मंजूरी के नियम - निर्देशों कि धज्जियाँ उड़ाये जाने कि खबरे नवभारत द्वारा सिलसिलेवार प्रकाशित कि गई,लेकिन रेत कारोबारी पर नकेल कसने जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा, नतीजतन चंद रोजों मे ही रेत कारोबारी ने दीवारी रेत खदान से तगड़ा मुनाफा कमाया और अब दीवारी छोड़ ग्राम कमको मोहनिया मे डेरा जमा लिया। जहाँ विगत दो सप्ताह से दिन और रात पोकलेन मशीन का इस्तेमाल कर नदी के बीचों - बीच करीब बारह से पंद्रह फ़ीट का गड्ढा कर रेत निकाली जा रही है। आलम यह है कि चंद रोजो मे ही उक्त स्थल पर रेम्प भी तैयार हो गये है, जो आगे भी बढ़ते रहेंगे। लिहाजा शासन - प्रशासन कि भूमिका पर संदेह लाजिमी है।क्यों कि यहाँ भी सब कुछ दीवारी रेत खदान मे कि गई मनमानी कि ही तर्ज पर चल रहा है और सहायक मानचित्रकार से प्रभारी खनिज निरीक्षक बने उज्जवल पटले ने सब कुछ देखते समझते शराफत का लबादा ओढ़ रखा है।
जानिये क्या कहते है महाशय -- सोमवार को जब हम कार्यालय कलेक्टर.. खनिज शाखा पहुंचे तो वहां प्रभारी खनिज निरीक्षक से बमुश्किल मुलाक़ात हो पाई, जिसमे उन्होंने दीवारी खदान को बंद होना बताया और कमको मोहनिया खदान मे मशीन ना चलने कि बात कि, जबकि हमारे द्वारा उन्हें सब कुछ बताया गया कि कमको खदान मे नियम - निर्देशों से परे बीच नदी मे मशीनो से काम किया जा रहा है। और जब हमने कहा कि यदि मशीनो कि मंजूरी है तो बाईट दे - दीजिये, ताकि सच क्या है यह पाठको को पता लग जाये। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हम जांच करवा लेते हैँ। लिहाजा साहब इतना ही बता दें कि जिले मे अवैध खनन से जुडी गतिविधि या खबरे क्या मीडिया के माध्यम से ही आपके संज्ञान मे आती है, और फिर आती है तो रेत कारोबारी पर मेहरबानी क्यों..? जो आप यह कहते है कि जांच के दरमियाँ मशीने नहीं मिली। चलिए मान भी लिया कि मशीने नहीं मिली तो रेम्प तो नजर आया होगा, नदी मे खनन क्षेत्र के आसपास वाहन भी नजर आये होंगे। तो क्या ऐसी स्थिती मे कार्यवाही नहीं बनती..?
ग्रामीणो मे दिखी नाराजगी -- मंगलवार के दिन जब हम प्रातः कमको खदान क्षेत्र पहुंचे तो मुख्य मार्ग से महज 250 मीटर दूर ग्रामीण एकत्रित हो सडक पर खड़े थे, जब हमने उनसे पूछा कि क्योँ..? तब उन्होंने बताया कि ठेकेदार के आदमियों द्वारा लगभग दो सप्ताह से नदी से रेत निकाली जा रही है, जिसके चलते गाँव मे भारी वाहनो कि आवाजाहि बनी हुई है, उक्त वाहनो से उड़ने वाला धूल का गुबार सारे गाँव मे दिनरात छाया रहता है, जबकि ठेकेदार को रोजाना समय - समय पर जल का छिड़काव कराना चाहिये, जो कि आज तलक नहीं किया गया. नतीजतन धूल के गुबार का प्रभाव उनकि फसलों, पेड़ - पौधो व ग्रामीणो कि सेहत पर पड़ता है, अन्यथा वह वाहन खदान क्षेत्र मे प्रवेश नहीं करने देंगे। और कुछ डंपर चालकों को तो उन्होंने बाहर के बाहर ही भगा दिया। एक ग्रामीण सोनसिंह पेंन्द्रो ने तो यहॉँ तक बताया कि बारिश के दरमियाँ उनका इस मार्ग से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ना विकास किया ना रोजगार दिया -- ग्रामीणो ने यह भी बताया कि जबसे खदान चल रही है तबसे आज तलक इस क्षेत्र मे ना तो कोई विकास हुआ और ना ही रोजगार के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे है।जिसके चलते अक्सर ग्रामीणो के सामने पलायन कि स्थिती निर्मित होती है। कमको मे चार से पांच टोले है, और टोले के दिन बंधे हुये है, फॉर देवरी दादार क्षेत्र से भी अवैध खनन किया जाता है तो वहां के लोगों को भी एक अतिरिक्त दिन मजदूरी पर रखा जाता है.इसके अलावा देर रात तो मशीनो से ही रेत निकासी और मशीनो से ही लोडिंग भी कि जाती है, जिसके चलते भी रोजगार मारा जाता है।
आबादी क्षेत्र मे नही लगी लाइटे -- हाल ही मे रेत कारोबारी के गुर्गे ने यू ट्यूबर के माध्यम से अपने कर्मियों को सामने कर विद्युत व्यवस्था के नाम पर स्वयं कि पीठ थपथपाई थी, लेकिन ग्रामीणो ने बताया कि आबादी क्षेत्र छोड़ ठेकेदार के कर्मियों ने स्वयंहित मे मात्र पांच से छः लाइट लगाईं है, जिनसे ग्रामीणो को कोई फायदा नहीं है।